“नवग्रह वेदी निर्माण व आलेखन पर विशेष।”संस्कृति अंक-आलेख -बृजमोहन जोशी. जनेऊ संस्कार के लिए वसन्त पंचमी का दिन बहुत ही शुभ माना गया है ।
नैनीताल l यज्ञोपवीत संस्कार के शुभ अवसर पर तथा अनुष्ठानिक अवसरों पर नवग्रह वेदी का निर्माण व आलेखन किया जाता है। उपनयन संस्कार के पहले दिन गृहजाग के सन्दर्भ में नवग्रह वेदी का निर्माण किया जाता है। श्रीमद् देवी भागवत कथा में नवग्रहों की पूजा के लिए मिट्टी की विशेष माप युक्त तीन सीढियों वाली चतुष्कोण वेदी का निर्माण किया जाता है। इसके समतल धरातल पर पहले नौ ग्रहों (रवि, चन्द्र, मंगल,बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि,राहु तथा केतु) का प्रतिनिधित्व करने वाले नवग्रह यंत्र का सूखे आटे से रेखांकन किया जाता है। केन्द्र में सूर्य का प्रतिनिधित्व करने वाले एक वृत्त का तथा परिधी में अष्टदल कमल , सूर्य के प्रतीक को पिठ्या (रोली) से, बृहस्पति को हल्दी ( पीत वर्ण) से, बुध को गहरे पीले से, शुक्र -चन्द्र को आटे (श्वेत ) से,मंगल को पिठ्या ( रोली) से, राहु को काले ( भूनें मास(उड़द) की दाल के चूर्ण ) से शनि को काले से, केतु को भूरे रंग से पूरित किया जाता है। अर्थात सारी पृष्ठभूमि को सूखें रंगों से अलंकृत किया जाता है। श्वेत व पीत रंगों को शुभ तथा काले रंग को अशुभ प्रभावक, तथा लाल -भूरे रंगों से पूरित ग्रहों को अतिशय प्रभावकारी माना जाता है । इन ग्रहों को जिन प्रतीक रूप में अंकित किया जाता है वें है – सूर्य को वृत्त, चन्द्र को वर्ग, मंगल को त्रिभुज,बुध को बाण, बृहस्पति को आयत, शुक्र को षट्कोण, शनि को धनुष, राहु को पूर्ण विराम चिह्न, केतु को पताका। अनुष्ठानिक धरातलीय रचनाओं में नवग्रहों के साथ साथ अथलिंगतोभद्र व सर्वतोभद्र मण्डलीय आदि रचना
-ओं का भी निर्माण अनुष्ठानिक अवसरों पर किया जाता है।