19 अक्तूबर / जन्मदिवस सरल एवं हंसमुख प्रचारक अशोक बेरी

रा.स्व.संघ के वरिष्ठ प्रचारक अशोक बेरी का जन्म 19 अक्तूबर, 1948 को अपनी ननिहाल कपूरथला में हुआ था। उनके पिता श्री लखपतराय बेरी तथा माता श्रीमती सत्यादेवी थीं। उनका परिवार मूलतः लुधियाना का था। तीन भाई और चार बहिनों में उनका नंबर दूसरा था। पिताजी सी.डी.ए. (कंट्रोलर आॅफ डिफेंस अकाउंट) में सेवारत होने से श्रीनगर, जम्मू, मेरठ और अंत में रुड़की आ गये। जम्मू में उनका घर रघुनाथ मंदिर के पास था। वहां लगने वाली सायं शाखा के मुख्यशिक्षक रोज शिवाजी की एक कहानी सुनाते थे। लगभग एक महीने तक यह क्रम चला। उससे आकर्षित होकर 1957 में वे और उनके बड़े भाई शाखा जाने लगे।
1960 में पिताजी के मेरठ आने से अशोक जी की अधिकांश पढ़ाई वहीं हुई। 1963, 65 और 67 में उन्होंने तीनों वर्ष के संघ शिक्षा वर्ग पूर्ण किये। उस दौरान वहां विष्णु जी जिला और कौशल जी विभाग प्रचारक थे। 1969 में मेरठ काॅलिज से भौतिकी में एम.एस-सी कर वे प्रचारक बने। एक वर्ष बाद उन्होंने एम.फिल में प्रवेश लेकर रूसी भाषा का अध्ययन किया; पर तीन महीने बाद ही उसे छोड़ दिया और पूरी तरह संघ में रम गये। संघ शिक्षा वर्ग में वे खड्ग, शूल, छुरिका, वेत्र चर्म तथा घोष के शिक्षक रहते थे। नैनीताल जिला प्रचारक के साथ वे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के घोष प्रमुख भी थे।
प्रचारक जीवन में वे बागपत, एटा, बरेली, अल्मोड़ा और नैनीताल जिला, कुमाऊं/बरेली और सीतापुर विभाग, बरेली संभाग, मेरठ प्रांत, उ.प्र. के सेवा प्रमुख, पूर्वी उ.प्र. के क्षेत्र प्रचारक तथा फिर संघ की केन्द्रीय कार्यकारिणी के सदस्य रहे। इस दौरान उन पर प्रचार विभाग के जागरण पत्रकों की देखरेख तथा फिर सामाजिक सद्भाव गतिविधि का काम रहा। एक साल वे विश्व हिन्दू परिषद के साथ भी सम्बद्ध रहे।
आपातकाल में नैनीताल जिला प्रचारक रहते हुए वे जन जागरण आदि भूमिगत गतिविधियां चला रहे थे। इस दौरान वे पूरे कुमाऊं और मुरादाबाद तक जाते थे। जून 1976 में एक परिचित की मुखबिरी पर बस में यात्रा करते हुए गदरपुर में उन्हें पुलिस ने पकड़ लिया। जन्म से ही उनके दोनों हाथों की बीच की दो उंगलियां जुड़ी हुई थीं। सीधे हाथ का आॅपरेशन हो गया था, पर दूसरी वैसी ही थी। ये उनकी पहचान थी। उनके पास रज्जू भैया का एक पत्र था, जो उन्हें नैनीताल वि.वि. के उपकुलपति डी.डी.पंत को देना था। पहले डी.आई.आर और फिर मीसा में वे नौ मास नैनीताल जेल में रहे।
मेरठ प्रांत में मुस्लिम जनसंख्या बहुत अधिक है। जातीय और राजनीतिक आधार पर भी संघ का विरोध होता रहा है। इसके बावजूद नवम्बर 1998 में मेरठ में हुए ‘समरसता महाशिविर’ में लगभग 32,000 स्वयंसेवक पूर्ण गणवेश में शामिल हुए। इससे संघ का काम सुदूर गांवों और पहाड़ों में पहुंच गया। उनके कार्यकाल में अलग राज्य का आंदोलन भी चरम पर था। 1991 में उत्तरकाशी के भूकंप के बाद गंगा घाटी में व्यापक सहायता एवं नवनिर्माण कार्य हुए। आज तो पहाड़ में संघ का काम दूर तक फैला है; पर जब साधन और समर्थन नहीं था, तब पैदल और मोटरसाइकिल से घूमकर उन्होंने वहां काम खड़ा किया।
अशोक जी युवाओं के बीच रहना पसंद करते हैं। बचपन से ही उनकी जीभ में कुछ लड़खड़ाहट है; पर इसे उन्होंने अपने काम में कभी बाधक नहीं बनने दिया। इन दिनों वे संघ की केन्द्रीय कार्यकारिणी के आमंत्रित सदस्य के नाते पूरे देश में प्रवास करते हैं। दधीचि देहदान समिति, देहरादून के माध्यम से उन्होंने देहदान एवं नेत्रदान का संकल्प लिया है। ईश्वर उन्हें स्वस्थ रखे, यही कामना है।















