आदर्श वैदिक राजतन्त्र” विषय पर गोष्ठी संपन्न सब योजनाएं कार्यक्रम सबके लिए समान हों-अतुल सहगल

प्रकाशनार्थ समाचार

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नैनीताल l केन्द्रीय आर्य युवक परिषद् के तत्वावधान में “वैदिक आदर्श राजतन्त्र” विषय पर ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन किया गया।य़ह कोरोना काल से 643 वां वेबिनार था। वैदिक प्रवक्ता अतुल सहगल ने विषय की भूमिका के रूप में कुछ तथ्य और विचार प्रस्तुत किये और विषय के प्रमुख बिंदु सामने रखे जो आज के सन्दर्भ में उल्लेखनीय हैं।आज भारत में आम चुनाव का समय है और वातावरण राजनैतिक रोमांच से भरपूर है।इसी वर्तमान परिस्थिति के सन्दर्भ में आदर्श वैदिक राजतन्त्र की महत्ता को भूमिका के रूप में प्रस्तुत किया।किसी भी देश में सही और प्रभावशाली प्रशासन के लिए उसी प्रकार का राजतन्त्र आवश्यक है।आजकल कहा जा रहा है कि भारत का संविधान त्रुटिपूर्ण है और अनेक संशोधन मांगता है।उन्होंने
इस बात को सही बताया।कुछ राजनीतिक दल तो मतदाताओं को यह कहकर भयभीत कर रहे हैं कि उनके विरोधी दल सत्ता में आने पर संविधान बदल देंगे जिससे वर्ग विशेष को मिलने वाले लाभ समाप्त हो जायेंगे।वक्ता ने कहा कि सही वैदिक प्रजातंत्र में देश के नागरिकों को लाभ पंहुचाने वाली सरकारी योजनायें व कार्यक्रम सब वर्गों के लिए एक समान होंगी और इसमें किसी प्रकार का पक्षपात न होगा।सरकारी तंत्र के अंतर्गत सब कार्य पूर्ण रूप से न्यायोचित और पक्षपात रहित हों।मनुस्मृति में वर्णित आदर्श वैदिक प्रजातंत्र का ढांचा श्रोताओं के सामने रखा।इसमें इसके दो महत्वपूर्ण पहलुओं को प्रस्तुत किया — एक राजनीतिक दल रहित चुनाव व्यवस्था और दूसरा चुने हुए प्रतिनिधियों को वापस बुलाने का जनता को अधिकार।यदि प्रतिनिधि भ्रष्ट आचरण में लिप्त पाया जाए व अपना कार्य कुशलतापूर्वक न करे तो जनता को उसे वापस बुलाने का अर्थात उसके चुनाव को रद्द करने का अधिकार हो।उसके पश्चात् वक्ता ने तीन सशक्त सभाओं की बात कही जो आदर्श राजतन्त्र में अपेक्षित हैं।यह हैं –राजार्यसभा, विद्यार्यसभा और धर्मार्यसभा।मनुस्मृति में इंगित और महर्षि दयानन्द द्वारा उल्लेखित आदर्श राजतन्त्र के अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं की भी वक्ता ने चर्चा की।विश्व के अधिकांश देशों में प्रजातंत्र है लेकिन जहाँ राजतन्त्र उस देश की मौलिक संस्कृति और प्राचीन सामाजिक मूल्यों के अनुरूप हो वह देश उन्नति करता है।वक्ता ने विश्व के अनेक देशों का हवाला देते हुए कहा कि भारत में संविधान और राजतंत्र– दोनों ही भारतीय मूल वैदिक विचारधारा पर खरे नहीं उतरते हैं और संशोधन मांगते हैं।वक्ता ने पुनः वर्तमान में भारत की राजनीतिक पृष्ठभूमि में महत्वपूर्ण तथ्यों को प्रस्तुत करते हुए भारत को विश्व का नैसर्गिक मार्गदर्शक व गुरु बतलाया।भारत अपनी वैदिक विचारधारा की विरासत के अनुरूप अपना राजतन्त्र त्रुटिहीन करे और विश्व का मार्गदर्शन भी करे। मुख्य अतिथि आर्य नेता डॉ. गजराज सिंह आर्य व महेन्द्र नागपाल ने भी अपने विचार रखे। परिषद अध्यक्ष अनिल आर्य ने कुशल संचालन किया व राष्ट्रीय मंत्री प्रवीण आर्य ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

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