मंगल फल दे श्रीफल-कलश स्थापना “वासंतिक नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई।संस्कृति अंकदिनांक -२२-०९-२०२५आलेख बृजमोहन जोशी

नैनीताल ! “श्री ” अर्थात लक्ष्मी।ऐसा विश्वास है कि इसकी उपस्थिति से सारे कार्य निर्विघ्न संपन्न होते हैं। पहले पूजा पाठ में पशुओं की बलि सामान्य बात थी। आदि शंकराचार्य ने इसके स्थान पर श्रीफल/ नारियल चढ़ाने की शुरुआत करवाई। नारियल फोड़ने का मतलब आप अपना अहंकार और स्वयं को ईश्वर को समर्पित कर रहे हैं। इससे हमारी आत्मा में शुद्धी आती है तथा हमारे ज्ञान के द्वार खुलते हैं। स्त्रियां श्रीफल नहीं फोड़ती।श्रीफल बीज रूप है।इसे उत्पादन क्षमता से जोड़ा गया है। स्त्रियां बीज के रूप में शिशुओं को जन्म देती है इसलिए नारी का बीज रूपी श्रीफल को फोड़ना अशुभ माना गया है। श्रीफल ऐसा मांगलिक प्रतिक चिन्ह है, जिसके माध्यम से हम सुख, कल्याण, स्वास्थ्य की प्रार्थना करते हैं।
कलश – कलश स्थापना का उद्देश्य भगवान वरूण की उपस्थिति सुनिश्चित करना माना गया है। धार्मिक मान्यतानुसार – विश्वास किया जाता है कि कलश में भगवान विष्णु के अतिरिक्त रूद्र, ब्रह्मा व मातृकाएं, सप्तसिंधु,सात द्विप, चार वेद, और वेदांग वास करते हैं।इनका आह्वान किया जाता है। तांबे के कलश को धोकर उसमें दूध,दही,
घी,सुपारी, हल्दी की गांठ, एक सिक्का डालकर सात अनाजों के ऊपर कलश स्थापित किया जाता है। फिर उसमें जौं डालकर जल से पात्र (कलश) को भर दिया जाता है। कलश में पंचगव्य,पंच पल्लव (पीपल,खैर,अपमर्ग,उदुम्बर,
पलास) डालकर सप्त भूमि- माटी(जहां विभिन्न पशु,हाथी, घोड़े,गाय, आदि बंधे हों) तथा पांच प्रकार के सिक्के (पहले – हीरा,माणिक,सोना,चांदी) डाले जाते थे फिर कुश से बने ब्रह्मा स्थापित किये जाते हैं।ऐसी धार्मिक मान्यता है कि –
कलश के मुंह में ब्रह्मा निवास करते हैं, कलश के कण्ठ में रूद्र, मध्य भाग में मात्रिकाएं तथा जड़ अर्थात तले में भगवान विष्णु का निवास बतलाया गया है।
इस शुभ अवसर पर जो मांगलिक संस्कार गीत गाया जाता है वो इस प्रकार है –
आज धरियो भरियो कलेश,
आज बधावन नगरी सुहावन,
देश धरती धरम लै कलेश थापियो …..!
विधि पूर्वक स्थापित कलश में प्रदत्त द्रव्यों, पदार्थों को देखने से स्पष्ट होता है कि नौ दिनों तक कलश में दिये गये उन पदार्थों से कलश जल अमृतमय हो जाता है और उस अमृतरूप जल से महामंत्रों द्वारा अभिषेक किया जाता है।वह सवृपाप – रोग विनाशक है। सुरक्षित ताम्र पत्र में रखा हुआ यह अमृतमय जल तीन महीने के बाद सर्व रोगनाशक महाषौधि हो जाता है।इसका आधुनिक वैज्ञानिक चिकित्सकीय परीक्षण हो चुका है।

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