प्रसिद्ध लेखक और संरक्षणविद् एडवर्ड जेम्स कॉर्बेट की 150वीं जयंती के अवसर पर कुमाऊँ विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग, कुमाऊँ विश्वविद्यालय के छात्र क्लब संक्रांति और नासा (नैनीताल एक्वेटिक एंड एडवेंचर स्पोर्ट्स एसोसिएशन ) के संयुक्त तत्वावधान में एक विशेष स्मृति कार्यक्रम आयोजित किया गया

नैनीताल l प्रसिद्ध लेखक और संरक्षणविद् एडवर्ड जेम्स कॉर्बेट की 150वीं जयंती के अवसर पर कुमाऊँ विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग, कुमाऊँ विश्वविद्यालय के छात्र क्लब संक्रांति और नासा (नैनीताल एक्वेटिक एंड एडवेंचर स्पोर्ट्स एसोसिएशन ) के संयुक्त तत्वावधान में एक विशेष स्मृति कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में विद्यार्थियों, शिक्षकों व अतिथियों ने कॉर्बेट के जीवन, लेखन और कुमाऊँ से उनके गहरे संबंधों पर आधारित प्रस्तुतियाँ दीं।
कार्यक्रम की शुरुआत सहायक प्रोफेसर शिवानी रावत के स्वागत भाषण से हुई, जिसमें उन्होंने स्थानीय साहित्यिक परंपरा से छात्रों को जोड़ने के महत्व पर प्रकाश डाला। संक्रांति क्लब की छात्र संपादक नंदिनी ने कॉर्बेट को “एक शिकारी जिसने बंदूक की जगह कलम उठाई” कहते हुए उनके जीवन और कुमाऊँ से जुड़ाव को सरल भाषा में प्रस्तुत किया।
संक्रांति क्लब के अध्यक्ष डॉ. रीतेश साह, ने कॉर्बेट की लेखन शैली और पारिस्थितिक दृष्टिकोण को विश्लेषित किया। उन्होंने कहा, “कॉर्बेट की कहानियाँ साहसिकता के साथ-साथ प्रकृति के प्रति सहानुभूति और समझ का सुंदर मिश्रण हैं। वे केवल रोमांच नहीं, बल्कि मानव-प्रकृति के बीच संवेदनशील संवाद हैं।”
डॉ संक्रांति क्लब के अध्यक्ष डॉ. रीतेश साह, ने इस अवसर पर कॉर्बेट के स्कूली जीवन, लेखन कार्य, और नैनीताल से उनके गहरे संबंधों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि उनकी पुस्तकें विद्यार्थियों और शोधार्थियों को नैनीताल की सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत से जोड़ने का प्रयास हैं। उन्होंने विशेष रूप से यह भी कहा कि कॉर्बेट का कार्य केवल जंगल की कहानियाँ नहीं, बल्कि इतिहास, संवेदना और संरक्षण का जीवंत दस्तावेज है। डॉ. साह ने यह भी जानकारी दी कि कॉर्बेट का प्रमुख उद्देश्य उन नरभक्षी बाघों और तेंदुओं का शिकार करना था, जो मानव जीवन के लिए प्रत्यक्ष खतरा बन चुके थे।
कॉर्बेट को ऐसे 33 नरभक्षी जानवरों का शिकार करने का श्रेय दिया जाता है, जिन पर अनुमानित रूप से 1,200 से अधिक लोगों की मृत्यु का आरोप था। इनमें सबसे चर्चित शिकार चंपावत की बाघिन थी, जो अकेले ही 436 लोगों की जान ले चुकी थी, और रुद्रप्रयाग का नरभक्षी तेंदुआ, जिसने लगभग 125 लोगों को अपना शिकार बनाया था।
डॉ. साह ने कहा कि कॉर्बेट को उनकी जयंती पर याद करना केवल अतीत को सम्मान देना नहीं है, बल्कि यह अवसर है उनके बहुआयामी योगदान एक शिकारी, प्रकृतिविद, लेखक और सबसे बढ़कर, वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में अग्रदूत को समझने और प्रकृति की रक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराने का।
लघिमा जोशी ने “द चम्पावत मैन -ईटर ” से एक भावनात्मक अंश का वाचन किया, जिसमें कॉर्बेट की भाषा, करुणा और संवेदनशीलता स्पष्ट झलकी। उन्होंने कॉर्बेट की प्रसिद्ध पंक्ति भी दोहराई: “द टाइगर इज ए लार्ज -हार्टेड जेंटलमैन विथ बाउंडलेस करेज .”
नकुल बिष्ट ने ” मैन -ईटिंग लेपर्ड ऑफ़ रुद्रप्रयाग ” पर प्रस्तुति दी, जिसमें उन्होंने उस समय की सामाजिक, धार्मिक और भौगोलिक पृष्ठभूमि को सरल शब्दों में प्रस्तुत किया। रंगकर्मी नकुल देव साह ने पुस्तक के अंश का नाटकीय पाठ कर दर्शकों को उस समय की भयावहता और रोमांच का अनुभव कराया।
नासा अध्यक्ष श्री यशपाल रावत ने युवाओं से आह्वान किया कि वे कॉर्बेट के दिखाए मार्ग पर चलें और जैव विविधता की रक्षा में सक्रिय भागीदारी निभाएं।
इतिहास विभाग के प्रोफेसर एवं संयोजक प्रो. संजय घिल्डियाल ने समापन सत्र में एडवर्ड जेम्स कॉर्बेट की ऐतिहासिक भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि कॉर्बेट केवल एक लेखक या शिकारी नहीं थे, बल्कि वे अपने समय के पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता को समझा और अपने लेखन के माध्यम से जागरूकता फैलाने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि कॉर्बेट की कहानियों में वन्य जीवन के प्रति जो करुणा और समझ दिखाई देती है, वह आज के संदर्भ में अत्यंत प्रासंगिक है।
प्रो. घिल्डियाल ने यह भी उल्लेख किया कि कॉर्बेट के कार्यों और दृष्टिकोण को शोध के एक समृद्ध स्रोत के रूप में देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि छात्र-छात्राएं उनके साहित्य के माध्यम से न केवल वन्य जीवन और स्थानीय समाज के संबंध को समझ सकते हैं, बल्कि पर्यावरण इतिहास, मानव-प्रकृति संबंध और संरक्षण नीति जैसे विषयों पर भी आगे शोध कर सकते हैं।
कार्यक्रम का समापन डॉ. शिवानी रावत के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ, जिसमें उन्होंने सभी सहयोगियों, वक्ताओं और छात्र-छात्राओं का आभार व्यक्त किया और कहा कि “इस प्रकार के साहित्यिक आयोजन विद्यार्थियों को अपनी जड़ों, इतिहास और प्रकृति से जोड़ने का माध्यम बनते हैं।” कार्यक्रम में प्रो. संजय टम्टा, डॉ. हरिप्रिया पाठक, डॉ. मनोज बाफिला नासा के संयुक्त सचिव श्री सागर देवरारी और डीएसबी परिसर के विद्यार्थियों की गरिमामयी उपस्थिति ने आयोजन को और भी समृद्ध बना दिया।

Advertisement