प्रसिद्ध गायक व संगीतकार वाचस्पति डयूड़ी जी कि नौ वींपुण्यतिथि पर पारम्परिक लोक संस्था परम्परा नैनीताल द्वारा सादर श्रद्धांजलि (कालाढूंगी) नैनीताल। दिनांक – ०६-०९-२०२५


नैनीताल l गीत एवं नाटक प्रभाग नैनीताल केन्द्र के वरिष्ठ प्रशिक्षक- संस्कृति कर्मी वाचस्पति डयूड़ी जी को उनकी नौ वीं पुण्यतिथि पर पारम्परिक लोक संस्था परम्परा नैनीताल द्वारा किया गया याद।
कार्यक्रम का शुभारंभ पारम्परिक लोक संस्था परम्परा नैनीताल के निदेशक रंगकर्मी बृजमोहन जोशी द्वारा वाचस्पति डयूड़ी जी के व्यक्तित्व व कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए बतलाया गया कि – वाचस्पति डयूड़ी जी का जन्म १५ जून १९४९ को श्रीमती सुमेदा देवी व श्री बाला दत्त ड्यूड़ी जी के घर चमोली गढ़वाल में हुआ था। आपके पिताजी राजपुरोहित थे। आपके तीन भाई जगदीश प्रसाद डयूड़ी, बुद्धिष्ट बल्लभ डयूड़ी, कौशलानन्द डयूड़ी जी थे।आपकी प्रारम्भिक शिक्षा नरेंद्र नगर टिहरी गढ़वाल में तथा स्नातक कि शिक्षा उत्तरकाशी में हुई। संगीत विशारद कि उपाधि आपने गायन व तबला वादन में प्राप्त की।संगीत का शौक आपको बचपन से ही था।आपने रामलीलाओं में भरत ,लक्ष्मण, सीता , के अभिनय के साथ कला जीवन में प्रवेश किया। अपने स्कूल / विद्यालय में होने वाले संगीत समारोहों में आपकी सक्रिय सहभागिता होती थी। आपने अपने बड़े भाई जगदीश प्रसाद,शान्ती कुमार रतूड़ी से गायन व तबला वादन कि प्रारम्भिक शिक्षा उनके सानिध्य में रहकर ग्रहण की। उसके बाद आपने संगीत गायन वादन कि शिक्षा सुखदेव सिंह रावत जी जो सूरदास थे उनसे भी ग्रहण की।आपने एक गायक व संगीतकार के रूप में अपनी सेवाएं गीत एवं नाटक प्रभाग सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार के नैनीताल केन्द्र में दी ।
वर्ष २००९ में आप सेवा निवृत्त हुए।आपकी धर्मपत्नी जी का नाम श्रीमती पूनम डयूड़ी तथा आपके चार बच्चे दो पुत्र दो सुपुत्री। सुपुत्र का नाम दीपक डयूड़ी, विवेक डयूड़ी व सुपुत्री का नाम चित्रा डयूड़ी , व दीप्ती डयूड़ी है।आपने घर जंवाई फिल्म मे जो गीत गाया है उस गीत के बोल हैं – जै बदरी केदार नाथ, गंगोत्री जै-जै यमुनोत्री जै जै,….,छम घुंगुरू . फिल्म में एक टाईटिल गीत ( शीर्षक गीत) श्री नरेन्द्र सिंह नेगी जी के साथ गाया । वर्ष १९७७-१९७८ में आपका एक ई.पी. निकला था जिसमें आपके तीन चार गाने थे इस ई.पी.में जो गाने आपने गाये हैं वो इस‌ प्रकार से हैं – उडांदू भंवरा त ऊंची डांडयू मा.. , मै कै घुट घुट नी लाग नी लाग बाटुली….. , फुर घीनौड़ी उड़ जा त डांडयू का पार, ज ख होला स्वामी ले आये रै बार….आपका स्वरचित व गाया हुआ यह प्रसिद्ध लोक गीत आज ‌लगभग सभी सांस्कृतिक संस्थाओं के कलाकारों के द्वारा गाया और मंचित भी किया जाता है। गीत के बोल हैं…..कन प्यारो चौमास डांडयू मा बौड़िगे।आपने नैनीताल में गीत एवं नाटक प्रभाग के कार्यक्रमों में विशेष रूप से गीत नृत्य नाटिकाओं में जैसे – कठौती में गंगा व श्री कृष्ण लीला के अधिकांश गीत गाए हैं। आपने नैनीताल में अनेक सांस्कृतिक संस्थाओं जैसे हिमानी आर्ट्स आयाम मंच ,
पारम्परिक लोक संस्था परम्परा ,
श्री राम सेवक सभा, श्री नन्दा देवी महोत्सव तथा शरदोत्सवों में भी अपना बहुमूल्य योगदान दिया है। बृजमोहन जोशी ने यह भी बतलाया कि डयूड़ी जी के
