राजनीति विज्ञान विभाग डीएसबी परिसर के तत्वाधान में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी शुरू

नैनीताल l राजनीति विज्ञान विभाग, डीएसबी परिसर, कुमाऊँ विद्यालय, नैनीताल के तत्वाधान में 21-22 सितंबर, 2023 को दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है। संगोष्ठी का विषय है- भारत में मानव अधिकारों के संरक्षण एवं पर्यावरण संरक्षण में जनहित याचिकाओं की भूमिका। 21/09/2023 को संगोष्ठी का उद्घाटन सत्र संपन्न हुआ। जिसमें स्वागत कार्यक्रम का संचालन पंकज सिंह द्वारा किया गया। कार्यक्रम की संयोजक प्रो. नीता बोरा शर्मा द्वारा जनहित याचिकाओं की संकल्पना पर प्रकाश डाला गया तथा अतिथियों का स्वागत किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि न्यायमूर्ति राजेश टंडन, विशिष्ट अतिथि प्रो. संजीव कुमार शर्मा, विशिष्ट अतिथि प्रो. विनीता पाठक, की-नोट वक्ता प्रो. एम. पी. दूबे एवं प्रो० मधुरेन्द्र कुमार कार्यक्रम में उपस्थित रहे। कार्यक्रम का विशेष संबोधन प्रो० डी० एस० रावत, कुलपति, कुमाऊँ विश्वविद्यालय नैनीताल द्वारा तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रो० कल्पना अग्रहरि द्वारा किया गया।
न्यायमूर्ति राजेश टंडन द्वारा जनहित याचिकाओं की संपूर्ण अवधारणा पर प्रकाश डाला गया। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 एवं 21 तथा भारतीय दण्ड संहिता की धारा 2(D) जैसे विधिक और न्यायिक प्रावधानों से सबको कराया गया। उन्होंने बताया कि किस प्रकार प्रो. अजय सिंह रावत द्वारा उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय में जनहित याचिकाएं दायर करके पर्यावरण संरक्षण में उल्लेखनीम योगदान दिया गया है।
प्रो. संजीव कुमार शर्मा द्वारा जनहित याचिकाओं का आलोचनात्मक विश्लेषण किया गया। उन्होंने कहा कि यदि कार्यपालिका और विधायिका अपने दायित्वों का जिम्मेदारीपूर्वक निर्वाह करेंगे तो जनहित याचिकाओं की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। हमने यह मान लिया है कि वह अपना कार्य नहीं करेंगे। इससे दो हानियाँ हुई हैं एक तो हमने कार्यपालिका और विधायिका को अधिक गैर-जिम्मेदार बना दिया है, न्यायपालिका को बहुत अधिक शक्तिशाली बना दिया है।
प्रो. एम० पी० दुबे द्वारा 10 दिसंबर, 1948 की मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा के साथ वक्तव्य की शुरुआत की गयी। उन्होंने ए० के० गोपालन बनाम मद्रास राज्य, मेनका गांधी बनाम भारत संघ, विशाखा बनाम राजस्थान राज्य जैसे मामलों को अनुच्छेद 21, मानव अधिकार तथा जनहित याचिकाओं की दिशा में उल्लेखनीय मामले कहकर सम्भोदित किया । प्रो० मधुरेन्द्र कुमार द्वारा बताया गया कि किस तरह मानव अधिकार, जनहित याचिकाएँ एवं पर्यावरण संरक्षण एक दूसरे से जुड़े हैं। उन्होंने कहा कि हम अधिकारों की बात करते हैं लेकिन कर्तव्यों का निर्वाह नहीं करते।
प्रो. डी० एस० रावत द्वारा सिंधु घाटी सभ्यता, अथर्वेद एवं भागवद गीता से प्रेरणा लेने का सुझाव दिया गया। उन्होंने कहा कि जब हम विकास की होड़ से दूर थे तब जनहित याचिकाओं जैसे किसी विधिक संरक्षण की आवश्यकता ही नहीं थी। अंत में प्रो. कल्पना अग्रहरि द्वारा सभी गणमान्य अतिथियों एवं प्रतिभागियों का सेमिनार में उपस्थित होने के लिये धन्यवाद ज्ञापन किया गया। सेमिनार के प्रथम दिवस पर प्रतिभागियों द्वारा 20 शोध पत्र प्रस्तुत किये गये। तकनीकी सत्र की अध्यक्षता प्रो. कैलाश चंद्र कालोनी, प्रो हरि ओम तथा उपाध्यक्षता प्रो नीता भारती द्वारा की गई।
संगोष्ठी में डॉ हरदेश कुमार, डॉ रुचि मित्तल, डॉ भूमिका प्रसाद, पंकज सिंह, अविनाश जाटव, धीरज गुरुंग, चंद्रालोक कुमार, राधिका देवी, कंचन जोशी, कृति तिवारी, ख़ुशबू आर्य, सत्येन्द्र तिवारी, प्रियंका विश्वकर्मा, गुलशन कुमार, हनुमंत सिंह, सतीश, गोपाल, कमलेश्वर, रवि कुमार, इंदर कुमार, राजबीर सिंह, विजय, कविता, पंकज आर्य आदि मोजूद थे।

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