नराई। आलेख – बृजमोहन जोशी।
आज से कोई लगभग ५० साल पूर्व कुमाऊं अंचल में मनाए जाने वाले कौतिकौं में मर्दों के परिधानों में – सफेद धोती या चूड़ीदार पायजामा, काला कोट जिसकी ऊपरी जेब में लाल रूमाल बाहर झांकता था।लोक गायक सफेदधोती, मिरजयी,सर में सफेद सांफा(पगड़ी)हाथौं में हुड़ुका, दमुआ, नंगारा, रणसिंग, वो छोल्यारों के अनूठे करतब। बैर-भगनौल, मालुसाई, चांचरी झोड़ा नृत्य गीत खेलते आम लोगों कि सहभागिता। वो रात -दिन लगने वाले खेल। महिलाओं के नीले घाघरे, पीले पूरी बांह के ब्लाउज, सफेद दुपट्टे (ओढ़नी) रंगीन रूमाल।उनके वो चांदी के भारी -भारी हथकान (जेवर) गले में सूता,पंच लड़ी,संत लड़ी ,नौलड़ी जंजीर,गुलो बन्द कमर में तगड़ी
,कानौं में झूपझूपी, मूनाण, रुपए,
अटठनी, चवन्नी , मूंगे, चरयो की माला। हाथों में धागुले, हाथोंमें लाललालचूड़ियां,अंगूठियां,बालौ में धमेला।पांवों में वह झांवर आज नहीं बजते जो उनके चलने फिरने की सूचना देते थे।