नवरात्रि पर विशेष


सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते॥ हे नारायणी! तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगल मयी हो। कल्याण दायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थो को (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को) सिद्ध करने वाली हो। शरणागत वत्सला, तीन नेत्रों वाली एवं गौरी हो। हे नारायणी, तुम्हें नमस्कार है।
वर्ष के दो नवरात्र चैत्र एवम शरद के बहुत प्रसिद्ध है जब लोग शक्ति की आराधना , उपवास के साथ शक्ति देने वाली दुर्गा की आराधना करते है ताकि उनके शरीर एवम आत्मा में शक्ति की ऊर्जा का संचार होते रहे । शक्ति अर्थात समाने की शक्ति, सहन शक्ति, समेटने की शक्ति, सामना करने की शक्ति, परखने की शक्ति, निर्णय करने की शक्ति, सहयोग करने की शक्ति और विस्तार करने की शक्ति है।
नवरात्र में माता के नौ रूपों की पूजा नौ दिनो मे होती है तथा नौ कन्याओं का पूजन मां के नौ रुप अलग-अलग सिद्धियां के साथ दिखाई देते है । देवी महापुराण में शक्ति रूपी मां दुर्गा के नौ रूप का वर्णन है
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति. चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति.महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:। अर्थ पहली शैलपुत्री, दूसरी ब्रह्मचारिणी, तीसरी चंद्रघंटा, चौथी कूष्मांडा, पांचवी स्कंध माता, छठी कात्यायिनी, सातवीं कालरात्रि, आठवीं महागौरी और नौवीं सिद्धिदात्री है। पर्वत राज हिमालय जिसे शैलेंद्र या शैल भी है। शैल का अर्थ पहाड़, चट्टान है । देवी दुर्गा ने पार्वती के रुप में हिमालय के घर जन्म लिया। इसी कारण देवी का पहला नाम शैलपुत्री यानी हिमालय की बेटी है। मां शैलपुत्री की पूजा, धन, रोजगार और स्वास्थ्य के लिए की जाती है जो चट्टान की तरह मजबूती और अडिग है ।द्वितीय ब्रह्मचारिणी जिसका अर्थ है, जो ब्रह्मा के द्वारा बताये गए आचरण पर चले। जो ब्रह्म की प्राप्ति कराती हो हमेशा संयम और नियम से रहे। जीवन में सफलता के लिए सिद्धांत और नियमों पर चलने की बहुत आवश्यकता होती है। अनुशासन सबसे ज्यादा जरूरी है। ब्रह्मचारिणी की पूजा पराशक्तियों को पाने के लिए की जाती है।देवी का तीसरा रूप है, जिसके माथे पर घंटे के आकार का चंद्रमा है, इसलिए इनका नाम चंद्रघंटा है। जीवन में सफलता के साथ शांति एवम संतुष्टि देती है। आत्म कल्याण और शांति की तलाश में मां चंद्रघंटा की आराधना की जाती है । कुष्मांडा देवी का चौथा स्वरूप है। देवी से ही ब्रह्मांड की रचना मानी जाती है । इसी कारण इनका नाम कूष्मांडा पड़ा। ये देवी भय दूर करती हैं। भगवान शिव और पार्वती के पहले पुत्र हैं कार्तिकेय, उनका ही एक नाम है स्कंद। कार्तिकेय यानी स्कंद की माता होने के कारण देवी के पांचवें रुप का नाम स्कंद माता है। ये शक्ति की भी दाता हैं। सफलता के लिए शक्ति का संचय और सृजन की क्षमता दोनों जरूरी है। माता का ये रूप यही सिखाता है और प्रदान भी करता है। कात्यायिनी ऋषि कात्यायन की पुत्री हैं। कात्यायन ऋषि ने देवी दुर्गा की बहुत तपस्या की थी और जब दुर्गा प्रसन्न हुई तो ऋषि ने वरदान