……वो भूली दास्तां लो फिर याद आ गई।


कभी थोड़े से प्रयास से संगीत कि अनेक विभूतियां एक छोटी सी जगह में अपने अपने फन का जादू बिखेर देती थी वो भी चन्द पारखी लोगों कि संगत में बीना किसी दिखावे के बड़ी ही सादगी के साथ। वो भी क्या समय था। मुझे आज भी याद है गुरु जी रमेश चंद्र जोशी जी के घर( मल्लीताल नैनीताल) में जाड़े के दिनों में लगभग (६०) साठ दिनों कि संगीत कि बैठक हुआ करती थी। उसमें सिर्फ गाना बजाना होता था।
……एक बार संस्कृति कर्मी के.के. साह जी (तल्लीताल नैनीताल) ने एक साक्षात्कार में बतलाया कि उनके आवास पर पूस के रविवार कि किसी होली की बैठक में हम चार-पांच ही लोग थे प्रख्यात होली गायक रमेशचंद्र जोशी, अनूप साह और एक दो लोग और थे उस दिन बातौं ही बातौं में माहौल बड़ा भावुक हो पड़ा अनूप दा को अपने पिता जी कि तथा रमेश दा को अपने पिता जी कि याद आ गई उस दिन रमेश दा ने लगभग पौन घंटे तक स्थाई गायी होगी स्थिति को संभालते हुए मुझे कहना पड़ा कि रमेश दा आई अन्तरा लै छू।
…..ऐसी ही एक यादगार संगीत बैठक की यादों को (एक यादगार छाया चित्र ) आपके साथ सांझा कर रहा हूं। इस संगीत की बैठक में परम् आदरणीय हरिकिशन साह जी, कांता प्रसाद साह जी, सत्यनारायण सारंग जी, अनूप साह जी, दुर्गा लाल साह जी, के.सी. पन्त जी, शरद चन्द्र अवस्थी जी तथा……? सभी गुरूजनों को शत् शत् नमन।

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