स्वामी विवेकानद (स्वामी विवेकानद जी के जन्म-दिवस पर १२ जनवरी १९५० को उनकी पावन स्मृति में समर्पित शब्दांजलि)

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‘भारत के रोग का सुस्पष्ट निदान कर अभ्युदय का मार्ग बतानेवाला, हिदू-समाज के वैभव-प्रासाद की नींव, धर्म, संस्कृति का ऐकात्म्यबोधक तत्त्वज्ञान ही हो सकता है, केवल आर्थिक या राजनैतिक सूत्रबंधन ही नहीं’- इस सत्य की घोषणा करनेवाले, तमोगुण व्याप्त अकर्मण्य एवम् प्रमत हिंदू समाज को सन्मार्ग प्रदर्शन कर तेजस्वी कर्मयोग का संदेश सुनानेवाले, उच्च-नीच आदि भेदभावों के विध्वंसक, व्यक्तिमात्र में नारायण का दर्शन कर उसकी सेवा करने का आदेश प्रदान करनेवाले हे महाविभूति भारत की पराधीन अवस्था में भी संसारभर को उसके तत्त्वज्ञान का जयजयकार करवानेवाले जगद्गुरो ! जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पारकीयों का अधानुकरण कर अपनी बुद्धि का खोखलापन, हीनता दासता प्रकट कर भारत को अभारतीय जड़वाद की ओर ले जानेवाले मूढ़ हिंदुओं के तथाकथित नेताओं के नेत्रों में स्वाभिमान का प्रखर अजन डालकर उन्हें जगानेवाले, भारत ही संसार का परमगुरु है इस सत्य को सिद्ध करनेवाले हे विश्ववद्य महात्मन्। आज फिर से परानुकरण एव अधार्मिकता के पथ पर चलनेवाले, मानवता से पशुत्व की ओर बढ़नेवाले चारों ओर फैल रहे हैं। आज आपका पुण्यस्मरण कर हम आपसे धर्म और सन्मार्ग का पथप्रदर्शन चाहते हैं।

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आपके आशीर्वाद से आज के अज्ञानजन्य अवगुणों को नष्ट कर, भेदरहित सूत्रबद्ध हिंदूसमाज प्रबल एवम् स्वाभिमानपूर्ण होकर अपने महान सांस्कृतिक गुणों का पुनरुज्जीवन कर प्रत्येक व्यक्ति को सुखपूर्ण जीवन प्राप्त करा देता हुआ संसार के सम्मुख स्पर्धाशून्य शांतिमय समाजजीवन का आदर्श खड़ा कर सकेगा। इस उद्दिप्ट को पाने के लिए हम आपके उपासक, आपसे यही वरदान माँगते हैं कि हमारा सपूर्ण जीवन इस महान उत्थान कार्य में व्यतीत हो, मार्ग में आनेवाले कष्ट भी सुखदायी हो सकें ऐसी हममें लगन हो और आपने जिस भारतमाता का जग में सम्मान बढ़ाया उसकी सेवा में हम लोगों का जीवन समर्पित हो।
प्रभु आपके स्मृतिदिवस के अवसर पर ये कुछ रूखे-सूखे शब्दपुष्प, जैसे भी हों, अर्पण कर रहा हूँ। यह अल्पपूजा स्वीकृत हो।
श्री गुरुजी समग्र : खंड 1 : पृष्ठ 51

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