भैया दूज की प्रासंगिकता” विषय पर गोष्ठी संपन्न, भाई बहन के स्नेह का प्रतीक है भैया दूज-आचार्य श्रुति सेतिया
नैनीताल l केन्द्रीय आर्य युवक परिषद् के तत्वावधान में “भैया दूज की सार्थकता” विषय पर ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन किया गया।य़ह कोरोना काल से 678 वाँ वेबिनार था।वैदिक विदुषी आचार्या श्रुति सेतिया ने कहा है वैदिक संस्कृति को पर्व प्रधान संस्कृति कहा जा सकता है।इसमें जितने पर्व कल्पित किए गए हैं उतने संभवतः संसार के किसी धर्म व संस्कृति में नहीं किए गए हैं। दीपावली ओर गोवर्धन पूजा के बाद भाई-दूज का पर्व आता है। यह एक वैदिक पर्व भी कहा जा सकता है।यह पर्व भाई व बहिन के परस्पर सौहार्द एवम् प्रेमपूर्ण संबंधों को प्रकट करता है।इसका संदेश है कि भाई व बहिन को जीवन भर परस्पर स्नेह के बंधन में आबद्ध रहना चाहिए और दोनों परस्पर एक दूसरे के सुख दुख,रक्षण व पोषण का ध्यान रखें।इसके प्रतीक के रूप में बहिन भाई का तिलक करती है और अपनी शुभकामनाएं देती है।भाई अपनी सहमति देते हुए कि रक्षा व कष्ट,मुसीबत में सहायक होने का परिचय देता है। वेद में प्रमाणित एक मंत्र द्वारा बताया गया है कि कोई भी भाई अपने भाई से,कोई भी बहिन अपनी बहिन से तथा भाई बहिन भी परस्पर द्वेष कभी ना करें। सभी भाई बहिन परस्पर प्रेम आदि गुणों से युक्त होकर एक दूसरे के मंगल कल्याण की भावना वाले होकर मंगलकारी रीति से एक दूसरे के साथ सुखदायक वाणी को बोला करें। यही मंगलकारी रीति ही इस पर्व का आधार है।आज की परिस्थितियों में इस पर्व का महत्व अधिक हो गया है।अतः आज भैयादूज के पर्व को मनाने में हमें इसकी महत्ता,प्रासंगिकता व उपयोगिता अनुभव होती है। भाई दूज का यह पर्व भाई बहिन के प्रेम,स्नेह,समर्पण,परस्पर रक्षा,सहयोग,सहायता,सेवा, शुभकामनाएं,आवश्यकता पढ़ने पर एक दूसरे के लिए त्याग व बलिदान का प्रतीक है।सब अपने जीवन में परस्पर प्रेम व त्याग का उदाहरण प्रस्तुत करें।इसे स्थिर रखने के लिए ही भारतीय संस्कृति में इस पर्व की कल्पना को साकार रूप प्रदान किया गया है। मुख्य अतिथि आर्य नेत्री उषा सूद व अध्यक्ष चन्द्र कांता आर्या ने अपने विचार व्यक्त किये।परिषद अध्यक्ष अनिल आर्य ने कुशल संचालन किया व प्रवीण आर्य ने धन्यवाद ज्ञापन किया। गायिका कौशल्या अरोड़ा, कमला हंस, कुसुम भंडारी, जनक अरोड़ा, संतोष धर, शशि जायसवाल, रविन्द्र गुप्ता, सुधीर बंसल, सुनीता अरोड़ा आदि के मधुर भजन हुए।