जितने कंकर उतरने शंकर.धार्मिक अनुष्ठान शिवार्चन – पार्थिव पूजन.आलेख -बृजमोहन जोशी



नैनीताल। श्रावण के महिने को हमारे यहां सौण म्हैण कहा जाता है।‌ देव भूमी उत्तराखंड में एक लोकोक्ति प्रसिद्ध है कि – जितने कंकर उतरने शंकर ।
उत्तराखंड को देवाधि देव भगवान शिव का ससुराल और मां भगवती पार्वती का मायका भी कहा जाता है । यहां गाड़ गधेरों में शिवालय ही शिवालय हैं। श्रावण माह में आशुतोष भगवान शिव कि पूजा का विशेष महत्व है। देव भूमी होने के कारण यहां अनेक देवी देवताओं का निवास स्थान भी है।
मासों में भगवान शिव को श्रावण माह विशेष प्रिय है। श्रावण माह में पार्थिव पूजन, शिवार्चन करने का विशेष महत्व है। इस माह में लघु रूद्र, महा रूद्र, अथवा अति रूद्र पाठ कराने का भी विधान है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार श्रावण माह की काल चतुर्दशी का दिन पार्थिव पूजन के लिए विशेष महत्व रखता है। श्रावण माह में हमारे इस अंचल में पूरे माह भर पार्थिव पूजन का विशेष आयोजन होता है। जो लोग किन्हीं कारणों वश श्रावण मास में पार्थिव पूजन नहीं कर पाते हैं तो वह लोग वैशाख माह में अथवा कार्तिक माह में भी पार्थिव पूजन कर लेते हैं। विशेष रूप से श्रावण माह में ही अत्यधिक रूप में पार्थिव पूजन किये जाते हैं। लोक मान्यता है कि इस पूजन को एक बार आरम्भ करने के उपरांत हर वर्ष करना चाहिए और इसी कारण जो लोग किन्हीं कारणों से श्रावण माह में इस शिवार्चन नहीं कर पाते हैं तो वह लोग अपनी सुविधानुसार इस पूजन को वैशाख, कार्तिक माह में कर लेते हैं। कुछ लोग तो पूरे माह भर शिवार्चन करते हैं ,और उन्हें रोज नये पार्थिव लिगों का निर्माण करना पड़ता है। महिलाऐं श्रावण माह के सोमवार का व्रत करती हैं। शिव की उपासना के साथ साथ इस त्योहार (अनुष्ठान) का आयोजन विशेष रूप से सन्तान की प्राप्ति के लिए भी किया जाता है। उपरोक्त श्रावण, वैशाख व कार्तिक माहों में पार्थिव पूजन का महत्व भी अलग अलग है।
पार्थिव पूजन के लिए घरों में पहले से ही तैयारी की जाती है। शिवार्चन का यह तरीका बेहद अनोखा है। पार्थिव पूजन से पहले स्नान ध्यान कर भक्तजन मिट्टी ,गोबर,नमक मक्खन, व चावल के आटे से पार्थिव लिंगों का निर्माण अपनी अपनी मनौती के अनुसार किया जाता है। यहां -शालि – नामक एक धान है उसी के चावलों को धोकर, सुखाकर पीस लिया जाता है उसी आटे को गूंथकर उससे पार्थिव लिंग बनाये जाते है। शिव लिंगों कि संख्या १०८ से आरम्भ होकर हजार,दस हजार, लाखों तक भी हो सकती है। सामान्यतः सामान्य परिवारों में १०८ पार्थिव लिंगों का निर्माण व पूजन ही अधिक होता है इसके लिए स्थानीय भाषा में कहा जाता है कि एक अष्टोत्तर करना है। शिवार्चन पूजन सम्पन्न होने के उपरांत कुछ लोग श्रीसत्य नारायण जी की व्रत कथा , और आजकल वर्तमान समय में अनेक घरों में सुन्दरकाण्ड पाठ का आयोजन भी किया जाने लगा है। मिट्टी से बनने वाले शिव लिंग का पूजन घर की सुख शांति के लिए, गोबर से बने पार्थिव लिंगों का पूजन पित्रों (आबदेब) के निमित्त, चावल से बनने वाले पार्थिव लिंगों का पूजन सन्तान प्राप्ति हेतु, नमक व मक्खन से बनने वाले पार्थिव लिंगों का पूजन शत्रु नाशक हेतु किया जाता है। गरूड़ पुराण में लिंग पूजा के अनेक रुप हमें देखने को मिलते हैं। कस्तूरी चन्दन व कुमकुम को मिलाकर गंध लिंग तैयार किया जाता है। भूमि लाभ के लिए सुगंधित पुष्पों को मिलाकर पुष्प लिंग का पूजन किया जाता है, आध्यात्मिक उन्नति के लिए कर्पूर लिंग पूजन किया जाता है ,तेजस्वता निरोगिता,व राज बाधा
से मुक्ति के लिए माणिक्य लिंग पूजन का पूजन किया जाता है सर्वसिद्धि के लिए अष्ट धातु लिंग तथा बुद्धि, चातुर्य ,व्यवहार के साथ-साथ पौरुष प्राप्त करने के लिए नीलम शिव लिंग के पूजन की बात कही गई है।
किसी विद्वान ब्राह्मण से ही रूद्राभिषेक करना चाहिए । पार्थिव लिंग बनाकर तथा विधि द्वारा षोडशोपचार पूजन किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार – प्रतिपदा आदि सोलह तिथियों के अग्नि आदि देवता स्वामी होते हैं अतः जिस तिथि का जो देवता स्वामी होता है उस देवता का उस तिथि में व्रत पूजन करने से उस देवता की विशेष कृपा उपासक को होती है। श्रावण माह में आज भी दूर दराज के गांवों में पूरे गांव के लोग सैमद्यो (जागेश्वर ) में आते हैं। इस जात्रा में गांव के सभी स्त्री ,पुरुष, बच्चे ,बूढ़े शामिल होते हैं। और गांव के सारे डंगरिये नाचते हुए देव हथियारों के साथ यात्रा में चलते हैं। डंगरियों का यात्रा में नाचते हुए चलना लोक नाट्य का सा दृश्य उपस्थित करता है। पर्वतीय ग्रामीण अंचलों में गांव की खुशहाली -सुख समृद्धि के उद्देश्य से सौण व पूस मास में कहीं कहीं छ मासी, कहीं त्रि मासी और कहीं कहीं बैसी का भी आयोजन यहां किया जाता है।
चतुर्दशी तिथि के स्वामी शिव है अथवा शिव की तिथि चतुर्दशी है। शिवार्चन पूजन सम्पन्न हो जाने के पश्चात शंख घण्ट की ध्वनि के साथ इन पार्थिव लिंगों का किसी जलाशय में विसर्जन कर दिया जाता है। चतुर्दशी के दिन जागेश्वर में मेला लगता है।
ॐ नमः शिवाय.

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