श्री हनुमान जन्मोत्सव विशेष

श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि. बरनऊं रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि. अर्थ- श्री गुरु महाराज के चरण कमलों की धूलि से अपने मन रूपी दर्पण को पवित्र करके श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूं, जो चारों फल धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला है ।
हनुमान जी को वानर देवता, बजरंगबली, और वायु देव के रूप में भी जाना जाता हैं । इनको अंजनेय और केसरी के पुत्र भी कहा जाता है । डर ,रोग ,संकट नाशक
हनुमान जी अपनी अपार शक्ति और ताकत के लिए प्रसिद्ध हैं ।
हनुमान जी कण कण में विद्यमान है इसलिए ये मारुति नंदन, पवन पुत्र, वीर हनुमान, सुंदर, और संकट मोचन के नाम से भी जाने जाते है तथा सिंदूर चढ़ाने की परंपरा भगवान राम की लंबी उम्र की कामना के लिए की गई थी.
कलियुग के जीवित देवता
हनुमान जी को भक्तों से बहुत जल्द प्रसन्न हो जाते है । हनुमान जयंती जिसे संस्कृत में हनुमज्ज्यंती , रोमन : हनुमज्जयंती तथा हनुमान जन्मोत्सव भी कहा जाता है , हनुमान जयंती का उत्सव भारत के प्रत्येक राज्य में समय और परंपरा के अनुसार बदलता रहता है। भारत के उत्तरी राज्यों में, यह त्योहार हिंदू महीने चैत्र की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है , तेलुगु राज्यों में अंजनेय जयंती तेलुगु कैलेंडर के अनुसार वैशाख माह में प्रत्येक बहुला (शुक्ल पक्ष) दशमी को मनाती है । कर्नाटक में , हनुमान जयंती शुक्ल पक्ष त्रयोदशी को, मार्गशीर्ष माह के दौरान या वैशाख में मनाई जाती है , हनुमान जयंती पूर्वी राज्य ओडिशा में पना संक्रांति पर मनाई जाती है , जो ओडिया नव वर्ष के साथ मेल खाती है।
ब्रह्माजी ने ही पवनदेव और बजरंगबली को जीवनदान दिया। इसी वजह से चैत्र पूर्णिमा के दिन हनुमान जन्मोत्सव मनाया जाता है जो इस वर्ष 12 अप्रैल 2025 को है ।धार्मिक मान्यता के अनुसार, कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर बजरंगबली को माता सीता ने अमर होने का वरदान दिया था। इसलिए कार्तिक माह में हनुमान जयंती मनाई जाती है।: हनुमान – जिनकी ठोड़ी टूटी हो ,
रामेष्ट – श्री राम भगवान के भक्त
उधिकर्मण – उद्धार करने वाले
अंजनीसुत – अंजनी के पुत्र
फाल्गुनसखा – फाल्गुन अर्थात् अर्जुन के सखा
सीतासोकविनाशक – देवी सीता के शोक का विनाश करने वाले
वायुपुत्र – हवा के पुत्र
पिंगाक्ष – भूरी आँखों वाले
लक्ष्मण प्राणदाता – लक्ष्मण के प्राण बचाने वाले
महाबली – बहुत शक्तिशाली वानर
अमित विक्रम – अत्यन्त वीरपुरुष
दशग्रीव दर्प: – रावण के गर्व को दूर करने वाले
हनुमान जी को कई अन्य नाम भी है जिनमें
पवनपुत्र, रामभक्त, सर्वमायाविभंजना, महाबली, महावीर, बजरंगबली, केसरीनंदन, अंजनीसुत, वायुपुत्र, सीताशोकविनाशक.
फाल्गुनसखा, पिंगाक्ष, अमितविक्रम, उदधिक्रमण, लक्ष्मणप्राणदाता, दशग्रीवदर्पहा, तेजस, उर्जित, विश्वेश, वायुनंदन. प्रसिद्ध है ।
हनुमान जी के 108 नामों का जाप करने से वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं. शनिवार के दिन शनिदेव के साथ-साथ हनुमान जी की पूजा की जाती है, इसलिए इस दिन हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए उनके नामों का जाप होता है। हनुमान जी को
पवनपुत्र जिसका अर्थ ‘पवन देवता का पुत्र’.
रामभक्त नाम का मतलब है ‘राम के प्रति समर्पित’.
सर्वमायाविभंजना नाम का अर्थ है ‘सभी भ्रमों का नाश करने वाला’.
वायुनंदन वायु के पुत्र, पवन देवता होता है.
