उत्तराखण्ड जैवप्रौद्योगिकी परिषद्, पटवाडांगर में पंचम बायोटैक्नोलाॅजी काॅन्क्लेव का शुभारंभ


नैनीताल l बुधवार को उत्तराखण्ड जैवप्रौद्योगिकी परिषद्् के क्षेत्रीय केन्द्र पटवाडांगर में पंचम बायोटैक काॅन्क्लेव का शुभारंभ हुआ। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत “Harnessing Biotechnology for a Sustainable Bio-E3 Future” विषयक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन, उद्यमिता विकास कार्यक्रम, कृषक-वैज्ञानिक गोष्ठी, प्रदर्शनी तथा पोस्टर प्रदर्शनी कार्यक्रमों का संयुक्त रूप से आयोजन किया जा रहा है। कार्यक्रम का उद्घाटन मुख्य अतिथि डाॅ. मनमोहन सिंह चैहान, मा0 कुलपति, गो.ब. पन्त कृषि एवं प्रौ. वि.वि., पन्तनगर, विशिष्ट अतिथि डाॅ. नवीन चन्द्र लोहानी, मा0 कुलपति, उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय तथा मंचासीन अतिथियों सहित निदेशक, यूसीबी डाॅ. संजय कुमार ने दीप प्रज्वलित करके किया। निदेशक, यूसीबी, डाॅ. संजय कुमार ने तीन दिवसीय कार्यक्रम में पधारे हुए मुख्य अतिथि, विशिष्ट अतिथि, निदेशक, आई.आई.एम., काशीपुर, डाॅ. नीरज द्विवेदी, डाॅ. श्रद्धा द्विवेदी तथा रूस से आये प्रतिनिधि डाॅ. निकिटिन जोर्जी, डाॅ. वादिम आचिलोव, सेंट पीटर्सबर्ग विश्वविद्यालय, रूस, आॅनलाइन माध्यम द्वारा उद्घाटन समारोह से जुड़े भारतीय दूतावास, माॅस्को के डाॅ. आनन्द, डी.आर.डी.ओ., हल्द्वानी से डाॅ. अंकुर अग्रवाल, डी.बी.टी., पुणे से डाॅ अविनाश शर्मा, डाॅ. अवधेश कुमार, अधिष्ठाता, मत्स्य विज्ञान महाविद्यालय, पन्तनगर विश्वविद्यालय तथा अन्य मंचासीन अतिथियों, रिसर्च स्काॅलर्स, मीडिया टीम, प्रदर्शनी में आये प्रतिभागियों का स्वागत किया। डाॅ. संजय कुमार ने बायो-ई3 नीति का उल्लेख करते हुए कहा कि यह नीति जैवप्रौद्योगिकी के क्षेत्र में गतिमान शोध व अनुसंधानों को नये आयाम प्रदान करेगी, जिससे उत्तराखण्ड राज्य राष्ट्रीय से अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के विकास की ओर अग्रसर होगा। इस अवसर पर उन्होंने देश की प्रगति में कार्यरत जवानों, किसानों, वैज्ञानिकों तथा संस्थानों का स्मरण करते हुए जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान के साथ जय संस्थान का नारा दिया।
डाॅ. नवीन चन्द्र लोहानी ने अर्थव्यवस्था, पर्यावरण संरक्षण इत्यादि के बारे में अपने विभिन्न देशों के भ्रमण के अनुभव साझा किये। उन्होंने कहा कि भारत को भविष्य में बायो-ई3 नीति के माध्यम से जैवप्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करने का मौका मिलेगा, जिससे सन् 2047 तक भारत विश्वगुरू बनने की दिशा में आगे बढ़ेगा। डाॅ. लोहानी ने जैवप्रौद्योगिकी में किये गये अनुसंधानों को वृहद स्तर पर राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय बाजार तक ले जाने पर बल दिया तथा भारत सरकार के वर्ष 2030 तक जैवप्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों में गतिमान शोध व अनुसंधानों को 300 अरब डाॅलर तक ले जाने के लक्ष्य के बारे में बताया, जिससे भारत के युवा जैवप्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रांे के विषयों से जुड़कर विकास पथ पर अग्रसर हों।
