गुरु पूर्णिमा पर विशेष

गुगुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वरः
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।पंचांग के अनुसार, आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन ही महर्षि वेद व्यास का आज से करीब 3000 वर्ष पूर्व जन्म हुआ था. मान्यता है कि उनके जन्म पर गुरु पूर्णिमा पर्व मनाने की परंपरा शुरू हुई । गुरु पूर्णिमा पूर्ण रूप से महर्षि वेदव्यास को समर्पित है.
महान व्यक्तित्व, ब्रह्मसूत्र, महाभारत, श्रीमद्भागवत और अट्ठारह पुराण जैसे अद्भुत साहित्यों की रचना करने वाले महर्षि वेदव्यास जी का जन्म आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को हुआ था और उनका जन्मोत्सव गुरु पूर्णिमा है।
व्यासजी पाराशर ऋषि के पुत्र तथा महर्षि वशिष्ठ के पौत्र थे। व्यासजी को गुरुओं का गुरु माना जाता हैं। इसलिए आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को शिष्य गुरु शिष्य परंपरा पालन करते है । इसे व्यास पूजा पर्व भी कहा जाता है ।
गुरु शब्द का अभिप्राय है अंधेरे से उजाले की ओर ले जाने वाला। ‘गु’ का अर्थ अंधकार और ‘रु’ का अर्थ मिटाने वाला। जो अपने सदुपदेशों के माध्यम से शिष्य के अज्ञानरुपी अंधकार को नष्ट कर देता है । गुरु सर्वेश्वर का साक्षात्कार करवाकर शिष्य को जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त कर देते हैं। संसार में गुरु का स्थान विशेष है। रामचरित मानस के आरंभ में गोस्वामी तुलसीदास जी ने गुरु को आदि गुरु सदाशिव का स्थान दिया है। शिव स्वयं बोध रुप एवम सृष्टि के सूत्र संचालक हैं। भोले नाथ से जब माता पार्वती अपनी संतानों के हित के लिए प्रश्न पूछती है, ब्रह्म कौन है ? तो भोले नाथ उत्तर देते हैं ‘गुरु के अतिरिक्त कोई ब्रह्म नहीं है वो सुमुखि का सत्य है।’
माना जाता है कि भारतीय-ज्ञान गंगा के भगीरथ, भारतीय संस्कृति के व्याख्याता तथा पुराणों के रचयिता भगवान वेदव्यास भगवान के अवतार हैं। श्रीपाद मध्वाचार्य ने ब्रह्मसूत्र की व्याख्या के संदर्भ में ‘भगवान्नारायणों व्यासरुपेणावतार‘ कहकर उन्हें नारायण का अवतार माना है। इसलिए गुरु श्रेष्ठ है। श्री राम के गुरु वशिष्ठ ,विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस, शिव योगी ,पतंजलि ,थिरुमूलर , व्यग्रपादा जग प्रसिद्ध गुरु है।

यह भी पढ़ें 👉  बलियानाले का निर्माण कार्य संतोषजनक, महाधिवक्ता एसएन बाबूलकर और सिंचाई विभाग के सचिव ने किया निरीक्षण

भारतीय मान्यताओं के अनुसार वे प्रत्येक द्वापर में जन्म लेकर वेदों का संकलन, संपादन और विभाजन करते हैं। इसीलिए उन्हें वेदव्यास या संक्षेप में व्यास कहते हैं। वह वेद पुराण महाभारत तथा ब्रह्मसूत्र का प्रणयन कर भारतीय ज्ञान विज्ञान शास्त्र और कलाओं की गंगा प्रवाहित कर मानव जाति को विचार अमृत देते हैं तथा मानव धर्म के इस आधार सूत्र की रचना करते हैं कि- दूसरों का उपकार करना ही सबसे बड़ा पुण्य है अर्थात सबका हित करना ही जीवन धर्म है। यही व्यास का चिंतन और शाश्वत संदेश है। व्यास जी एक शाश्वत परंपरा के वाहक हैं जो भारतीयता का सृजन करके भारतीय संस्कृति के अखण्ड प्रवाह को युग युगांतर से अक्षुण्य बनाए हुए हैं। आपको गुरु पूर्णिमा को शुभ कामनाएं। डॉ ललित तिवरी

Advertisement