मन की चंचलता” विषय पर गोष्ठी संपन्न, मन को काबु में रखना आवश्यक-विमलेश बंसल दर्शनाचार्या

नैनीताल l केन्द्रीय आर्य युवक परिषद् के तत्वावधान में “मन की चंचलता” विषय पर ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन किया गया।य़ह कोरोना काल से 711 वाँ वेबिनार था। वैदिक विदुषी दर्शनाचार्या विमलेश बंसल ने कहा कि प्रत्येक प्राणी को आनंद प्रिय है और उसकी चाह की पूर्ति में वह न जाने कब से भटक रहा है।भोग योनि तो बंधन वाली हैं किंतु मनुष्य उभय योनि का प्राणी होने से मन द्वारा मन को समझ और नियंत्रित कर सकता है किंतु कभी – कभी अनियंत्रित भी हो जाता है। जिससे आत्मा का पतन हो जाता है।
वस्तुतः मन के अनियंत्रित होने के कई कारण है मन कैसे नियंत्रित होता है? उससे पहले मन के स्वरूप को भी समझना आवश्यक है कि मन क्या है?मन क्या करता है? वस्तुतः मन एक जड़ पदार्थ है वह चेतन आत्मा के सहारे से कार्य करता है आत्मा मन रूपी शीशे में रूप रस गंध आदि पंच विषय वाले जिस तरह के पदार्थ देखता है उसी प्रकार से आत्मा सक्रिय हो उठता है।मन की गति बहुत तीव्र होती है किंतु वह एक बार में एक ही वस्तु को पकड़ता है पर इतनी शीघ्रता से दूसरी वस्तु तक पहुंच जाता है कि ऐसा लगता है कि बहुत काम एक साथ कर रहा है। इसलिए ऐसा भ्रम उत्पन्न हो जाता है कि अमुक व्यक्ति तो एक साथ बहुत काम कर लेता है और इसी स्थिति को श्रीकृष्ण ने मन की चंचलता कहा है।एक योगी व्यक्ति मन की इस मजबूत गति- तीव्रता को समझ कर इसका सदुपयोग कर लेता है और ईश्वर की ओर इस मन को त्वरित लगा देता है।किंतु मन की दो स्थितियां होती हैं दुख और सुख का अनुभव करवाना।ईश्वर की ओर मन लगने के लिए सुखी रहना बहुत आवश्यक है।सुखी आत्मा ही मन को ईश्वर में जोड़ सकता है इसके लिए हर स्थिति में प्रसन्न रहना अत्यंत आवश्यक है।उसके लिए महर्षि पतंजलि ने कई सूत्र प्रसन्न रहने के लिए दिए जैसे – मैत्री करुणा–आदि।हमें मुख्यता से मन ही बंधन और मोक्ष दोनों का कारण होने से इस मन के मोक्ष वाले कारण को मजबूती से पकड़ना होगा तभी मनुष्य जीवन का कल्याण हो सकता है lमुख्य अतिथि आर्य नेत्री कृष्णा पाहुजा व अध्यक्ष सुधीर बंसल ने भी मन की विभिन्न स्थितियों पर प्रकाश डाला।परिषद अध्यक्ष अनिल आर्य ने कुशल संचालन किया व प्रदेश अध्यक्ष प्रवीण आर्य ने धन्यवाद ज्ञापन किया।गायिका कौशल्या अरोड़ा, जनक अरोड़ा, सुमित्रा गुप्ता, सरला बजाज आदि के मधुर भजन हुए।


