संस्कृति समाज “रूसी गांव नैनीताल में बिरूड़ पंचमी आंठू व दूर्वाष्टमी लोक पर्व की धूम ।आलेख व छायांकन -बृजमोहन जोशी


नैनीताल। हिमालय शिव का प्रिय स्थान है। उत्तराखंड देवी-देवताओं ऋषि मुनियों कि तपो भूमि रही है। इनमें शिव मन्दिरों कि भरमार है। पिछले लगभग ७५ वर्षों से नैनीताल के समीप रुसी गांव में महिलाओं के द्वारा सामूहिक रूप से बिरूड़ पंचमी अमुक्ताभरण सप्तमी व दूर्वाष्टमी व आंठू लोक पर्व का आयोजन किया होता आ रहा है। यहां आंठू का तात्पर्य है भादों के महिने में पड़ने वाली अष्टमी से । आंठू कुमाऊं में प्रचलित पर्व विशेष है। इस वर्ष हमारे इस अंचल में यह लोक पर्व पंचांग के अनुसार दिनांक २४ अगस्त को बिरूड़ पंचमी २५ अगस्त को अमुक्ताभरण सप्तमी २६ अगस्त को दूर्वाष्टमी/ दूब ज्यौड़ ( श्रीकृष्ण जन्माष्टमी ) के रूप में मनाया जायेगा ।
आंठू का यह लोक पर्व मुख्य रूप से पिथौरागढ़ जिले में विशेष रूप से मनाया जाता हैं। यूं तो कुमाऊं में अमुक्ताभरण सप्तमी और दूर्वाष्टमी के पर्व किसी न किसी रूप में जरूर मनाए जाते हैं। लेकिन आंठू पर्व की जो व्यापकता पिथौरागढ़ जिले के नेपाल की सीमा से लगे गांवों में देखने को मिलती है वह बेमिसाल है। आंठू पर्व की प्राचीनता के बारे में विद्वानों में अनेक प्रकार के मत प्रचलित है। प्रसिद्ध अंग्रेज इतिहासकार व कुमाऊं कमिश्नर ट्रेल ने इसे सन् १८१८ के प्रारम्भ में होना बताया है। तो कुछ लोग इस पर्व का सम्बन्ध कुमाऊं से गोरखों के जाने के विषय से जोड़ते हैं तो कुछ इतिहासकारों कि यह भी मान्यता रही है कि यह पर्व कुमाऊं के राजा उद्यान चन्द के राजतिलक के समय से प्रचलित था। कहते हैं कि उद्यान चन्द ने राज गद्दी पर बैठते ही राजा ज्ञान चंद के पापों का प्रायश्चित करने के लिए इस पर्व को शुरू करवाया। ऐतिहासिक मान्यताऐं चाहे जो कुछ भी रही हों पर इस क्षेत्र में प्रचलित आंठू पर्व पर भगवान शिव और गौरा कि पूजा बिल्कुल नये ढंग से होती है। गंवरा अर्थात पार्वती मैसर अर्थात शिव।
गंवरा को यहां एक पर्वतीय ग्रामीण महिला के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। वह एक सामान्य गृहणी की तरह अपनी मां ,बाप, भाई,पति ,सास रिश्तेदारौ, ईष्ट मित्रों से वही आशा, विश्वास , आचरण चाहती है उनसे उसकी वहीं अपेक्षाएं रहती हैं जो एक‌ सामान्य गृहणी की होती है। गंवरा अमुक्ताभरण सप्तमी को अपने पितृ गृह आती है और दूर्वाष्टमी को शिव उन्हें बुलाने को पहुंचते हैं। गंवरा मैसर कि मूर्तियों का निर्माण अनाज की बालियों से किया जाता है तथा फीर उन्हें घर के भीतर स्थापित किया जाता है। गंवरा पहाड़ के दुःख दर्द को यहां की एक आम महिला की तरह भोगती है, लेकिन इसके बावजूद वह आराध्य है अखण्ड सौभाग्य और समृद्धि को देती है। आंठू के समय गंवरा के इसी दर्द को लोकगीत के रूप में अभिव्यक्त किया जाता है
कां त्वीलै गंवरा रै बासो लीछ,
कां पड़ी गे हो रात।
हिमांचल कांठी रै बासो लीछ, बसुधारा पड़ि गै हो रात।
इसी तरह गंवरा कि मां गंवरा से कहती है कि तू इस भूखे भादौ माह में क्यों आ गई, यदि चैत्र महिने में आती तो गेहूं के भूनें दाने खाती और आश्विन में आती तो चावल के भुने हुए दाने खाती.
