अहिंसा धर्म कब- अधर्म कब गोष्ठी सम्पन्नअधर्म के नाश के लिए हिंसा आवश्यक है- अतुल सहगल

नैनीताल l केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के तत्वावधान में “अहिंसा-धर्म कब- अधर्म कब ” विषय पर ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन किया गया I यह करोना काल से 732 वाँ वेबिनार था l वैदिक प्रवक्ता अतुल सहगल ने कहा कि आज हिंसा प्रवृत्ति और उससे उपजी समस्याएं कम होती नहीं दीखती हैं, अपितु बढ़ ही रही हैं l अहिंसा का पाठ हमारे ऋषियों, विद्वानों ने सदा पढ़ाया l परन्तु उनका पूरा पाठ हमने याद नहीं रखा l हम आधे पाठ को लेकर चर्चा और प्रचार करते रहे l बाकी के आधे पाठ को हम वस्तुतः भूल से गए l अहिंसा कहाँ धर्म है और कहाँ अधर्म? उन्होंने अपना वक्तव्य अहिंसा के उसी जाने माने श्लोक – ‘अहिंसा परमो धर्म:’ को लेकर प्रारम्भ किया l धर्म की रक्षा करने के लिए हिंसा परम धर्म से भी श्रेष्ठ है l इसी बात को आगे ले जाते हुए अनेक उदाहरण दिए और उन सब परिस्थितियों को गिनाया जब अहिंसा धर्म है और उन परिस्थितियों को भी बताया जब अहिंसा अधर्म है l सामान्य परिस्थितियों में अहिंसा सही है परन्तु विषम परिस्थितियों में, जब अधर्म और पाप बढ़ रहे हों और अधार्मिक शक्तियां बलवान हो रही हों, तो अहिंसा छोड़ कर हिंसा से काम लेना पड़ता है — स्थापित करने के लिए l रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्य भी हमें यही शिक्षा देते हैं l वक्ता ने दैनिक जीवन के छोटे-बड़े अनेक सन्दर्भ लेते हुए उन सब के परिपेक्ष्य में हिंसा की चर्चा की जहाँ हिंसा पापकर्म है l वहां हिंसा शांति भंग करती है व मानव प्रगति में अवरोधक है l मन, वचन व कर्म से लोग प्रायः हिंसा करते हैं l घर, परिवार या समाज के लोगों में सामान्यतः रहते हुए शत्रुता का, ईर्ष्या का या द्वेष का विचार भी हिंसा है l चोरी, डकैती, बलात्कार, गाली देना व अन्य प्रकार के दुर्व्यवहार हिंसा की ही श्रेणी में आते हैं जो अधर्म है l परन्तु बालक को सुधारने के लिए ताड़ना सही है l पुलिस द्वारा अपराधियों पर प्रहार करना हिंसा है और सही है, धार्मिक कृत्य है l राष्ट्र शत्रु से युद्ध करना धार्मिक हिंसा है l यह क्षत्रिय का परम धर्म है और श्रेयस्कर है l इसी प्रकार अनेक उदाहरण प्रस्तुत करते हुए वक्ता ने अपने विषय को विस्तार से सामने रखा l वक्ता ने अहिंसा के दर्शन शास्त्र से जुड़ाव की बात कही l लेकिन धार्मिक हिंसा उतनी ही या उसे अधिक महत्वपूर्ण बन जाती है, जब समाज में विषम परिस्थियां हों l अन्याय करना एक हिंसक कृत्य है, जो अधर्म या पाप है l वक्ता ने उपसँहार के रूप में वर्तमान की घटनाओं की चर्चा की और कहा कि आज हमें अपने विवेक को प्रबल करने की और उसे अनुसार कार्य करने की आवश्यकता है l आज की विषम परिस्थितियों में ज्ञान, अर्धज्ञान, अर्धसत्य, दूषित ज्ञान, मिथ्या आदि को पहचानना परम आवश्यक है l पूर्ण सत्य का पालन करना ही धर्मचारण है l तभी समाज में पूर्ण, स्थायी शांति, सद्भावना व प्रगति संभव है l अध्यक्षता करते आर्य नेता ओम सपरा ने अधर्म के विनाश के लिए हिंसा को आवश्यक बताया l परिषद अध्यक्ष अनिल आर्य ने कुशल संचालन किया व प्रवीण आर्य ने धन्यवाद ज्ञापन किया. गायिका कौशल्या अरोड़ा, जनक अरोड़ा,कमला हंस, प्रवीना ठक्कर ,रविन्द्र गुप्ता, सुधीर बंसल आदि ने मधुर भजन सुनाए.















