आर्य समाज का भावी स्वरूप गोष्ठी संपन्न

आर्य समाज ने सत्य स्वरूप की स्थापना की
-अतुल सहगल

नैनीताल l केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के तत्वावधान में “आर्य समाज के 150 वे स्थापना वर्ष के उपलक्ष्य में भावी स्वरूप ” विषय पर ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन किया गया I यह करोना काल से 709 वाँ वेबिनार था I वैदिक प्रवक्ता अतुल सहगल ने समाज के सामान्य जन की दृष्टि में आर्यसमाज के स्वरुप की चर्चा की l आर्यसमाज अपनी स्थापना के 150 वर्ष बाद भी कई सामान्य व्यक्तियों की धारणा में राम और कृष्ण को न मानने वाला अथवा नास्तिक लोगों का समाज है l कई अन्य लोगों की दृष्टि में यह इसाईयत और इस्लाम से प्रेरित समाज है जो मूर्ति पूजा का विरोध करता है l वक्ता ने इस स्थिति को दुर्भाग्यपूर्ण बताया कि जिस समाज ने सच्चे धर्म के पुनःस्थापन और पुनर्जागरण के लिए और राष्ट्र चेतना जगाने के लिए इतना कुछ किया, उसके बारे में ग़लत धारणाएँ आज भी प्रचलित हैं l वक्ता ने फिर आर्यसमाज का वास्तविक स्वरुप उजागर करते हुए कहा कि अपने नियम संख्या 6 के अनुसार यह संसार का उपकार करने वाला समाज है l यह सत्य पर टिका हुआ और बहुजनहिताय व बहुजनसुखाय की भावना को लेकर कार्य करता है l अपने नियम सँख्या 4 के अनुसार यह भ्रम, भ्रान्तियां, पाखंड और अंधविश्वास को नष्ट करने वाला समाज है l वक्ता ने कहा कि वर्तमान में आर्यसाज की छवि इसका सही रूप और चरित्र नहीं दर्शाती l यह संस्था बृहद समाज में अपनी पैठ और पकड़ वैसे नहीं बना पायी है जैसी अपेक्षित थी l वक्ता ने तत्पश्चात आर्यसमाज का भावी स्वरुप प्रस्तुत करते हुए कहा कि वह एक क्रन्तिकारी, आंदोलनकारी और परिवर्तनकारी संस्था का हो l इसकी केवल एक केंद्रीय संचालन सभा हो जो प्रदेश, राष्ट्र और विदेश की समस्त आर्यसमाज शाखाओं का प्रतिनिधित्व करे l वर्तमान की सभाओं का एकीकरण हो l आर्यसमाज सामाजिक जीवन के हर क्षेत्र में उपस्थित हो l हर क्षेत्र — राजनैतिक, आर्थिक, वैचारिक, वैज्ञानिक, धार्मिक, सुरक्षा आदि क्षेत्रों में अपने प्रकल्प बनाये–ठीक वैसे ही जैसे आरएसएस (RSS) ने बनाये हैं l देशीय और वैश्विक स्तर पर इस समाज का स्वरुप वेद विद्या के प्रचार, विस्तार एवं भ्रान्ति निवारण की संस्था का हो l इसकी छवि अंधविश्वास उन्मूलन और पाखंड खंडिनी संस्था की हो l आर्यसमाज का भावी स्वरुप एक संकीर्ण पंथ का नहीं बल्कि एक सार्वभौमिक, सनातन और शुद्ध विचारधारा के प्रचारक, प्रसारक और प्रवाहक का हो l और यह विचारधारा वैदिक ही तो है l अंत में वक्ता ने वर्तमान विश्व कि घोर, विकट समस्याओं की ओर ध्यान आकर्षण करते हुए कहा कि केवल आर्यसमाज में इन सब समस्याओं का समाधान है l और इसलिए इस संस्था का संवर्धन और विस्तार परमावश्यक है I
कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ. आर के आर्य ने भी आर्य समाज के उत्थान के सुझाव दिए. परिषद अध्यक्ष अनिल आर्य ने कुशल संचालन करते हुए अपने बच्चों को साथ लेकर आने का आह्वान किया I प्रदेश अध्यक्ष प्रवीण आर्य ने धन्यवाद ज्ञापन किया Iगायिका कौशल्या अरोड़ा, जनक अरोड़ा, सुधीर बंसल, कमला हंस, सुनीता अरोड़ा, मृदुल अग्रवाल, उषा सूद, शोभा बत्रा, रवि इंद्र गुप्ता आदि के मधुर भजन हुए I

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