सिलक्यारा सुरंग से बचाए गए श्रमिकों को सलाम करते हुए और पूरी बचाव टीम की सराहना करते हुए — विशेष रूप से बारह ‘रैट-होल’ माइनर्स की, जिन्होंने कौशल और साहस दोनों का शानदार प्रदर्शन किया, और जो निश्चित रूप से अपने काम के लिए अधिक उपयुक्त नाम के हकदार हैं — हमें सुरंग के ढहने से उठे कुछ बड़े सवालों पर भी विचार करना चाहिए नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य

नैनीताल l नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने कहा कि इस घटना ने पश्चिमी हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र की नाज़ुकता और जटिलता को पूरी स्पष्टता के साथ हमारे सामने ला दिया है। इस क्षेत्र में सिविल निर्माण और अन्य परियोजनाओं की योजना, डिज़ाइन और कार्यान्वयन के मामले में पर्यावरण मूल्यांकन प्रक्रिया की विफलता भी सामने आई है। उदाहरण के लिए, चार धाम परियोजना में, जिसका ढही हुई सुरंग एक हिस्सा था, निर्माण कार्यों को इस तरह से आवंटित किया गया ताकि पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन से पूरी तरह बचा जा सके! सुरंग पर व्यापक रूप से स्वीकृत सुरक्षा सुविधाएं नहीं होने पर रिपोर्ट्स आई हैं। 41 श्रमिकों को 17 दिनों तक जिस सदमे से गुज़रना पड़ा है, उससे हमें थोड़ा रुक कर सोचना चाहिए। वैसी सभी परियोजनाएं जिनका क्रियान्वयन जारी है, उनका गहन ऑडिट किया जाना चाहिए, और हिमालयी क्षेत्र में भविष्य की सभी परियोजनाओं को रोक कर उन्हें प्रोफेशनल पारिस्थितिक जांच के अंतर्गत लाना चाहिए।
राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन संस्थान के पूर्व निदेशक सत्येन्द्र सिंह जी ने कहा कि, किसी भी परियोजना में आपदा प्रबन्धन हेतु कुल परियोजना लागत का दस फीसद 10% रखा जाता है और रखना ही चाहिये ।
यह सुरंग परियोजना 1400 करोड़ रूपये की है, इस तरह इसमें 140 करोड़ रुपया आपदा मद में होना चाहिये था । सवाल है कि क्या ऐसा किया गया होगा .?
यदि हां तो उस मद में क्या खर्चा किया गया .. क्योंकि ज़मीनी स्तर पर तैयारी तो शून्य थी.! सरकार की इस बात की कोई सोच, तैयारी नहीं है कि आपदा न आए ..कोई प्राकृतिक घटना आपदा न बने. अर्थात प्री डिजास्टर मैकेनिज्म नहीं है ।जबकि यह किया जा सकता है । मौसम के पूर्वानुमान हमारे को आज उपलब्ध हैं, आपदा क्षेत्र चिन्हित हैं, हर तरह का डेटा बेस उपलब्ध है.. साथ ही जहां जहां विकास का कार्य हो रहा है उसकी भूगर्भिक और बाकी जानकारी उपलब्ध है ।
उत्तरकाशी का सुरंग हादसा इसका ताजा उदाहरण है । एक दशक पहले उद्घाटन किए गए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के कार्यालय के प्रवेश द्वार पर ये शब्द हैं: प्रकृति रक्षति रक्षितः। यह हमारी सभ्यता की विरासत में अंतर्निहित एक सरल लेकिन बेहद महत्वपूर्ण सिद्धांत है। लेकिन दुख की बात है कि इसका केवल दिखावा किया जा रहा है जिसका परिणाम हमारे लिए विनाशकारी होगा।

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