डाॅ. नीरज द्विवेदी ने मंचासीन अतिथियों तथा प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि भारत को एक कृषि प्रधान देश के रूप में पहचान दिलाना हमारी जिम्मेदारी है। इस नयी बायो-ई3 पाॅलिसी के माध्यम से हमें एक कृषि प्रधान तथा प्रदूषण मुक्त भारत के निर्माण में सहयोग मिलेगा। उन्होने कहा कि बायो मैन्यूफैक्चरिंग बायो-ई3 पाॅलिसी का एक प्रमुख अंग है। उन्होंने चाइना के बायोमाॅड्यूल का उदाहरण देते हुए बायो-ई3 पाॅलिसी के अन्तर्गत योजनाओं के निर्माण व विस्तार के द्वारा भारत के अभूतपूर्व विकास हेतु कार्य करने पर जोर दिया। उत्तराखण्ड राज्य का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड राज्य के विभिन्न शोध संस्थानों, विश्वविद्यालयों इत्यादि के साथ उत्तराखण्ड राज्य के पास भारत को अग्रणी देश बनाने की क्षमता है।
अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिनिधि डाॅ. निकिटिन जोर्जी ने मंचासीन अतिथियों तथा प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए उत्तराखण्ड राज्य की हरियाली तथा मनमोहक दृश्यों की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड राज्य में कृषि एवं पशुपालन सहित जैवप्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों में अपार सम्भावनाऐं हैं जिन पर पन्तनगर विश्वविद्यालय तथा उत्तराखण्ड जैवप्रौद्योगिकी परिषद्् के साथ मिलकर उनके विश्वविद्यालय द्वारा नये शोध कार्यक्रम शुरू किये जायेंगे।
मुख्य अतिथि डाॅ. मनमोहन सिंह चैहान ने उत्तराखण्ड जैवप्रौद्योगिकी परिषद्् द्वारा बायोटैक काॅन्क्लेव के आयोजन द्वारा 300 से अधिक राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के वैज्ञानिकों, शोधार्थियांे, विषय-विशेषज्ञों इत्यादि को एक मंच पर एकत्रित करने की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि इस तरह के आयोजन की भविष्य में उत्तराखण्ड राज्य के वृहद स्तर पर विकास के लिए नई योजनाओं के निर्माण तथा उनके क्रियान्वयन की दिशा में अत्यन्त मुख्य भूमिका है, जो 2047 तक विकसित भारत के निर्माण में भी सहायक होगी। डाॅ. चैहान ने कहा कि उत्तराखण्ड में 48 प्रतिशत महिलाऐं एनीमिया, हीमोेग्लोबिन की कमी तथा आयरन की कमी जैसी समस्याओं से ग्रसित हैं। जिसका असर आने वाली पीढ़ियों में मधुमेह, कम लम्बाई तथा हृदय रोग जैसी बीमारियों के रूप में देखने को मिलता है। उन्होने पन्तनगर विश्वविद्यालय के सेंट पीटर्सबर्ग विश्वविद्यालय, रूस के साथ इन समस्याओं के निदान हेतु पोषक उत्पादों के निर्माण करने हेतु नई तकनीकी के विकास की दिशा में कार्य करने का उल्लेख किया, साथ ही काॅन्क्लेव में आये विभिन्न संस्थानों के वैज्ञानिकों को याकूल्ट जैसे उत्पादों का उदाहरण देते हुए उनका ध्यान बायोमैन्यूफैक्चरिंग द्वारा बायोमिक्स के निर्माण पर केन्द्रित किया, जिसके द्वारा भारत की अर्थव्यवस्था तथा मानव स्वास्थ्य के विकास में अभूतपूर्व प्रगति होगी। डाॅ. चैहान ने उत्तराखण्ड के विभिन्न फलों, मोटे अनाजों तथा अन्य दुर्गम पादपों के विकास हेतु उन पर नये शोध किये जाने का सुझाव दिया। अन्त में मुख्य अतिथि ने काॅन्क्लेव के आयोजन द्वारा अत्यधिक संख्या में वैज्ञानिकों, किसानों, विषय-विशेषज्ञों तथा विदेशी प्रतिनिधियों को एकत्रित करने पर निदेशक, यूसीबी को बधाई दी। कार्यक्रम का संचालन तथा धन्यवाद ज्ञापन डाॅ. मणिन्द्र मोहन ने किया। यहाँ परिषद्् के वैज्ञानिक डाॅ. कंचन कार्की, डाॅ. सुमित पुरोहित सहित परिषद्् के समस्त अधिकारी व कर्मचारी उपस्थित रहे।
इस अवसर पर उत्तराखण्ड जैवप्रौद्योगिकी परिषद्् द्वारा उत्तराखण्ड राज्य के विभिन्न संस्थानों के संयुक्त तत्वाधान में यूपीएस तथा यूपीटीईएस टीमों द्वारा उत्पादित उत्पादों का विमोचन किया गया तथा गणमान्य अतिथियों सहित निदेशक, यूसीबी द्वारा पटवाडांगर में वृक्षारोपड़ किया गया।

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