पुण्‍यतिथि पर विद्वान पंडित विष्णु नारायण भातखंडे के योगदान को किया गया याद ।

देहरादून। ग्रासरूट अवेयरनेस एंड टेक्निकल इंस्टीट्यूट फॉर सोसायटी (गति) एवं शैल कला एवं ग्रामीण विकास समिति के संयुक्त तत्वावधान में आज हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के मर्मज्ञ विद्वान पंडित विष्णु नारायण भातखंडे की पुण्‍यतिथि पर उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए याद किया गया।
इस कार्यक्रम का शुभारम्भ भातखंडे जी को नमन करते हुए किया गया। इस अवसर पर शैल कला एवं ग्रामीण विकास समिति के अध्यक्ष श्री स्वामी एस चंद्रा ने कहा कि भातखंडे जी संगीत के साथ साथ सामाजिक व साहित्यिक व्यक्तित्व के धनी थे। आज ही के दिन 10 अगस्त 1860 को मुंबई में जन्मे भातखंडे जी ने शास्त्रीय संगीत के सबसे बड़े आधुनिक आचार्य के रूप में अपना स्थान बनाया है। संगीत बिरादरी में उनका नाम बड़े आदर व सम्मान के साथ लिया जाता है। पूरी तरह से नि:स्वार्थ और समर्पित संगीत साधक भातखंडे जी ने हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत को वैज्ञानिक पद्धति से व्यवस्थित, वर्गीकृत और मानकीकृत करने का पहला आधुनिक प्रयास किया था। उन्होंने देश भर में घूम-घूमकर उस्तादों से बंदिशें एकत्रित करने, विभिन्न रागों पर उनसे चर्चा करके उनके मानक रूप निर्धारित करने और संगीतशास्त्र के रहस्यों से पर्दा उठाते हुए अनेक विद्वत्तापूर्ण पुस्तकें लिखने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया था। इस अवसर पर गति के सचिव एवं कार्यक्रम संयोजक नीरज उनियाल द्वारा उनके योगदान संगीत एवं साहित्यिक जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि पंडित जी की लगन आरंभ से ही संगीत की ओर थी। उनकी संगीत यात्रा 1904 में शुरू हुई, जिससे इन्होंने भारत के सैकड़ों स्थानों का भ्रमण करके संगीत सम्बन्धी साहित्य की खोज की। इन्होंने बड़े-बड़े गायकों का संगीत सुना और उनकी स्वर लिपि तैयार करके ‘हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति क्रमिक पुस्तक-मालिका’ के नाम से एक ग्रंथमाला प्रकाशित कराई, जिसके छ: भाग हैं। शास्त्रीय ज्ञान के लिए विष्णुनारायण भातखंडे ने हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति जो हिन्दी में ‘भातखंडे संगीत शास्त्र’ के नाम से छपी थी, जिसके चार भाग मराठी भाषा में लिखे गए हैं। संस्कृत भाषा में भी इन्होंने ‘लक्ष्य-संगीत’ और ‘अभिनव राग-मंजरी’ नामक पुस्तकें लिखकर प्राचीन संगीत की विशेषताओं तथा उसमें फैली हुई भ्राँतियों पर प्रकाश डाला। विष्णुनारायण भातखंडे ने अपना शुद्ध ठाठ ‘बिलावल’ मानकर ठाठ-पद्धति स्वीकार करते हुए दस ठाठों में बहुत से रागों का वर्गीकरण किया। वर्ष 1916 में पंडित भातखंडे जी द्वारा बड़ौदा में एक विशाल संगीत सम्मेलन का आयोजन किया, जिसका उद्घाटन महाराजा बड़ौदा द्वारा हुआ था। इसमें संगीत के विद्वानों द्वारा संगीत के अनेक तथ्यों पर गम्भीरता पूर्वक विचार हुआ। इसी आयोजन में एक ‘ऑल इण्डिया म्यूजिक एकेडेमी’ की स्थापना का प्रस्ताव भी स्वीकर हुआ। इस संगीत सम्मेलन में विष्णुनारायण भातखंडे जी के संगीत सम्बन्धी जो महत्त्वपूर्ण भाषण हुए, वे अंग्रेज़ी में ‘ए शॉर्ट हिस्टोरिकल सर्वे ऑफ़ दी म्यूजिक ऑफ़ अपर इण्डिया’ नामक पुस्तक के रूप में प्रकाशित हो चुके हैं।
उनके संगीत विद्यालयों की स्थापना के प्रयत्नों से ही बाद में अन्य कई स्थानों पर भी संगीत सम्मेलन हुए तथा संगीत विद्यालयों की स्थापना हुई। इसमें लखनऊ का ‘मैरिस म्यूजिक कॉलेज’ भी है, जो अब ‘भातखंडे संगीत विद्यापीठ’ के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा ग्वालियर का ‘माधव संगीत महाविद्यावय’ तथा बड़ौदा का ‘म्यूजिक कॉलेज’ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
अपना अधिकांश समय पंडित विष्णुनारायण भातखंडे ने संगीत को समर्पित कर दिया था। उन्होंने अपने अथक परिश्रम द्वारा संगीत की महान सेवा की और भारतीय संगीत को एक नए प्रकाश से आलोकित किया। उन्हें “संगीत मार्तंड” और “संगीत ज्ञाता” जैसी उपाधियों से भी नवाजा गया, जो उनके ज्ञान और संगीत के प्रति समर्पण को दर्शाते हैं। संगीत सेवा को समर्पित ये महान भारतीय संगीत के विशेषज्ञ 19 सितम्बर 1936 को परलोक वासी हो गए।
कार्यक्रम के अंत में सभी ने उनके सम्मान में गीत संगीत से कार्यक्रम का समापन किया। इस कार्यक्रम में गति के अध्यक्ष आलम सिंह रावत, पंडित अनुज शर्मा, पंडित मनोज शर्मा, रोशन लाल, संगीत विशेषज्ञ विजय वीर जौहरी, आंनद स्वरूप, पूजा चंद्रा, लियाकत अली, विशाल सावन, विशाल शर्मा, पूजा उनियाल, गोविंद सिंह गुसाईं आदि उपस्थित रहे।

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