अधर्म पर धर्म की विजय का महा पर्व “विजयादशमी” पर विशेष .संस्कृति अंक -अमर कंटक,मध्य प्रदेश।दिनांक -०२-१०-२०२५ आलेख – बृजमोहन जोशी

विजयादशमी (दशहरा) यह पर्व आश्विन शुक्ल दशमी तिथि को मनाया जाता है। विजयादशमी का त्यौहार वर्षा ऋतु की समाप्ति तथा शरद ऋतु के आगमन के आरम्भ का सूचक है।इस पर्व को भगवती (विजया) के नाम पर विजयादशमी कहते हैं। श्रीराम द्वारा रावण पर कृत विजय दैवी एवं मानवीय गुणों – सत्य, नैतिकता, असत्य, दम्भ, अहंकार और दुराचार पर विजय है। यह पर्व न्याय की जीत एवं नारी जाति के अपमान कर्ताओं का संहारक है,धर्म, तपस्चर्या, साधना, समर्पण, निष्ठा, मर्यादा तथा भगवदास्था का रक्षक है। अपितु ” तमसो मा ज्योतिर्गमय” की ज्योति से अज्ञानांधकार का विनाशक भी है। इसका सम्बन्ध प्रकृति, ऋतुचक्र साधक,आकाश, पशु -पक्षी, आबाल- वृद्ध, कृषक, भक्त, देवी- देवता,संगीत, सभी के साथ है।
“रावण दहन” के साक्ष्य हमें १९४७ भारत विभाजन के बाद मिलते हैं। कुछ का कहना है कि रांची में सन् १९४७-४८ में भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान से आए शरणार्थियों द्वारा तो कुछ इसकी शुरुआत हिन्दू धर्म की रक्षा करने के लिए बने सिख पंथ के ३०० लोगों द्वारा १९५५ मे मानते हैं तो कुछ लोग दिल्ली के रामलीला मैदान में प्रतीक रूप में सबसे पहले रावण दहन का कार्यक्रम १७ अक्टूबर १९५३ को मानते है।
आप सभी महानुभावों को अधर्म पर धर्म की विजय के इस महापर्व “विजयादशमी – दशहरा” के पावन पर्व की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं।

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