में मांग लिया कि देवी दुर्गा उनके घर पुत्री के रुप में जन्म लें। कात्यायन की बेटी होने के कारण ही नाम पड़ा कात्यायिनी। ये स्वास्थ्य की देवी हैं। शरीर का निरोगी रहना जरूरी है। रोग, शोक, संताप से मुक्ति हेतु देवी कात्यायिनी के पूजा की जाती है । काल यानी समय और रात्रि अर्थात रात। जो सिद्धियां रात के समय साधना से मिलती हैं उन सब सिद्धियों को देने वाली माता कालरात्रि हैं। आलौकिक शक्तियों, तंत्र सिद्धि, मंत्र सिद्धि के लिए इन देवी की उपासना की जाती है। बिना रुके और थके, लगातार सफलता हेतु इनकी आराधना की जाती है ।देवी का आठवा स्वरूप है महागौरी। गौरी यानी पार्वती, महागौरी ।पाप कर्मों से मुक्ति और आत्मा को फिर से पवित्र और स्वच्छ बनाने के लिए महागौरी की पूजा और तप किया जाता है। ये चरित्र की पवित्रता की प्रतीक देवी हैं,। नवम सिद्धिदात्री है ।शिव ने देवी के इसी स्वरूप से कई सिद्धियां प्राप्त की। शिव के अर्द्धनारीश्वर स्वरूप मे सिद्धिदात्री माता ही हैं। सिद्धि के अर्थ है कुशलता, कार्य में कुशलता और सलीका हो तो सफलता आसान हो जाती है। इसी तरह प्रकृति के पौधे भी मां की शक्ति को प्रणाम करते है
नौ पौधे जिसमें औषधीय गुण है उन्हे नवदुर्गा कहा जाता है जो मां को प्रिय है। प्रथम शैलपुत्री (हरड़) : औषधि हरड़ हिमावती है ।यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है यह पथया, हरीतिका, अमृता, हेमवती, कायस्थ, चेतकी और श्रेयसी सात प्रकार की होती है.द्वितीय ब्रह्मचारिणी (ब्राह्मी) जो आयु व याददाश्त बढ़ाकर, रक्तविकारों को दूर कर स्वर को मधुर बनाती है.इसलिए इसे सरस्वती भी कहा जाता है. तृतीय चंद्रघंटा (चंदुसूर) यह धनिए के समान है.जो मोटापा दूर करने में लाभप्रद है इसलिए इसे चर्महंती भी कहते हैं.चतुर्थ कूष्मांडा (पेठा) : कुम्हड़ा रक्त विकार दूर कर पेट को साफ रखता है मानसिक
रोगों में भी लाभप्रद है ।पंचम स्कंदमाता (अलसी) जो वात, पित्त व कफ रोगों नाशक है.इसमे फाइबर की मात्रा ज्यादा होने से इसे सभी को भोजन के पश्चात काले नमक भूनकर खाते है । यह खून भी साफ करता हैछटी कात्यायनी (मोइया) अम्बा, अम्बालिका व अम्बिका के अलावा इन्हें मोइया भी कहते हैं.यह कफ, पित्त व गले के रोगों की नाशक है सप्तम कालरात्रि (नागदौन) यह मन एवं मस्तिष्क के विकारों के साथ पाइल्स में लाभप्रद है । आठवी महागौरी (तुलसी) तुलसी सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरूता, दवना, कुढेरक, अर्जक और षटपत्र नाम से रक्त को साफ कर ह्वदय रोगों का नाश करती है. एकादशी के अलावा अन्य दिन खा सकते है ।नवम सिद्धिदात्री (शतावरी) : नारायणी शतावरी बल, बुद्धि एवं विवेक के साथ प्रसूता के लिए उपयोगी है ।
प्रकृति अपने रंगो के साथ शक्ति को समाहित करती है इसलिए कहा गया है या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥’ यानी जो देवी सब प्राणियों में शक्ति रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, नमस्कार, बारंबार नमस्कार है. इस प्रार्थना के साथ की माता की कृपा सभी लोको में बनी रहे। डॉ ललित तिवारी

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