विश्व पर्यावरण दिवस विशेषपर्यावरणनाशेन, नश्यन्ति सर्वजन्तवः । पवनः दुष्टतां याति, प्रकृतिर्विकृतायते ।


पृथ्वी को सतत विकास के क्रम में भविष्य हेतु सुरक्षित रखने के लिए पर्यावरण की सुरक्षा करना हमारी जिम्मेदारी है। मानव और पर्यावरण के मध्य गहरा संबंध है तथा दोनो एक दूसरे के पूरक है ।प्रकृति के बिना जीवन संभव ही नहीं है । ऐसे में प्रकृति के साथ इंसानों को तालमेल रखना उसकी मजबूरी है । पर्यावरण के प्रति संचेतना और पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिए हर वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है ।पहली बार पर्यावरण दिवस की शुरुआत वर्ष 1972 में स्वीडन स्टॉकहोम कांफ्रेंस ऑन ह्यूमन एनवायरनमेंट तथा संयुक्त राष्ट्र जनरल असेंबली में तय हुआ ।गेलर्ड नेल्सन को फादर ऑफ अर्थ डे माना जाता है । पहला विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून 1973 को मनाया गया। वर्तमान में पर्यावरण प्रदूषण , जलवायु परिवर्तन ,ग्लोबल वार्मिंग , ऋतु परिवर्तन सबसे बड़ी वैश्विक समस्या है। मानवीय गतिविधियों के कारण प्रकृति में लगातार बढ़ते दखल के कारण पृथ्वी पर बहुत से प्राकृतिक संसाधनों का विनाश हुआ है। आधुनिकता से पृथ्वी पर पेड़-पौधों की कमी, पर्यावरण प्रदूषण का विकराल रूप, मानव द्वारा प्रकृति का अत्यधिक दोहन से प्रकृति के तथा मानव के मध्य असंतुलन की खाई उत्पन्न हो रही है। जलवायु परिवर्तन ,ग्लोबल वार्मिंग ने तो इस परिदृश्य को बदल दिया है।पर्यावरण की रक्षा और प्रकृति के उचित दोहन को लेकर हालांकि यूरोप, अमेरिका तथा अफ्रीकी देशों में 1910 से ही कई पर्यावरणीय समझौतों की शुरूआत हो गई थी किन्तु बीते कुछ दशकों में दुनिया के कई देशों ने इसे लेकर क्योटो प्रोटोकाल, यूनाइटेड नेशन कन्वेंशन क्लाइमेट चेंज ,पेरिस एग्रीमेंट , वियना ,मांट्रियल प्रोटोकाल, रियो सम्मलेन जैसे कई बहुराष्ट्रीय समझौते हुए है किंतु सरकारें पर्यावरण को लेकर चिंतित तो दिखती हैं लेकिन पर्यावरण की चिंता के बीच कुछ देश अपने हितों को देखते हुए पर्यावरण संरक्षण की नीतियों में बदलाव करते रहे हैं। प्रदूषित वातावरण का खामियाजा केवल मनुष्यों को ही नहीं बल्कि धरती पर विद्यमान प्रत्येक जीव को भुगतना पड़ता है। बड़े पैमाने पर खिलवाड़ के ही कारण दुनिया के विशालकाय जंगल हर साल सुलगने लगे हैं, जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था को खरबों रुपये का नुकसान होने के अलावा दुर्लभ जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की अनेक प्रजातियां भी भीषण आग में जलकर राख हो रही हैं। कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान दुनियाभर में पर्यावरण की स्थिति में सुधार देखा गया था, अगर हमारी जिजीविषा हो तो पर्यावरण की स्थिति में काफी हद तक सुधार किया जा सकता है लेकिन दृढ़ इच्छाशक्ति के अभाव में पर्यावरण संरक्षण को लेकर अपेक्षित कदम नहीं उठाए जाते। वैश्विक स्तर पर तापमान में निरन्तर हो रही बढ़ोतरी और मौसम का लगातार बिगड़ता मिजाज गहन चिंता का विषय बना है जिसमें उन्होंने इस वर्ष दिल्ली का तापक्रम 52.5 डिग्री तो नैनीताल जैसी ठंडी जगह भी 30 डिग्री से उपर पहुंच चुके है जबकि विश्व में 0.13 औसत तापक्रम वृद्धि प्रतिवर्ष है । जलवायु परिवर्तन से निपटने को लेकर चर्चाएं तो होती हैं, किंतु मानवीय दखल से अर्थहीन हो जाती हैं।