हाइड्रोपोनिक तकनीक से खेती में 80 प्रतिषत कम पानी की जरूरत: डॉ. पुरोहित, कार्यक्रम में टिशु कल्चर से प्रयोगशाला में विकसित पौंधों की जानकारी दी

नैनीताल। उत्तराखंड जैव प्रौद्योगिकी परिषद के क्षेत्रीय केंद्र पटवाडांगर में आयोेजित कार्यक्रम में पहाड़ी क्षेत्रों में विकास कार्य, खेती व रोजगार की समस्या पर चर्चा की गई। वहीं पहाड़ों में हाईड्रोपाेनिक तकनीक से खेती पर भी चर्चा की गई। साथ ही प्लास्टिक खाने वाले कीटाणुओं व बैक्टिरिया की जानकारी दी गई। बृहस्पतिवार को उत्तराखंड जैवप्रौद्योगिकी परिषद के क्षेत्रीय केंद्र पटवाडांगर में उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस की रजत जयंती के उपलक्ष्य में हुए कार्यक्रम में वैज्ञानिक डा.कंचन कार्की ने पहाड़ी क्षेत्रों में विकास के कार्य व रोजगार की समस्या के बारे में बताया। पिछले 25 वर्षाें में उत्तराखंड राज्य ने बॉयोटेक्नोलॉजी, आयुर्वेद विज्ञान, जड़ी बूटियों द्वारा विकसित आयुर्वेदिक दवाएं, स्टार्टअप, स्वयं रोजगार, पर्यटन के क्षेत्र में सराहनीय तरक्की की है। डा. कार्की ने प्लास्टिक को खाने वाले कीटाणुओं व बैक्टीरिया को खाने वाले वाइरस व विषाणुओं पर किये जा रहे शोध कार्याें की जानकारी दी। विलुप्त प्रजाति को बॉयोटेक्नोनालॉजी से पुनः जीवित करने के शोध कार्य की भी जानकारी दी। पटवाडांगर संस्थान के प्रभारी डा. सुमित पुरोहित ने संस्थान में हाईटेक प्लांट टिष्यू कल्चर प्रयोगषाल में विकसित किये जा रहे किवी फल एवं तिमूर पौधों पर किये जा रहे शोध कार्याें के बारे में बताया। उन्होंने हाइड्रोपोनिक विधि से होने वाली खेती के बारे में बताया। कहा कि भविष्य में मिट्टी रहित खेती की तकनीक यानी हाइड्रोपोनिक तकनीक से 80 प्रतिषत पानी बचाया जा सकता है। इस दौरान कार्यक्रम में आरके पंत, डा. मोनिका रानी, पूनम, नमिता जोशी, रश्मी पाण्डे, विनिता पाण्डे, अंजू दोसाद, महक बेलवाल, प्रीति बहुगुणा, शुभांगी रौतेला, काजल, नलिनि, मानसी, नितिन, सौरभ व ललित असवाल मौजूद रहे।

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