हनुमान जी को वानर यूथपति भी कहा जाता
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के सेवक, कार्य साधक भगवान जिनकी महिमा अपरंपार है। उनके स्मरण मात्र से ही भूत-प्रेत, पिशाच तथा अनिष्टकारी शक्तियाँ दूर भाग जाती हैं। महावीर, ज्ञान, वैराग्य, बुद्घि के प्रदाता की साधना के अनेक रूप प्रचलित हैं। अपने भक्त की प्रार्थना सुनकर महावीर तत्काल सभी का कष्ट हर लेते हैं।
वैसे तो पूरे भारत में यह लोकप्रिय है किन्तु विशेष रूप से उत्तर भारत में यह बहुत प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय है। लगभग सभी भारतीय को यह कण्ठस्थ होती है। धर्म में हनुमान जी को वीरता, भक्ति और साहस की प्रतिमूर्ति माना जाता है। शिव जी के रुद्रावतार माने जाने वाले हनुमान अजर-अमर हैं। हनुमान जी का प्रतिदिन ध्यान करने और उनके मन्त्र जाप करने से मनुष्य के सभी भय दूर होते हैं। हनुमान चालीसा के पाठ से भय दूर होता है, क्लेश मिटते हैं तथा प्रसन्नता मिलती है । इसके गम्भीर भावों पर विचार करने से मन में श्रेष्ठ ज्ञान के साथ भक्तिभाव जागृत होता है।
मंगलवार एवं शनिवार को बजरंगबली की पूजा आराधना करने से भक्तों को संकट से मुक्ति मिलती है और व्यक्ति की सभी मनोकामनायें पूर्ण होती हैं। दिन में दो बार हनुमान चालीसा पढ़ने का एक विशेष महत्व है क्योंकि इससे जीवन के सभी दु:ख और संकट दूर हो जाते हैं। मान्यता है कि हनुमान भक्तों पर शनिदेव भी कृपा बरसाते है। शनिवार के दिन हनुमान चालीसा पढ़ने से शनि साढ़ेसाती और ढैया का प्रकोप भी कम होता है।
हनुमान चालीसा के लेखन का श्रेय तुलसीदास को दिया जाता है, जो 16वीं सदी के एक हिंदू कवि, संत और दार्शनिक थे। उन्होंने भजन के अंतिम श्लोक में अपने नाम का उल्लेख किया है। हनुमान चालीसा के 39वें श्लोक में कहा गया है कि जो कोई भी हनुमान जी की भक्ति के साथ इसका जप करेगा, उस पर हनुमान जी की कृपा होगी। विश्व भर में यह लोकप्रिय मान्यता है कि चालीसा का जाप गंभीर समस्याओं में हनुमान जी के दिव्य हस्तक्षेप का आह्वान करता है।
हनुमान चालीसा हनुमानजी को समर्पित १६वी शताब्दी में अवधी में लिखी गई एक काव्यात्मक कृति है जिसमें प्रभु राम के परमभक्त हनुमान के गुणों, पराक्रमो ओर निर्मल चरित्र का चालीस चौपाइयों में वर्णन है।
यह सरल भाषा में 40 श्लोकों में लिखी हनुमान चालीसा ,हनुमान जी की शक्ति, पराक्रम और भक्ति का वर्णन करती है, जिससे मन को शांति और भय से मुक्ति मिलती है.
हनुमान चालीसा के पाठ से भय, क्लेश और नकारात्मकता दूर होती है, और मन को शांति मिलती है तथा भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है , आध्यात्मिक शक्ति और आत्मविश्वास बढ़ता है.
रोगों और शारीरिक कष्टों से मुक्ति मिलती है ,अष्टसिद्धि और नव निधि के दाता है तथा
हनुमान चालीसा का पाठ जीवन में सफलता और तरक्की देता है सभी जीव धारियों को प्रभु श्री हनुमान की शक्ति बनी रहे यही प्रार्थना है । इसलिए भक्ति से
श्री हनुमान चालीसा
श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार ।
बल बुधि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार ॥
चौपाई ॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥
राम दूत अतुलित बल धामा ।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी ।
कुमति निवार सुमति के संगी ॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा ।
कानन कुण्डल कुँचित केसा ॥४
हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज जनेउ साजै ॥
शंकर स्वयं/सुवन केसरी नंदन ।
तेज प्रताप महा जगवंदन ॥
बिद्यावान गुनी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर ॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
राम लखन सीता मन बसिया ॥८
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।
बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
रामचन्द्र के काज सँवारे ॥
लाय सजीवन लखन जियाए ।
श्री रघुबीर हरषि उर लाये ॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई ।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं ।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।
नारद सारद सहित अहीसा ॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना ।
राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥१६
तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना ।
लंकेश्वर भए सब जग जाना ॥
जुग सहस्त्र जोजन पर भानु ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥
दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥२०
राम दुआरे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना ।
तुम रक्षक काहू को डरना ॥
आपन तेज सम्हारो आपै ।
तीनों लोक हाँक तै काँपै ॥
भूत पिशाच निकट नहिं आवै ।
महावीर जब नाम सुनावै ॥२४
नासै रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥
संकट तै हनुमान छुडावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥
सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिनके काज सकल तुम साजा ॥
और मनोरथ जो कोई लावै ।
सोई अमित जीवन फल पावै ॥२८
चारों जुग परताप तुम्हारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥
साधु सन्त के तुम रखवारे ।
असुर निकंदन राम दुलारे ॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता ॥
राम रसायन तुम्हरे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२
तुम्हरे भजन राम को पावै ।
जनम जनम के दुख बिसरावै ॥
अंतकाल रघुवरपुर जाई ।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥
और देवता चित्त ना धरई ।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥
संकट कटै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६
जै जै जै हनुमान गोसाईं ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥
जो सत बार पाठ कर कोई ।
छूटहि बंदि महा सुख होई ॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय मह डेरा ॥४०
॥ दोहा ॥
पवन तनय संकट हरन,
मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित,
हृदय बसहु सुर भूप ॥ डॉ ललित तिवारी