मानवीय दौड़ के क्रियाकलापों के कारण वायुमंडल में कार्बन मोनोक्साइड, नाइट्रोजन, ओजोन और पार्टिक्यूलेट मैटर के प्रदूषण का मिश्रण खतरनाक स्तर पर है । हमें सांस के जरिये असाध्य बीमारियों की सौगात मिल रही है। सीवरेज की गंदगी स्वच्छ जल स्रोतों में छोड़ने की बात हो या औद्योगिक इकाईयों का अम्लीय कचरा नदियों में बहाने की अथवा सड़कों पर रेंगती वाहनों की लंबी-लंबी कतारों से वायुमंडल में धुआं ,जलती पराली से हवा में घुलते हजारों-लाखों टन धुएं से आंखें तब तक नहीं खुलती, ।पैट्रोल, डीजल से उत्पन्न होने वाले धुएं ने वातावरण में कार्बन डाईऑक्साइड तथा ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा बहुत बढ़ाया है । जंगल के पेड़-पौधे कार्बन डाईऑक्साइड को अवशोषित कर पर्यावरण संतुलन बनाने की भूमिका भी कंक्रीट के जंगलों में तब्दील होने से उसकी दर बहुत कम हो रही है । धरती का तापमान वृद्धि से ध्रुवीय क्षेत्रों में बर्फ पिघल रही है, जिससे समुद्रों का जलस्तर बढ़ने के कारण दुनिया के कई शहरों के जलमग्न होने की आशंका है । बर्फ गलने में पोलर बर्फ गलन
की दर 150 बिलियन टन प्रति वर्ष तो ग्रीन लैंड 270 बिलियन टन है जिससे पोलर बीयर एंडेंजर्ड हो गया है। प्रकृति कभी समुद्री तूफान तो कभी भूकम्प, कभी सूखा तो कभी अकाल हमें निरन्तर चेतावनियां देती रही है।
2024 की थीम लैंड रेस्टोरेशन ,डिजर्टिफिकेशन एंड ड्राफ्ट रेजिलेंसेज अर्थात भूमि पुनर्स्थापन, मरुस्थलीकरण और सूखे से निपटने की क्षमता
है जिसका नारा है हमारी भूमि। हमारा भविष्य जो मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन यू एन सी सी डी की 30वीं वर्षगांठ का प्रतीक है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार , पृथ्वी की 40 प्रतिशत भूमि क्षरित हो चुकी है, और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (44 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर) के लगभग आधे हिस्से पर खतरा मंडरा रहा है। 2000 के बाद से सूखे की संख्या और अवधि में 29 प्रतिशत की वृद्धि हुई है – अगर तत्काल कार्रवाई नहीं की गई, तो 2050 तक दुनिया की तीन-चौथाई से अधिक आबादी सूखे से प्रभावित हो सकती है। भूमि पुनर्स्थापन, पारिस्थितिकी तंत्र पुनर्स्थापन पर संयुक्त राष्ट्र दशक (2021-2030) एक प्रमुख स्तंभ है, जो दुनिया भर में पारिस्थितिकी तंत्रों के संरक्षण और पुनरुद्धार के लिए एक आह्वान है, जो सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण है । 2024 के लिए मेज़बान देश सऊदी अरब है, जो 2 से 13 दिसंबर 2024 तक यूएनसीसीडी के कॉन्फ्रेंस ऑफ़ द पार्टीज़ 16 के सोलहवें सत्र की मेज़बानी करेगा। उत्तराखंड में गत नवंबर से इस वर्ष तक जंगल में लगी आग से 1438 हेक्टेयर जमीन प्रभावित हुई है तो 1065आग लगने की घटना घटी है जिससे वातावरण प्रभावित हुआ है।
इसका एक हिस्सा मजबूत अल नीनो द्वारा प्रेरित था – प्रशांत महासागर के हिस्से में एक प्राकृतिक वार्मिंग, जो वायुमंडल के साथ मिलकर दुनिया भर में मौसम संबंधी प्रभाव डाल सकती है। पृथ्वी सबकी है इसमें जीवन बनाए रखना हमारा कर्तव्य है इसलिए मिल कर पौधे लगाए जिससे सभी हरे भरे बने रहे। वैसे तो वर्ष के 365 दिन ही पर्यावरण को समर्पित है इसीलिए वेदो में कहा गया है कि मनुष्य शरीर पृथ्वी, जल, अंतरिक्ष, अग्नि और वायु जैसे पांच तत्वों से निर्मित है। यदि इनमें से एक भी तत्व दूषित होता है तो इसका प्रभाव मानव जीवन पर अवश्य पड़ेगा। शुभकामनाओं के साथ
प्रोफ ललित तिवारी

Advertisement
Advertisement
Ad
Advertisement
Advertisement