नए साल के आगमन और बीते साल की विदायी के अवसर पर एक स्वरचित रचना

कैलेंडर, यादें और जिंदगी…..

नया साल जो आएगा
उम्मीदों का दामन थाम
किसी गुल्लक में बंद खनकते सिक्को सा
या फिर चित्रकार के ब्रश में लगे रंगो जैसा,
सपनो को उभारता हुआ आगे बड़ेगा।
नया है, वो बिलकुल नया है
अपरिचित मित्र जैसा।
सूरज की प्रथम किरण संग जब पहॅुचेगा,
हिमालय की चोटियों में ,
तब सरकते हुए प्रकाश का पहाड़ों में फैलना जैसे
देवत्व का वास होगा।

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नदी के पानी सा
बह जाना होता है वख्त को
और जिंदगी वो भी बहती है मगर कुछ यादें याद रहती हैं कुछ गुम हो जाती हैं।

बीते कल तू
एल्बमों मे रहना,
तुझे वहीं खोज पाऊंगा
पलटती तस्वीरों के
साथ- साथ या फिर
ह्रदय के भाव जब- जब पीछे मुड़ देखेंगे,
तब- तब नयन, अधरों तक
अश्रु- जल बिखेरेंगे।

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साल पुराना, नया
दीवारों पर कैलेंडर के बदल जाने की रस्म के बीच,
आशा, उमंग, उल्लास और
जिंदगी तेरे आगे बड़ जाने का नाम है।

-अनुपम उपाध्याय

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