श्री सीता नवमी व्रतनैनीताल। दिनांक ०६-०५-२०२५ आलेख बृजमोहन जोशी।


भारतीय समाज में जिस तरह श्री राम नवमी का माहात्म्य है,ठिक उसी प्रकार श्री जानकी नवमी का भी माहात्म्य है। जिस प्रकार अष्टमी तिथि भगवती श्री राधा तथा श्री कृष्ण के आविर्भाव से सम्बंधित है उसी प्रकार नवमी तिथि भगवती सीता तथा श्री राम के आविर्भाव की तिथि होने से परमादरणीया है। भगवती राधा का आविर्भाव भाद्र पद शुक्ल अष्टमी को और श्री कृष्ण का आविर्भाव भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को अर्थात दो विभिन्न अष्टमी तिथियों में हुआ।उसी प्रकार भगवती सीता का आविर्भाव वैशाख शुक्ल पक्ष नवमी और श्री राम का आविर्भाव चैत्र शुक्ल नवमी को अर्थात दो विभिन्न नवमी तिथियों में हुआ।
वैशाख मास की शुक्ल नवमी को जबकि पुण्य नक्षत्र था, मंगल के दिन संतान प्राप्ति की कामना से यज्ञ कि भूमि तैयार करने के लिए राजा जनक हल से भूमि को जोत रहे थे उसी समय पृथ्वी से उक्त देवी का प्राकट्य हुआ ‘जोती’ हुई भूमि को तथा हल की नोक को भी ‘ सीता’ कहते हैं। अतः प्रादुर्भूता भगवती विश्व में भगवती सीता के नाम से विख्यात हुई। इसी नवमी की पावन तिथि को भगवती सीता का प्राकट्योत्सव मनाया जाता है। दशमी के दिन पारण करके व्रत की सम्पन्नता करनी चाहिए। दशमी के दिन व्रत की पूर्णाहुति करके मण्डप का विसर्जन करना चाहिए। इस प्रकार व्रतोत्सव करने वाले पर भगवती सीता तथा श्री राम सदा प्रसन्न रहते हैं।
आप सभी महानुभावों को श्री जानकी नवमी तिथि की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं।

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