यों भुख भदौं गंवरा,
कि खाणैं कि आछै,
चैत ऊंनी तो,
उमिया बुकुंनी,
असौज ऊंनी तो
सिरौली बुकूनी,
आंठू का पर्व व्यक्तित्व सुख कि कामनाओं के साथ सामाजिक स्नेह का भी प्रतीक है। इस दिन महिलाएं उपवास रखकर आंठू के आराध्य गौरा महेश की पूजा करती है। आंठू की गाथा और इस मौके पर गाए जाने वाले लोक गीत एक दूसरे से पूरक हैं। बिरुड़ पंचमी के दिन एक लोक कथा बिण भाट नामक ऐसे पुरुष तथा उसके परिवार से जोड़ी गई है, जिसकी सात बहुओं को गंवरा मैसर कि पूजा के फल और प्रतिफल अपनी प्रवृति के अनुरूप भोगने पड़ते हैं। आंठू पर्व को मनाने के कुमाऊं अंचल में भिन्न भिन्न तरीके हैं। अल्मोड़ा तथा नैनीताल जिले में यह अमुक्ताभरण सप्तमी तथा दूर्वाष्टमी को सन्तान तथा सुहाग की कामना के लिए व्रतोंत्सव मात्र रह जाता है।‌ जब कि पिथौरागढ़ जनपद के महाकाली अंचल (नेपाल) के सांस्कृतिक प्रभाव वाले इलाकों में यह पूरे एक महीने का उत्सव हो जाता है। यह भी उल्लेखनीय है कि सम्पूर्ण हिमालय में भगवान शिव और पार्वती कि पूजा किसी न किसी रूप में होती है। कहीं पर नन्दा, कहीं भगवती नन्दा, राजराजेश्वरी नन्दा, महाकाली, दुर्गा के रूप में तो कहीं पर इसे गंवारा मैसर के रूप में पूजा जाता है। गंवरा मैंसर् कि परम्परागत पूजा के बाद सामूहिक गीत आरम्भ हो जाते हैं। महिलाएं समूह में यह गीत गाती हैं- सिलगड़ी का पाला चाला हो गंवारा,
गिन खेलन्यां गड़ो ला भुलू गंवरा,
कालि ज्यूं को तल्ला चालों गंवरा,
मली हिटो सदियों ला भुलू गंवरा।बाद में यह गीत श्रृंगार रस की ओर बढ़ते हैं और गीतों के बोल भी बदल जाते हैं –
त्वै कैलै दयान सजन का फूना,
मैत है ल्यायूं सजन का फूना।
आंठू पर्व का समापन गंवरा मैसर के पुतलों के विसर्जन के साथ-” तेरि सेवा पूरि भै केदार ” कहते हुए होता है।
पिथौरागढ़ जिले में कई स्थानों पर समापन के अवसर पर हिल जात्रा,हिरन चित्तल का आयोजन भी होता है। हिल जात्रा कृष कोत्सव है। यह वर्षा काल के प्रारम्भ में कृषक वर्ग द्वारा अभिनीत किया जाने वाला विशुद्ध रूप का लोक नाट्य है।जिसका मुख्य आकर्षण होता है लखिया भूत अर्थात वीरभद्र।
इस वर्ष भी दिनांक २४ अगस्त से २८ अगस्त २०२४ तक रुसी गांव नैनीताल में स्थानीय महिलाओं के द्वारा सामूहिक रूप से श्रीमती देवकी देवी जी पत्नी स्वर्गीय श्री लछम सिंह बिष्ट जी के आवास पर यह लोक पर्व मनाया जा रहा है । एक साक्षात्कार में देवकी देवी जी ने बतलाया कि उनकी सास जी के द्वारा विवाह के बाद इस अनुष्ठान को रूसी गांव में यहां आरम्भ किया गया क्योंकि उनके मायके में यह लोक पर्व मनाया जाता था उसके बाद उनकी बहू श्रीमती गीता बिष्ट जी तथा सभी गांव की महिलाओं के सहयोग से ये लोक परम्परा आज़ भी प्रति वर्ष यहां मनायी जा रही है। इस वर्ष मूर्तियों का विसर्जन दिनांक २८ अगस्त २०२४ दिन बुधवार को होगा।
कुमारी कंचन गोस्वामी,सपना मेहरा, वन्दना खनी, सलोनी गैलाकोटी,नैना गैलाकोटी, अंजलि खली के द्वारा गंवरा मैसर व बाला कि मूर्तियों (पुतलों) का निर्माण किया गया। निर्माण के उपरांत आचार्य श्री हरीश चंद्र जोशी जी के द्वारा इन मूर्तियों की विधिवत प्राण प्रतिष्ठा व पूजन किया गया। इसके बाद पण्डित जी महिलाओं के बीच से उठ जाते हैं और महिलाऐं स्वतन्त्र होकर इस दूब घास से बने दूब ज्यौड़ को गले तथा डोर धारण करती है। लोक गीतों का गायन पंचमी से आरम्भ हो जाता है। इस शुभ अवसर पर सामूहिक रूप से श्रीमती देवकी देवी, पत्नी स्वर्गीय श्री लछम सिंह बिष्ट जी के आवास पर
गीता बिष्ट, ममता बिष्ट, दीपा जोशी, तारा गोस्वामी, भागीरथी गोस्वामी, चम्पा देवी, चन्द्रा खनी, तारा मेहरा विमला मेहरा, कांता मेहरा, प्रेमा बिष्ट, राधा बिष्ट, निधी बिष्ट, गंगा बिष्ट, कमला बिष्ट, दीपा बिष्ट, धना बिष्ट, नारायणी गैलाकोटी, दीपिका गैलाकोटी, पूनम गैलाकोटी, विद्या गैलाकोटी, जीवन्ति बिष्ट, नीकिता गैलाकोटी, लता जोशी, गंगा मेहरा, प्रेमा बिष्ट, चेतना बिष्ट आदि महिलाओं ने तीन दिनों तक चले इस लोक पर्व में ‌गायन,वादन,कथा वाचन तथा लोक-नृत्य गीतों व नृत्यों में सहभागिता की।
इस शुभ अवसर पर सहयोगी के रूप में श्री नन्दन सिंह बिष्ट, गोविन्द सिंह बिष्ट विजय बिष्ट, गोपाल बिष्ट आदि ने विशेष सहयोग किया।

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