बग्वाल युद्ध में फल और डंडों से एक दूसरे पर किया वार 15 मिनट तक चला पाषाण युद्ध

नैनीताल। उत्तराखंड में देवीधुरा के ऐतिहासिक बग्वाल मेले में फल फूलों के बाद पारंपरिक तरीके से खूब चले पत्थर। 15 मिनट तक भव्य रूप से कार्यक्रम का आयोजन हुआ। बता दें कि रक्षाबंधन के मौके पर चंपावत के देवीधुरा मंदिर में बग्वाल मुख्य आकर्षण का केंद्र रहता है। इसको देखने के लिए दूरदराज से कई लोग आते हैं।कोरोना की वजह से 2 साल बाद भव्य रूप से इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया।बग्वाल मेला जिसे पाषाण युद्ध भी कहा जाता है अपने आप में दुनिया में आयोजित होने वाला एक अनोखा मिला है। मेले की प्राचीन मान्यता है कि इस क्षेत्र में पहले नरवेद्यी यज्ञ हुवा करता था, जिसमें मां बाराही को खुश करने के लिए अष्ट बली दी जाती थी। एक समय ऐसा आया जब एक घर में एक वृ़द्ध महिला का एक ही पुत्र बचा जिसे वह बहुत प्यार करती थी। वृद्ध महिला ने मां बाराही को याद किया और रात्री मां बाराही ने वृद्ध महिला को दर्शन दिए और बग्वाल मेले के आयोजन की बात कही। माँ बाराही ने वृद्ध महिला से कहा कि जबतक एक आदमी के बराबर रक्त नहीं बहता तब तक बग्वाल मेले चलना चाहिए। तभी से मां बाराही धाम में बग्वाल मेले का आयोजन होने लगा।देवी आराधना के साथ शुरू होता है भगवान……देवी की आराधना के साथ शुरू हो जाता है अछ्वुत खेल बग्वाल। बाराही मंदिर में एक ओर मा की आराधना होती है दूसरी ओर रणबाकुरे बग्वाल खेलते हैं। दोनों ओर के रणबाकुरे पूरी ताकत व असीमित संख्या में पत्थर तब तक चलाते हैं जब तक एक आदमी के बराबर खून न गिर जाए। बताया जाता है कि पुजारी बग्वाल को रोकने का आदेश जब तक जारी नहीं करते तब तक खेल जारी रहता है।इस खेल में कोई किसी का दुश्मन नहीं होता है। पूरे मनोयोग से बग्वाल खेली जाती हैं। यह भी मान्यता है कि इस खेल में कोई भी गंभीर रूप से घायल नहीं होता है। किसी का सिर फूटता है तो किसी का माथा। अंत में सभी लोग गले मिलते हैं। कुछ घायलों को प्राथमिक उपचार दिया जाता है।

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