गुरू पूर्णिमा पर विशेष

प्रत्येक वर्ष आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है जिसे व्यास पूर्णिमा और वेदव्यास जयंती भी कहा जाता है । इसी दिन महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था जिन्होंने महाभारत, श्रीमद्भागवत, वेदों सहित अट्ठारह पुराण और ब्रह्म सूत्र जैसे ग्रंथों की रचना करके सनातन धर्म को अमूल्य धरोहर दी।
गुरु-शिष्य परंपरा का उत्सव दिवस पर आध्यात्मिक, सामाजिक एवं शैक्षिक गुरु का सम्मान किया जाता हैं एवं उनका आशीर्वाद लेते हैं और उनके ज्ञान दर्शन के लिए कृतज्ञता आभार व्यक्त करते हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करना, दान-पुण्य करना और गुरु का पूजन करना शुभ माना जाता है। गुरु पूर्णिमा ज्ञान की आराधना है जो जीवन में अंधकार को मिटाकर प्रकाश की राह दिखाता है।
गुरु ही गोविंद का ज्ञान देते हैं। गुरु ही अंधकार से उजाले की तरफ ले जाते हैं। गुरु सिर्फ शिक्षक नहीं होते, जीवन पद के मार्गदर्शक है। इस दिन का बृहस्पति बीज मंत्र ‘ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः’ है ।
गुरू ब्रह्मा गुरू विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा गुरु साक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नम: अर्थात गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं। यह पर्व अपने आराध्य गुरु को श्रद्धा अर्पित करने का महापर्व है।
गुरु ही हमें सही-गलत का भेद बताते हैं, गुरु ही भगवान को पाने का रास्ता है तथा इसमें गुरु स्तोत्रम सबसे महत्वपूर्ण हैं । देवशयनी एकादशी के बाद गुरु पुर्णिमा आने का अर्थ देव शयन के बाद गुरु का ही सहारा रहता है। गुरु ही अपने शिष्यों का कल्याण करते हैं। डॉक्टर ललित तिवारी

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