पहाड़ का विकास देहरादून और नैनीताल जैसे शहरों में बैठकर नहीं वरन् पर्वतीय क्षेत्रों में राजधानी और उच्च न्यायालय की स्थापना के बाद ही हो सकता है शाकिर अली
नैनीताल l उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी क्रांतिकारी मोर्चा के नैनीताल नगर अध्यक्ष शाकिर अली ने प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से एक बयान में कहा कि नैनीताल नगर से उच्च न्यायालय को सुविधाओं के नाम पर मैदानी क्षेत्र में स्थापित करने के जो प्रयास चल रहे हैं, उससे इस दो दशक पुराने राज्य की स्थिति की गंभीरता को समझा जा सकता है, कि जब राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के ख्याति प्राप्त प्रर्यटक स्थल जिसे सुनियोजित तरीके से अंग्रेजी शासन काल में अंग्रेजों द्वारा बसाया गया था, जो छोटी विलायत के नाम से भी जाना जाता था, उस नगर में सुविधाओं के नाम पर जब उच्च न्यायालय को मैदानी क्षेत्र में बसाये जाने की कवायद चल रही है, तो इससे साफ पता चलता है, कि इन दो दशकों में उत्तराखण्ड का कितना विकास अब तक की सरकारों द्वारा किया है,
राज्य आंदोलनकारी क्रांतिकारी मोर्चा के नगर अध्यक्ष शाकिर अली ने कहा कि 13 जिलों के उत्तराखण्ड राज्य की बदहाली की कहानी ये उच्च न्यायालय को मैदानी क्षेत्र में स्थापित किये जाने की कवायद से पता चलती है,
शाकिर अली ने कहा कि जब उत्तराखण्ड के नबंर दो के नगर नैनीताल की ये कहानी है, तो आप कल्पना कर सकते हैं, कि उत्तराखंड के दूरस्थ नगर कस्बों और गांवों की क्या स्थिति होगी,
राज्य आंदोलनकारी शाकिर अली ने कहाँ कि ये राज्य मात्र तीन जिलों ऊधमसिंह नगर, हरिद्वार और देहरादून जिलों के विकास के लिए नहीं मांगा गया था, ये राज्य पहाड़ के अन्य पर्वतीय जिलों के विकास के लिए भी मांगा गया था, परन्तु आज दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति ये हो गई है, कि इतने लंम्बे संघर्ष और बलिदान के बाद भी आज पूरे राज्य में प्रदेश की राजधानी और उच्च न्यायालय के लिए ही सुविधाओं को जुटाने के लिए ही बात की जा रही है, उन मूल भूत मुद्दो पर बात ही नहीं की जा रही है, जिसके लिए इस राज्य की स्थापना की गई थी
राज्य आंदोलनकारी शाकिर अली ने कहा कि अगर राज्य का सही मायनों में विकास करना है, तो प्रदेश की सरकार में इच्छा शक्ति और ईमानदारी होनी चाहिए कि पहाड़ का विकास देहरादून और नैनीताल जैसे शहरों में बैठकर नहीं वरन् पर्वतीय क्षेत्रों में राजधानी और उच्च न्यायालय की स्थापना के बाद ही हो सकता है, जब प्रदेश के मंत्री विधायक और नौकरशाह पहाड़ में रहकर पहाड़ की समस्याओं और वहाँ की पीड़ा को नजदीकी से देख सकते है,, ना कि देहरादून के वातानुकूलित कमरों में बैठक करके, इसका जीता जागता उदाहरण अभी उत्तराखण्ड के जंगलों में लगी भीषण आग से ही पता चलता है, कि इतने लोगों की मौतों और वन सम्पंदा के नुकसान के बात भी, मात्र देहरादून में बैठकों के माध्यम से सरकार और संबंधित अधिकारियों ने अपनी इति श्री कर ली l उत्तराखण्ड राज्य आंदोलनकारी क्रांतिकारी मोर्चा के नगर अध्यक्ष शाकिर अली ने कहा कि अब समय आ गया है, कि जब इन ज्वलंत मुद्दो पर खुलकर बात हो नहीं तो राज्य की मूल अवधारणा को खत्म करने की ये एक बहुत बड़ी साजिश होगी जिसे उत्तराखण्ड की जनता और प्रदेश की सत्तारूढ़ सरकार और अन्य राजनैतिक सामाजिक संगठनों को समझना होगा l