श्रावणी उपाकर्म जन्यो पुन्यू व रक्षाबंधन के पावन पर्व कि हार्दिक शुभकामनाएं व बंधाई स्वीकार करें। जन्यो पुन्यू – श्रावणी उपाकर्मआलेख – बृजमोहन जोशी।
नैनीताल l श्रावण शुक्ल पुर्णिमा ही उपाकर्म का प्रसिद्ध काल माना गया है। श्रावणी विशेषकर ब्राह्मणों अथवा पण्डितों का पर्व है। वेद परायण के शुभारंभ को उपाकर्म कहते हैं। ऋषि पूजन तथा पुराने यज्ञोपवीत को उतारकर नया यज्ञोपवीत धारण करना पर्व का विशेष कृत्य है। प्राचीन समय में यह कर्म गुरु अपने शिष्यों के साथ अपने आश्रमों में किया करते थे। यह उत्सव द्विजों के वेदाध्ययन का और आश्रमों के उस पवित्र जीवन का स्मारक है। विधान के अनुसार – हमारे इस अंचल में किसी नदी, गाड़,गधेरे, मन्दिर के आसपास जहां जल हो, वहां गोबर, तुलसी जल से शरीर को पवित्र करके ऋषि तर्पण कर सप्त ऋषियों के पूजनोपरांत जनेऊ बदलकर हाथ की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा जाता है। रक्षा सूत्र बांधते समय यह मंत्रोच्चार किया जाता है – येन बद्धो बलि राजा दानवेन्द्रो महाबल।
तेन त्वाम अभिबद्धनामि रक्षे मा सल मा चल।।
यज्ञोपवीत और श्रावणी
श्रावणी के साथ नये यज्ञोपवीत के धारण और पुराने को छोड़ने की प्रथा भी जुड़ी हुई है। गुह्य सूत्रों के अधार पर परिपाटी है कि प्रत्येक प्रधान उत्तम यज्ञ -याग आदि के समय नया यज्ञोपवीत धारण किया जाय।उसी आधार की पोषिका इस श्रावणी पर यज्ञोपवीत बदलने कि प्रथा भी है। यज्ञोपवीत के तीन सूत्र पितृ ऋण,देव ऋण,और ऋषि ऋण आदि कर्तव्यों का बोध कराते हैं।उपनयन, यज्ञोपवीत, तथा व्रत बन्ध आदि पद इस सम्बन्ध में विशेष महत्व के हैं। आचार्य कुल में विद्यार्थी लाया जाता है अतः यह व्रत बन्ध है।
गायत्री – गायत्री मंत्र का सविता देवता है अग्नि मुख है विश्वामित्र ऋषि है, गायत्री छंद है और उपनयन, प्राणायाम और जप में विनियोग “इस्तेमाल ” है।यह गायत्री मंत्र आदि मंत्र है। गायत्री मंत्र में स्तुति, प्रार्थना और उपासना तीनों है। गायत्री ही ऐक ऐसा मंत्र है जो हिन्दू मात्र के लिए एक मंत्र हो सकता है। भगवान वेद में आज्ञा करते हैं “समानी मंत्र ” कि तुम्हारा मंत्र एक हो, अतः हिन्दू मात्र का एक गायत्री मंत्र होना चाहिए। अर्थात चारों वेदों का सार गायत्री है। इस प्रकार से जो गायत्री को जानता है वह ही ब्राह्मण है और जो नहीं जानता वह चारों वेदों का पारगामी भी क्यों न हो, शुद्र है। जो गायत्री है वहीं सन्ध्या है और जो सन्ध्या है वहीं गायत्री है। जिसने गायत्री की उपासना/सेवा कर ली उसने विष्णु भगवान की उपासना कर ली,गोभिल ऋषि कहते हैं –
सन्ध्या मेन न विज्ञाता सन्ध्या नैवाप्पुपासिता।
जीवमानो भवेंच्छूद्रो मृतः श्वा वाभिरजायते।।
इसका नाम गायत्री इस लिए है कि यह गाने वाले को संसार सागर से पार कर देती है। गायत्री वेद माता है, गायत्री पाप नष्ट करने वाली है, गायत्री के अतिरिक्त भूलोक में तथा स्वर्गलोक में पवित्र करने वाला और नहीं है। कम से कम एक बार आने वाली श्रावणी उपाकर्म में अवश्य सम्मिलित होकर वर्ष भर में जाने अनजाने होने वाले अपराधों का प्रायश्चित द्वारा निराकरणअवश्य करें।
अतः इसकी रक्षा ही नहीं अपितु इसे यथार्थ रूप में मानना हमारा परम धर्म होना चाहिए।
आप सभी को सपरिवार श्रावणी उपाकर्म “ऋग्यजु उपाकर्म” व रक्षाबंधन के पावन पर्व कि हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं।