बुरांश का फूल समय से पहले ही खिला

नैनीताल। रामगढ़ क्षेत्र में बुरांश के फूलों के सामान्य समय से दो महीने पहले खिलने से वनस्पति विज्ञानियों में चिंता का माहौल बन गया है। इस असामान्य घटना ने न केवल स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित किया है, बल्कि इसके दीर्घकालिक प्रभावों को लेकर विशेषज्ञों में गहरी चिंता भी उत्पन्न हो गई है। बुरांश के फूल, जिन्हें रोडोडेंड्रोन के नाम से भी जाना जाता है, हिमालयी क्षेत्र के पारंपरिक पौधे हैं जिनके औषधीय गुणों के कारण इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

विशेषज्ञों का मानना है कि फूलों के समय से पहले खिलने का कारण जलवायु परिवर्तन हो सकता है, और यह बदलाव उनके औषधीय गुणों पर प्रतिकूल असर डाल सकता है। कुमाऊं विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर ललित तिवारी ने इस घटना पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा, “पिछले एक दशक में ग्लोबल वार्मिंग के कारण हिमालयी क्षेत्र में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं, जिसका असर न केवल खेती पर, बल्कि वनस्पति पर भी पड़ा है।” बुरांश के फूलों का सामान्य खिलने का समय मार्च से अप्रैल के बीच होता है, लेकिन इस साल वे जनवरी में ही खिल गए हैं। तिवारी का कहना है कि यह विचलन जलवायु परिवर्तन के कारण हुआ है, क्योंकि बढ़ते तापमान और वातावरण में हो रहे बदलावों का फूलों के परागण और कीटों के व्यवहार पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।

औषधीय गुणों पर असर
विशेषज्ञों का मानना है कि बुरांश के फूलों का समय से पहले खिलना उनके औषधीय गुणों पर विपरीत असर डाल सकता है। बुरांश के फूलों में कई महत्वपूर्ण रसायन होते हैं, जो औषधीय उद्देश्यों के लिए उपयोगी माने जाते हैं। लेकिन बुरांश के फूलों का समय से पहले खिलने से इन रसायनों का उत्पादन ठीक से नहीं हो पा रहा है। विभिन्न पर्यावरणीय परिस्थितियाँ जैसे वर्षा, सूर्य की रोशनी, और तापमान में बदलाव इन रसायनों के उत्पादन को प्रभावित कर रहे हैं, जिससे फूलों का औषधीय उपयोग कम हो सकता है। पिछले कुछ वर्षों में जलवायु परिवर्तन के कारण बुरांश के फूलों के रंग में भी बदलाव देखा गया है। प्रोफेसर तिवारी ने बताया, “2011 में मैंने अपने छात्रों के साथ एक शोध किया था और पाया कि इन फूलों के रंग में धीरे-धीरे बदलाव आ रहा है।” इसके अलावा, विशेषज्ञों का मानना है कि समय से पहले खिलने वाले फूलों से उत्पादित बीजों की गुणवत्ता भी खराब हो सकती है, जिससे भविष्य में उगने वाले पौधों में औषधीय गुणों की कमी हो सकती है।

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कीटों और परागणकों पर प्रभाव
वनस्पतिशास्त्री ने भी इस विषय पर अपनी चिंता जताई है।कि फूलों के समय से पहले खिलने का असर केवल पौधों पर ही नहीं, बल्कि उनके साथ जुड़ी पारिस्थितिकी पर भी पड़ सकता है। बुरांश के फूलों पर निर्भर कीटों और पक्षियों के व्यवहार में भी बदलाव आ सकता है। “बदले हुए खिलने के चक्रों के कारण, परागणकों और कीटों के लिए उपलब्ध पराग में भी असंतुलन हो सकता है, जिससे परागण प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है। इससे फूलों के बीजों की गुणवत्ता पर असर पड़ सकता है, और बाद के पौधों में औषधीय तत्वों की कमी हो सकती है।”

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जलवायु परिवर्तन और बुरांश के फूलों पर शोध की आवश्यकता
इस घटनाक्रम ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अध्ययन करने की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक है। विशेषज्ञों का मानना है कि बुरांश के फूलों के औषधीय गुणों और उनके पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़े प्रभावों का गहराई से अध्ययन किया जाना चाहिए। कुमाऊं विश्वविद्यालय के प्रोफेसर तिवारी ने इस मुद्दे पर तत्काल शोध की आवश्यकता पर जोर दिया है। “हमें जलवायु परिवर्तन के कारण बुरांश के फूलों के खिलने के पैटर्न में आए बदलावों पर ध्यान देना होगा। इसके लिए व्यापक अध्ययन और शोध की जरूरत है। बुरांश के फूलों का समय से पहले खिलना हिमालयी क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र और औषधीय गुणों पर संभावित संकट को उजागर करता है। इस समस्या से निपटने के लिए विशेषज्ञों का मानना है कि हमें जलवायु परिवर्तन और इसके पर्यावरणीय प्रभावों पर गंभीरता से विचार करना होगा। अब वक्त आ गया है जब इस मुद्दे पर तत्काल शोध और कार्रवाई की आवश्यकता है ताकि भविष्य में बुरांश जैसे महत्वपूर्ण पौधों के औषधीय गुणों का संरक्षण किया जा सके।

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