कुमाऊं विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग की विभागाध्यक्ष प्रोफेसर ज्योति जोशी के नेतृत्व में प्रोफेसर जे0पी0 भट्ट (हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय) के साथ एक महत्वपूर्ण विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया।

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नैनीताल l कुमाऊं विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग की विभागाध्यक्ष प्रोफेसर ज्योति जोशी के नेतृत्व में प्रोफेसर जे0पी0 भट्ट (हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय) के साथ एक महत्वपूर्ण विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया। इस व्याख्यान का विषय “जीवन कौशल: अभिवृत्ति और प्रेरणा” (लाइफ स्किल्स: एटिट्यूड एंड मोटिवेशन) था। इस दौरान प्रोफेसर पी. एस. बिष्ट (संकायाध्यक्ष, कला संकाय), प्रोफेसर अर्चना श्रीवास्तव, डॉ0 प्रियंका नीरज रुवाली, तथा डॉ0 उर्वशी पाण्डेय (एमबीजीपीजी कालेज) की विशिष्ट उपस्थिति रही।
प्रो. भट्ट ने “जीवन कौशल: अभिवृत्ति और प्रेरणा” पर एक विशेष व्याख्यान दिया। प्रो. भट्ट ने जीवन कौशल की व्यापक और गतिशील प्रकृति पर चर्चा करके सत्र की शुरुआत की। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जीवन कौशल में कई पहलू शामिल हैं और समग्र विकास के लिए ये महत्वपूर्ण हैं। प्रो. भट्ट ने प्रेरक उदाहरणों के साथ जीवन कौशल के महत्व को समझाया जैसे अरुणिमा सिन्हा: शारीरिक रूप से अक्षम होने के बावजूद, उन्होंने माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई की। विल्मा रूडोल्फ: जिनको बचपन से ही पोलियो था इसके बावजूद वह विश्व रिकॉर्ड बनाने वाली ओलंपिक चैंपियन बनीं। जे.के. राउलिंग: इनको भी कई बार असफलताओं का सामना करना पड़ा लेकिन अपने धैर्य के कारण हैरी पॉटर सीरीज़ में अपार सफलता हासिल की। प्रो. भट्ट ने फिर अभिवृत्ति और प्रेरणा की अवधारणाओं पर विस्तार से बताया, यह समझाते हुए कि वे व्यवहार और व्यक्तित्व को महत्वपूर्ण रूप से आकार देते हैं। उन्होंने अभिवृत्ति को व्यक्ति के सोचने और व्यवहार करने के तरीके के रूप में परिभाषित किया और व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन में बाहरी और आंतरिक प्रेरणा दोनों के महत्व पर चर्चा की। अभिवृत्ति और प्रेरणा को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारणों को भी बताया। जैसे समाजीकरण, सामाजिक अधिगम, नैतिक मूल्य, आशावाद, लचीलापन, आत्मविश्वास, अनुकूलनशीलता, सकारात्मक आत्म-चर्चा, सार्थक लक्ष्य, कृतज्ञता, दीर्घकालिक प्रेरणा, बर्नआउट पर काबू पाना।
इसके बाद प्रो. ज्योति जोशी ने अभिवृत्ति और प्रेरणा की अन्योन्याश्रयता पर विचार व्यक्त किए, उन्होंने बताया कि अभिवृत्ति और प्रेरणा एक ही सिक्के के दो पहलू बताया। उन्होंने संतुलन, आत्मनिरीक्षण और खुद को सकारात्मक प्रभावों से घेरने के महत्व पर जोर दिया। प्रो. जोशी ने बुद्ध के अंतःप्रज्ञा विचार के साथ समापन किया, जिसमें व्यक्तियों से अपना रास्ता खोजने और अपनी क्षमता को अधिकतम करने पर बल दिया।
अंत में प्रो. अर्चना श्रीवास्तव ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया तथा इस विशिष्ट व्याख्यान आयोजन में मंच संचालन हेतु डॉ0 प्रियंका नीरज रुवाली उपस्थित रहीं। व्याख्यान में डॉ0 सरोज पालीवाल, डॉ0 अर्शी परवीन, डॉ0 नवीन राम, डॉ0 हरिश्चन्द्र मिश्र और सभी शोध एवं स्नातकोत्तर छात्र- छात्राऐं उपस्थित रहे।

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