धन्वंतरि दिवस धनतेरस विशेष

“ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये: अमृतकलश हस्ताय सर्व भयविनाशाय सर्व रोगनिवारणाय नमः” जो अच्छे स्वास्थ्य और रोग-मुक्ति के लिए महत्वपूर्ण है। ॐ वासुदेवाय विद्महे सुधाहस्ताय धीमहि। तन्नो धन्वंतरिः प्रचोदयात्” भी शामिल है।
“ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये: अमृतकलश हस्ताय सर्व भयविनाशाय सर्व रोगनिवारणाय नमः अर्थात मैं उस भगवान धन्वंतरि को नमन करता हूँ जो हाथ में अमृत का कलश धारण करते हैं, जो सभी भयों और रोगों को दूर करते हैं।
धनतेरस के दिन सोना और चांदी के गहने या सिक्के खरीदना शुभ माना जाता है। इस दिन तांबा और पीतल के बर्तन खरीदने से देवी अन्नपूर्णा देवी बहुत ही प्रसन्न होती है। धनतेरस पर माता लक्ष्मी, कुबेर देवता और भगवान धन्वंतरि जी की पूजा होती है। इसी दिन धन्वंतरि जी का अवतरण हुआ था।
मान्यता है कि कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को समुद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। इस दिन को सुख-समृद्धि की साथ अच्छी सेहत से जोड़ा गया है।
इस तिथि को धनतेरस या धनत्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है। भारत सरकार ने धनतेरस को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है ।
धन्वन्तरि देवताओं के चिकित्सक है और चिकित्सा के देवता हैं, इसलिए चिकित्सकों के लिए धनतेरस का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। कहा जाता है कि समुद्र मन्थन के समय भगवान धन्वन्तरि और माँ लक्ष्मी का जन्म हुआ था । यही कारण है कि धनतेरस को भगवान धन्वन्तरि और माँ लक्ष्मी की पूजा की जाती है । धनतेरस दिवाली के दो दिन पहले मनाया जाता है।
धन्वंतरि भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं । उन्हें शल्य चिकित्सा का जनक भी कहा जाता है और उनके ज्ञान के कारण ही आयुर्वेद का ज्ञान मानव जाति तक पहुँचा।
उन्होंने आयुर्वेद को आठ श्रेणियों में विभाजित किया था । और सुश्रुत उनके सबसे प्रसिद्ध शिष्यों में से एक थे । धन्वंतरि के चार हाथों में शंख, चक्र, जड़ी-बूटी और अमृत का कलश होता है, जो उनके स्वास्थ्य और चिकित्सा से संबंध को दर्शाते हैं।
उनकी पूजा अच्छे स्वास्थ्य, दीर्घायु और रोगों से मुक्ति के लिए की जाती है।
धनतेरस पर धन्वंतरि की पूजा करने से आरोग्य, दीर्घायु और सुदृढ़ स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है । समुद्र मंथन के दौरान, वे अमृत का कलश लेकर निकले थे। इसलिए उन्हें आरोग्य और जीवन का प्रदाता माना जाता है।
उनके चार हाथों में शंख, चक्र, जड़ी-बूटी और अमृत का कलश होता है, जो उनके स्वास्थ्य और चिकित्सा से संबंध को दर्शाते हैं।
ह्रीं त्रिं हुं फट्। लक्ष्मी नारायण नमः। ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्री सिद्ध लक्ष्म्यै नमः। ॐ ह्रीं ह्रीं श्री लक्ष्मी वासुदेवाय नमः ।
” ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट-लक्ष्मी मम गृहे धनं पुरय पुरय नमः । सभी को उत्तम स्वास्थ्य की कामना के साथ जय धन्वंतरि शुभ दीपावली

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