साथी कलाकार महेश चंद्र जोशी (सेवा निवृत्त वरिष्ठ प्रशिक्षक गीत एवं नाटक प्रभाग नैनीताल) द्वारा दूरभाष से अपनी श्रृद्धांजली अर्पित करते हुए यह जानकारी हमारे साथ सांझा कि की वाचस्पति डयूड़ी जी को विभाग के कार्यों के साथ साथ गीत एवं नाटक प्रभाग लखनऊ से पंजीकृत सांस्कृतिक दलों के संचालन का कार्य भी सौंपा गया था जिसे डयूड़ी जी ने बखूबी निभाया। जोशी जी ने कहा कि डयूड़ी जी एक व्यवहार कुशल व मृदुल स्वभाव के व्यक्ति थे। मधुर कण्ठ के धनी थे।आपके साथी कलाकार दिनेश चंद्र डंडरियाल शास्त्रीय संगीत गायक (सेवा निवृत्त गीत एवं नाटक प्रभाग नैनीताल) द्वारा अपनी श्रृद्धांजलि अर्पित करते हुए यह जानकारी हमारे साथ सांझा कि की वाचस्पति डयूड़ी जी ने विभाग में प्रारम्भ में एक कुशल तबला वादक के रूप में कार्य करना आरम्भ किया वो गुरु जी हरि किशन साह व अरविंद आश्रम नैनीताल कि शास्त्रीय संगीत गायिका श्रीमती विदूषी करुणा मयी के साथ संगत किया करते थे। उसके बाद उन्होंने गायन आरम्भ किया। आपने ग्वैर छोरा फिल्म में उनके संगीत निर्देशन में प्रसिद्ध गायिका आशा भोंसले व उदित नारायण से भी अपने गीत गवाये। दुष्यंत कुमार के कई गीतों को उन्होंने संगीत बद्ध ही नहीं किया अपितु उन्हें गाया भी है। मेरे द्वारा गाई गई दुष्यंत कुमार की गजल की धुन भी उन्होंने ही बनाई थी। वह उमेश डोभाल स्मृति, बिड़ला विद्या मंदिर,लेक इण्टर नैशनल स्कूल भीमताल, जागर संस्था, युगमंच,
संगीत कला अकादमी के सदस्य रहते हुए श्री मां नयना देवी मंदिर में आयोजित भजन संध्या में वो हमारे साथ भजन प्रस्तुत करते रहे। श्री राम सेवक सभा मल्लीताल नैनीताल कि राम
लीलाओं, नन्दा देवी महोत्सव में भी उनकी सक्रिय सहभागिता रही। डंडरियाल जी ने कहा कि अब सिर्फ शेष यादें ही रह गयी है नियति का यही अटल सत्य है कि मनुष्य का आना और जाना उसकी इच्छा पर नहीं है। गीत एवं नाटक प्रभाग नैनीताल केन्द्र के वरिष्ठ प्रशिक्षक रंगकर्मी अनिल घिल्डियाल जी ने अपनी श्रृद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि डयूड़ी जी को एक कुशल गायक व तबला वादक के साथ शास्त्रीय संगीत व लोक संगीत दोनों विधाओं में मजबूत पकड़ रखते थे। विभाग के कार्यक्रमों के साथ साथ व्यक्तिगत रूप से भी शहर में होने वाले सभी आयोजनों में उनकी सहभागिता होती थी।
मेरे द्वारा वर्ष १९९६ से संचालित पारम्परिक लोक संस्था परम्परा नैनीताल के साथ वो लम्बे समय तक जुड़े रहे। मेरे गुरु जी रमेश चंद्र जोशी जी जो प्रदर्शन कला के मर्मज्ञ थे (गीत एवं नाटक प्रभाग नैनीताल व विरला विद्या मंदिर नैनीताल में उन्होंने सेवाऐं दी) मैं बृजमोहन जोशी भी गीत एवं नाटक प्रभाग नैनीताल केन्द्र का अंश कालिक कलाकार रहा इस नाते भी मैं डयूड़ी जी तथा उनके परिवार का एक सदस्य सा ही था और वह एक लम्बे समय तक परम्परा नैनीताल के साथ जुड़े रहे।
इस कार्यक्रम में पारम्परिक लोक संस्था परम्परा परिवार कि मुखिया श्रीमती कमला जोशी,
मनोज जोशी,अनुभा जोशी,
श्रीपर्णा जोशी, प्रशान्त कपिल,मीनू कपिल,गीता कपिल,निशांत कपिल,साबी कपिल, तथा रंगकर्मी
घनश्याम भट्ट हल्द्वानी के द्वारा भी उन्हें सादर श्रद्धांजली अर्पित की गयी। कार्यक्रम का संचालन बृजमोहन जोशी द्वारा किया गया।

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