वैदिक ज्ञान परम्परा और श्रावणी उपाकर्म गोष्ठी सम्पन्नवेदों में है ज्ञान का महासागर-डॉ. रामचन्द्र( कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय)

नैनीताल l केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के तत्वावधान में “वैदिक ज्ञान परंपरा और श्रावणी उपाकर्म ” विषय पर ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन किया गया I यह करोना काल से 734 वाँ वेबिनार था l
वैदिक विद्वान डॉ. राम चन्द्र (विभागाध्यक्ष संस्कृत कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय) ने कहा कि वेद ज्ञान का महासागर है l यह ईश्वर की वाणी है जिसमें सनातन और शाश्वत ज्ञान सुरक्षित है। इन्हें अपौरुषेय कहा जाता है। संसार के सभी बुद्धिजीवियों ने कहा है कि ऋग्वेद दुनिया का सबसे प्राचीनतम ग्रंथ है। भारत की सनातन ऋषि परंपरा में श्रावणी पूर्णिमा के दिन वेदारंभ एवं उपनयन संस्कार के माध्यम से बालक की शिक्षा का आरंभ किया जाता था। डॉ. रामचन्द्र ने कहा कि श्रावणी का दिन ज्ञान, तप एवं ज्ञान की दिशा निर्धारित करने का सबसे पवित्र दिवस है। प्राचीन काल में इस पुण्य दिवस पर नदी में स्नान करके आश्रमों में वेद के अध्ययन का संकल्प लिया जाता था। आचार्य यज्ञोपवीत एवं गायत्री मंत्र के साथ विद्यार्थी को शिक्षित करने का संकल्प करते थे। वैदिक परंपरा में आचार्य शिष्य को अपने मार्गदर्शन में इस प्रकार सुरक्षित रखते थे जैसे कि माँ बच्चे को अपने गर्भ में रखती है। यह एक अद्भुत संबंध है जिसकी उच्चता की कल्पना भी वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में नहीं की जा सकती। वर्तमान समय की भौतिक शिक्षा संस्कारों से विहीन होती जा रही है इसके निवारण की अत्यंत आवश्यकता है और इसका उपाय केवल इसी वैदिक ज्ञान परंपरा में सुरक्षित है। मुख्य वक्ता ने बताया कि भारत की ज्ञान परंपरा वेद, ब्राह्मण ग्रंथ, वेदांग,दर्शन, उपनिषद, रामायण और महाभारत तक की सुविस्तृत रूप में व्याप्त हो रही है। वर्तमान समय में भी देश भर में असंख्य गुरुकुलों एवं पाठशालाओं के माध्यम से वेद की इस पवित्र परंपरा का निरंतर विस्तार हो रहा है। यज्ञोपवीत के तीन सू़त्र हमें पितृऋण, ऋषि ऋण एवं देव ऋण से जोड़ते हैं। यह ऐसे ऋण हैं जो बालक के जन्म से ही जुड़े होते हैं। माता-पिता की सेवा, आचार्य परंपरा एवं शिक्षा के लिए अपना योगदान एवं प्राकृतिक देवों के अनुकूल आचरण से इन ऋणों से व्यक्ति मुक्त हो सकता है। वर्तमान समय में हम जब शिक्षा व्यवस्था में इन ऋणों की चर्चा नहीं करते तो समझ में विकृति का वातावरण सर्वत्र दिखाई दे रहा है। डॉ रामचन्द्र ने कहा कि श्रावणी पूर्णिमा का दिन रक्षा बंधन एवं विश्व संस्कृत दिवस के रूप में मनाया जाता है। समाज में बहनों एवं बेटियों के प्रति सम्मान का व्यवहार अत्यंत आवश्यक है। जिस समाज में इस शिक्षा में कमी आती है वह समाज नष्ट हो जाता है। इस दिन पर हमें संस्कृत के अध्ययन की परंपरा का भी संकल्प लेना चाहिए। मुख्य अतिथि आर्य नेता डालेश त्यागी व अध्यक्ष सुधीर बंसल ने भी विषय पर प्रकाश डाला. परिषद अध्यक्ष अनिल आर्य ने कुशल संचालन किया व प्रदेश अध्यक्ष प्रवीण आर्य ने धन्यवाद ज्ञापन किया गायिका कौशल्या अरोड़ा प्रवीना ठक्कर,जनक अरोड़ा, कमला हंस, रविन्द्र गुप्ता, संतोष धर आदि ने मधुर भजन सुनाए.
