ओम् जय जगदीश हरेसंस्कृति अंक -संकलन कर्ता -बृजमोहन जोशी नैनीताल।दिनांक -२८-०९- २०२५.दिन – रविवार.

नैनीताल। ….आज से लगभग १६५ वर्ष पूर्व रची गई एक आरती आज भी घर घर में हर धार्मिक अनुष्ठान के बाद गायी जाती है। वह आरती है – “ओम् जय जगदीश हरे” ! लगभग १६५ वर्ष पूर्व इस आरती के गायक व रचियता थे विलक्षण प्रतिभाशाली विद्वान पण्डित श्रृद्धा राम जी। आपका जन्म ३० सितंबर १८३७ को पंजाब के लुधियाना के पास फुल्लौरी गांव में हुआ और आपका निधन २४ जून १८८१ को हुआ। पण्डित श्रृद्धा राम प्रसिद्ध साहित्यकार तो थे ही साथ ही सनातन धर्म प्रचारक,ज्योतिषी स्वतंत्रता सेनानी भी थे। पंजाब में उनकी पहचान एक धार्मिक व्याख्यान दाता, कथाकार व समाज सेवी के रूप में भी थी। पण्डित श्रृद्धा राम जी पंजाब के विभिन्न स्थलों पर यायावरी करते हुए रामायण व महाभारत की कथाएं लोगों को सुनाते रहते थे। दिन दुखियों के प्रति सहानुभूति रखना भी उनके स्वभाव में था। यहीं कारण था कि कथा में जो भी चढ़ावा आता उसे वह उन्हीं लोगों में सहर्ष बांट देते थे। उनके कथा वाचन में भी आकर्षण होता था, प्रवचन से पूर्व गाई जाने वाली आरती ” ओम् जय जगदीश हरे” के आप रचियता व गायक कलाकार दोनों ही थे।आपने अनेक धर्म सभाओं की भी स्थापना की थी।
इस आरती की रचना के पिछे एक रोचक कारण बताया जाता है। दरअसल पण्डित श्रृद्धा राम जी सनातनी धर्म के एक निष्ठ साधक थे। उनके व्याख्यानों में जादुई प्रभाव था। पण्डित श्रृद्धा राम जी ने अनुभव किया कि भागवत आदि कथाओं में लोग सही समय पर नहीं आते अत: कथा प्रवचनों के प्रति उन्हें जागृत करने के लिए भी कोई अच्छी प्रार्थना या आरती उपलब्ध हो तो संभवतया कथाओं में भी लोग स्वत: ही आने लग जायेंगे। बताया जाता है कि इस भाव की पूर्ति के लिए पण्डित श्रृद्धा राम जी ने इस आरती की रचना की। सत्य की इस आरती से उनकी कामना पूर्ण हुई।और यह आरती घर घर में लोक प्रिय हुई। इस रचना के पिछे पण्डित श्रृद्धा राम जी की कोई स्वमहत्व की कामना नहीं दिखती।क्योंकि सामान्य रूप से जब कोई कवि अपनी रचना संसार के समक्ष प्रस्तुत करता है तो प्रायः ही काव्य या कविता के अन्त में अपना नाम या उपनाम देकर अपनी पहचान कराता है, किन्तु पण्डित श्रृद्धा राम जी द्वारा रचित इस आरती में उनका पूरा नाम तो नहीं मिलता केवल आरती की अन्तिम अर्द्धाली में अवश्य एक संकेत मिलता है, जहां वे कहते हैं कि -“श्रृद्धा भक्ति बढ़ाओ संतन की सेवा”। आज इस आरती की रचना में इतने वर्षों बाद भी – “ओम् जय जगदीश हरे ” की लोक प्रियता इतनी है कि किसी भी पूजा अनुष्ठान के अंत में इसे गाकर ही समापन होता है।इसे रचा भले ही पण्डित श्रृद्धा राम जी ने हो,पर आज करोड़ों की भक्ति भावना को यह आदर दे रही है।
श्रृद्धा राम जी को शत् शत् नमन।
…..भक्त जनों के संकट क्षण में दूर करें, ओम् जय जगदीश हरे……!