तो प्रदेश में महामारी का खतरा दूर, सरकार का हाईकोर्ट में दावा
नैनीताल। हाइकोर्ट ने कोरोना के समय प्रदेश की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्थाओं के खिलाफ दायर दस से अधिक जनहित याचिकाओं पर सुनवाई की। मामले की आज सुनवाई कार्यवाहक मुख्य न्यायधिश सजंय कुमार मिश्रा व न्यायमुर्ति एनएस धनिक की खण्डपीठ में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से हुई। खण्डपीठ ने मामले को सुनने के बाद अगली सुनवाई हेतु 22 फरवरी की तिथि नियत की है। सुनवाई के दौरान माहाधिवक्ता एसएन बाबुलकर व मुख्य स्थायी अधिवक्ता चन्द्र शेखर रावत ने कोर्ट को बताया कि अभी प्रदेश में महामारी पर कंट्रोल है। सभी लोगो द्वारा समाजिक दूरी व मास्क का पूर्ण रूप से पालन किया जा रहा है । वैक्सीन की बूस्टर डोज भी लगाई जा रही है। याचिकर्ता के अधिवक्ता द्वारा कोर्ट को अवगत कराया कि अभी भी लोग समाजिक दूरी व मास्क नही लगा रहे है । इसको लागू करने के लिए जिला मॉनिटरिंग कमेट्रियो ने भी जोर दिया है। याचिकर्ता ने यह भी कहा कि सरकार की मेडिकल वेबसाइट में इस बात का भी उल्लेख किया जाय कि प्राईमेरी अस्पताल , बेस अस्पताल व अन्य सरकारी अस्पतालों में कौन कौन सी सुविधाएं उपलब्ध है जिसका मरीजों को आसानी से पता लग सके। मामले के अनुसार अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली व देहरादून निवासी सच्चिदानंद डबराल व अन्य आठ ने क्वारन्टीन सेंटरों व कोविड अस्पतालों की बदहाली और उत्तराखंड वापस लौट रहे प्रवासियों की मदद और उनके लिए बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराने को लेकर हाईकोर्ट में अलग अलग जनहित याचिकायें दायर की थी। पूर्व में बदहाल क्वारंटाइन सेंटरों के मामले में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट कोर्ट में पेश कर माना था कि उत्तराखंड के सभी क्वारंटाइन सेंटर बदहाल स्थिति में हैं और सरकार की ओर से वहां पर प्रवासियों के लिए कोई उचित व्यवस्था नहीं की गई है। जिसका संज्ञान लेकर कोर्ट अस्पतालों की नियमित मॉनिटरिंग के लिये जिलाधिकारियों की अध्यक्षता में जिलेवार निगरानी कमेटीया गठित करने के आदेश दिए थे और कमेटियों से शुझाव माँगे थे। याचिकाओ में यह भी कहा गया है कि महामारी से लड़ने के लिए प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सुविधाओं की कोई व्यवस्था नही की गई है।