कुमाऊं मंडल विकास निगम कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष राज्य आंदोलनकारी दिनेश गुरुरानी ने सरकार से मांग की है कि कोणार्क के सूर्य मंदिर की शैली में बना अनोखा चौबाटी के मडगांव स्थित सूर्य मंदिर का सौंदर्यीकरण किया जाए

नैनीताल l कुमाऊं मंडल विकास निगम कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष राज्य आंदोलनकारी दिनेश गुरुरानी ने सरकार से मांग की है कि कोणार्क के सूर्य मंदिर की शैली में बना अनोखा चौबाटी के मडगांव स्थित सूर्य मंदिर का सौंदर्यीकरण किया जाए । साथ ही इसे पर्यटन मानचित्र में लेते हुए इसे पर्यटकों से जोड़ा जाए।
गुरुरानी ने कहा कि सरकार द्वारा जहां डीडीहाट से चौबाटी तक सड़क का डामरीकरण किया गया है वही क्या कारण रहे हैं की चौबाटी से मात्र 4 किलोमीटर सड़क नहीं बनाई गई। उसमें भी राज्य आंदोलनकारी सुभाष जोशी के नेतृत्व में ग्रामीणों ने खुद चलने लायक रास्ता बनाया है ।उन्होंने कहा कि एक तरफ सरकार मंदिर माला कार्यक्रम के तहत मंदिरों को पर्यटकों से जोड़ रही है वहीं कुमाऊं का ऐतिहासिक सूर्य मंदिर अभी भी विकास से अछूता है। जबकि कुमाऊं के अल्मोड़ा जिले में स्थित कटारमल सूर्य मंदिर का सरकार द्वारा सौंदर्यीकरण कर वहां पर पर्यटक आवास गृह भी खोल दिया गया है। लेकिन जनपद पिथौरागढ़ की इस मंदिर की सुध नहीं ली गई ।उन्होंने इस संबंध में जिला पर्यटन अधिकारी को मड के सूर्य मंदिर के सौंदर्यीकरण करने के लिए पत्र प्रेषित किया है। उन्होंने कहा कि मड नामक ग्राम पिथौरागढ़ जनपद के डीडीहाट तहसील का एक हिस्सा है। मड डीडीहाट से 15 किलोमीटर दूर दक्षिण पूर्व दिशा में स्थित है। यहां के लिए डीडीहाट से चौबाटी तक मोटर मार्ग बना है आगे कुछ दूर तक गाड़ी जाती है वह भी काफी संकरा रास्ता है और फिर पैदल चलना पड़ता है।
मड नामक ग्राम में सूर्य देवता का कोणार्क के मंदिर की शैली में बना हुआ मंदिर है जो पूर्णतया दक्षिण के मंदिरों की शैली पर बना है। मड का पुराना नाम नाघर था यह मंदिर बनने के कारण इसका नाम मड यानी ,(देवताओं का स्थल,) पड़ा । इस जगह पर ब्राह्मण जाति के परिवार ही रहते हैं। यहां के ग्रामीणों से बात करने पर यह पता चला कि यह मंदिर रातों-रात विश्वकर्मा द्वारा बनाया गया जिसकी भनक तक भी ग्राम वासियों को नहीं लगी प्रातः होने पर ही लोगों ने पाया कि मंदिर बना हुआ है।
कुछ लोग इसे पांडवों द्वारा निर्मित बताते हैं।
कुछ लोग कहते हैं कि दक्षिण में जब मुसलमानों ने हिंदुओं के मंदिरों को तोड़ना प्रारंभ किया तो धर्म के रक्षक किसी सूर्यवंशी राजा द्वारा यहां विग्रह लाया गया शायद यही विचार उचित होगा। क्योंकि इस प्रकार की शिल्पकारी उत्तर भारत के मंदिरों में देखने को नहीं मिलती ।इसका नमूना व बनावट दक्षिण के मंदिरों व मूर्तियों से मिलती-जुलती है ।मंदिर की बनावट कोणार्क उड़ीसा के सूर्य मंदिर से भी मेल खाती है। इस मंदिर में शिव पार्वती, गणेश, सरस्वती, महाकाली व सूर्य देवता की मूर्तियां हैं।
सूर्य देवता की बडी बड़ी मूर्ति में सात घोड़े सप्ताह के 7 दिन के प्रतीक हैं। रथ के 24 पहिए 1 वर्ष के 24 पक्षो, पहिए की 8 तिलियां 8 प्रहरो के प्रतीक हैं।वास्तव में यह दक्षिण शैली में बना उत्तर भारत का अपनी तरह का अनूठा मंदिर है ।
उन्होंने कहा कि अगर इस मंदिर का सौंदर्यीकरण कर इसे सड़क मार्ग से जोड़ा जाता है तो आने वाले समय में यहां पर पर्यटकों का जमावड़ा लगा रहेगा जो यहां की आय का प्रमुख स्रोत भी हो सकता है। इस गांव में माल्टा नारंगी ,अनार सहित कई प्रजातियों के फलों की पैदावार होती है जिसे बाजार भाव मिलते ही आय साधन हो सकती है।
इधर गुरु रानी ने बताया कि 15 फरवरी को सूर्य पर्व होने पर यहां पर सुंदरकांड का पाठ किया जाएगा वहीं रात्रि में भी कार्यक्रम किए जाएंगे।
उनके द्वारा मंदिर परिसर में पूजा अर्चना के साथ-साथ एक पौधा धरती मां के नाम के तहत पौधारोपण किया गया ।इस कार्यक्रम में राज्य आंदोलनकारी सुभाष जोशी गणेश जोशी बसंत जोशी, केवलानंद जोशी सामाजिक कार्यकर्ता दीप जोशी विजय बोरा नरेंद्र सिंह विशाल जोशी सहित स्थानीय ग्रामीण उपस्थित रहे।

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