जन आकांक्षाओं के अनुरूप नागरिक कानूनों में एकरूपता लाने की दिशा में मजबूती से कदम है यूसीसी : मनोज पाल (प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य, भाजपा)

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के कुशल नेतृत्व में उत्तराखंड ने बुधवार 7 फ़रवरी 2024 को समान नागरिक संहिता बिल यानी यूसीसी को ध्वनिमत से पारित कर इतिहास रच दिया है। उत्तराखंड समान नागरिक संहिता लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है। इसे ‘समान नागरिक संहिता उत्तराखंड 2024’ नाम दिया गया है। चार खंडों में 740 पृष्ठों के इस कानूनी मसौदे में कई धाराएं और उप-धाराएं हैं। इसमें उत्तराधिकार, विवाह, विवाह-विच्छेदन और लिव इन रिलेशनशिप के बारे में नियम-कानूनों का उल्लेख किया गया है। यूसीसी भारत में एक अत्यधिक विवादित और राजनीतिक रूप से ज्वलंत मुद्दा रहा है। समान नागरिक संहिता का उल्लेख भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में किया गया है, जो राज्य की नीति के निदेशक तत्व (Directive Principles of State Policy- DPSP) का अंग है। अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि ‘‘राज्य, भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिये एक समान सिविल संहिता प्राप्त कराने का प्रयास करेगा।’’
ये निदेशक तत्व कानूनी रूप से प्रवर्तनीय नहीं होते हैं, लेकिन नीति निर्माण में राज्य का मार्गदर्शन करते हैं। समान नागरिक संहिता का अर्थ है भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो। सभी धर्मों के लिए शादी, तलाक और जमीन-जायदाद के बंटवारे में एक ही कानून लागू होगा। इसका अर्थ एक निष्पक्ष कानून है, जिसका किसी धर्म से कोई ताल्लुक नहीं है। इसका उद्देश्य धर्म के आधार पर किसी भी वर्ग विशेष के साथ होने वाले भेदभाव या पक्षपात को खत्म करना है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू करने का वादा किया था। सरकार बनने के बाद धामी सरकार ने एक कमेटी बनाई थी। कमेटी ने ढाई लाख से ज्यादा सुझाव मांगे और उस आधार पर यूसीसी का ड्राफ्ट तैयार किया।यूसीसी बिल की प्रमुख बातें-
१. बेटे और बेटी के लिए समान संपत्ति का अधिकार: उत्तराखंड सरकार द्वारा तैयार समान नागरिक संहिता विधेयक में बेटे और बेटी दोनों के लिए संपत्ति में समान अधिकार सुनिश्चित किया गया है, चाहे उनकी कैटेगिरी कुछ भी हो। सभी श्रेणियों के बेटों और बेटियों को संपत्ति में समान अधिकार दिए गए हैं।
२. वैध और नाजायज बच्चों के बीच की दूरियां खत्म होंगी: विधेयक का उद्देश्य संपत्ति के अधिकार के संबंध में वैध और नाजायज बच्चों के बीच के अंतर को खत्म करना है। अवैध संबंध से होने वाले बच्चे भी संपत्ति में बराबर के हक होंगे. सभी बच्चों को जैविक संतान के रूप में पहचान मिलेगी। नाजायज बच्चों को दंपति की जैविक संतान माना गया है।
३. गोद लिए गए और बायोलॉजिकली रूप से जन्मे बच्चों में समानता: समान नागरिक संहिता विधेयक में गोद लिए गए, सरोगेसी के जरिए पैदा हुए या सहायक प्रजनन तकनीक के माध्यम से पैदा हुए बच्चों के बीच कोई अंतर नहीं है। उन्हें अन्य बायोलॉजिकली बच्चों की तरह जैविक बच्चा माना गया है और समान अधिकार दिए गए हैं।
४. मृत्यु के बाद समान संपत्ति का अधिकार: किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद, पति/पत्नी और बच्चों को समान संपत्ति का अधिकार दिया गया है. इसके अतिरिक्त, मृत व्यक्ति के माता-पिता को भी समान अधिकार दिए गए हैं. यह पिछले कानूनों से एकदम अलग है. पिछले कानून में मृतक की संपत्ति में सिर्फ मां का ही अधिकार था।
५. लिव-इन रिलेशनशिप के लिए नियम: लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले को जिले के रजिस्ट्रार के पास जाकर रजिस्ट्रेशन करवाना होगा। ऐसी रिलेशनशिप में रहने वाले 21 साल से कम उम्र के लड़के-लड़कियों को रजिस्ट्रेशन के लिए माता-पिता की सहमति लेनी होगी। अगर कोई कपल बिना सूचित किए एक महीने से ज्यादा लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहा होगा, तो उन्हें तीन महीने की जेल की सजा या 10 हजार रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है। इतना ही नहीं, अगर इस रिलेशनशिप को खत्म करना चाहते हैं तो उसकी जानकारी भी देनी होगी। लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के दौरान अगर बच्चा पैदा होता है तो उसे भी वैध माना जाएगा। इसके साथ ही अगर रिलेशनशिप टूटती है तो महिला अदालत जा सकती है और और गुजारा भत्ता की मांग कर सकती है।
६. इसके अतिरिक्त इस कानूनी मसौदे में बहुविवाह (एक से ज्यादा शादी) और बाल विवाह पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया है। सभी धर्मों में लड़कियों के लिए एक समान विवाह योग्य आयु और तलाक के लिए समान आधार और प्रक्रियाओं का पालन करना होगा।समान नागरिक संहिता विधेयक के कानून बनने पर किसी भी धर्म की संस्कृति, मान्यता और रीति-रिवाज इस कानून से प्रभावित नहीं होंगे बल्कि समाज में बाल विवाह, बहु विवाह, तलाक जैसी सामाजिक कुरीतियों और कुप्रथाओं पर रोक लगेगी। साथ ही बाल और महिला अधिकारों की यह कानून सुरक्षा करेगा। परस्पर विश्वास निर्माण के लिये सरकार और समाज को कड़ी मेहनत करनी पड़ती है, इसके लिए महत्त्वपूर्ण यह है कि धार्मिक रूढ़िवादिता के बजाय समान नागरिक संहिता को लोकहित के रूप में स्थापित किया जाए।

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