शेरदा- अनपढ़’ की १३ वीं पुण्यतिथि पर परम्परा ने किया याद !दिनांक -२०-०५-२०२५. कालाढूंगी (नैनीताल) ! बृजमोहन जोशी।

प्रख्यात कुमाऊंनी कवि शेर सिंह बिष्ट जी कि १३ वीं पुण्यतिथि पर आयोजित कार्यक्रम कालाढूंगी, नैनीताल में पारम्परिक लोक संस्था परम्परा के द्वारा उन्हें याद किया गया। कार्यक्रम में परम्परा संस्था के निदेशक बृजमोहन जोशी व परम्परा परिवार के अधिकारियों ,सदस्यों व उपस्थित श्रोताओं के द्वारा भी शेर सिंह बिष्ट जी को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की गयी।
बृजमोहन जोशी के द्वारा शेर सिंह बिष्ट अनपढ़ जी के व्यक्तित्व व कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए बतलाया गया कि शेर सिंह बिष्ट अनपढ़ (शेरदा) नैनीताल में उनके पड़ोसी थे, वहीं हर्टन हाल अयारपाटा में अपने परिवार के साथ रहते थे। जोशी ने कहा कि तब मुझे यह मालूम नहीं था की- ओ परूवा बौज्यू के गीतकार व गायक यही शेर सिंह बिष्ट जी है। एक दिन पिता जी ने उनसे परिचय कराया और यह बतलाता कि जो गीत – ओ परूवा बौज्यू तुम गाते हो- वो परूवा के बौज्यू आप ही हैं। इस तरह शेर दा से परिचित हुआ। शेर सिंह बिष्ट जी मेरे गुरु जी रमेश चंद्र जोशी जी उस समय गीत एवं नाटक प्रभाग नैनीताल केन्द्र में एक साथ कार्य करते थे और उनकी एक सांस्कृतिक संस्था हिमानी आर्ट्स थी जो गीत एवं नाटक प्रभाग विभाग से पंजीकृत संस्था थी तब हम उस संस्था के कलाकार थे। इस तरह शेरदा से धीरे धीरे परिचय बड़ता ही गया। तब मैं नैनीताल में अयारपाटा, सूखा ताल,मल्लीताल में होने वाली रामलीलाओं मे शरदोत्सवों में अखिल भारतीय हिन्दी नाटक प्रतियोगिता में तथा सांस्कृतिक संस्था हिमानीआर्ट्स औरआयाम मंच नैनीताल के कलाकार के रूप में सहभागिता करता था। उस समय मैंने भी उनके इस लोक गीत को जो आकाशवाणी के लखनऊ केन्द्र से उत्तरायणी कार्यक्रम से सुना – था -ओ परुवा बौज्यू और पन खेड़ो घाघरी च्याव…को मैंने गायिका पुष्पा पाण्डेय , बीना जोशी, और नीता जोशी के साथ बहुत लम्बे समय तक अनेक कार्यक्रमों में एक साथ गाया था। शेरदा द्वारा लिखित नाटक ‘चतुरिया’ का सबसे पहला मंचन हमने आयाम मंच के माध्यम से शरदोत्सव रानीखेत में किया था उस समय गीत एवं नाटक प्रभाग ने भी शरदोत्सव रानीखेत में अपनी सहभागिता कि थी। चतुरिया नाटक को देखने के बाद शेरदा ने व्यक्तिगत रूप से मेरे द्वारा किये गये चतुरिया के अभिनय को तथा चतुरिया नाटक के अन्य कला कारों बीना जोशी,भीम सिंह कार्की,विमल चौधरी को भी अपना आशीर्वाद दिया था।और देश के अनेक भागों में हमने इस चतुरिया नाटक के अनेक प्रदर्शन किए।
जोशी ने आगे बतलाया कि शेरदा अनपढ़ कुमाऊंनी के लोक प्रिय कवि थे।शेर सिंह बिष्ट जी का जन्म १३ अक्टूबर १९३३ को ग्राम ‘ माल’ अल्मोड़ा में एक कृषक परिवार में हुआ था। बचपन में ही पिता बचे सिंह बिष्ट का निधन हो गया और १३ साल की उम्र में घर से ‘शेरदा ‘ आगरा चले गये।१३ अगस्त १९५० को शेरदा A.S.C कम्पनी में भर्ती हो गए।१९६१ मे शेरदा क्षय रोग से ग्रस्त हो गये और पूना के आर्मी हास्पिटल में ढाई साल तक अपना उपचार कराते रहे! शेरदा को इसी हास्पिटल में सन् १९६२ के भारत चीन युद्ध में घायल अनेक फौजी जवानों के साथ रहने का मौका मिला। उन घायल जवानों की कहानी उन्हीं की जुबानी सुनकर शेरदा का ह्रदय पसीज उठा जिसकी परिणति ये कहानी है नेफा लद्दाख की’ कविता संग्रह’ के रूप में प्रकाशित हुई। जिसे शेरदा ने उन्हीं जवानों के बीच बांट दिया। यहीं से शेरदा की कविता यात्रा आरंभ हुई।उसके बाद शेरदा ने ‘ दीदी -बैंणी ‘,हंसणै बहार, हमार मैं- बाप, कविता छापी। उसके बाद शेरदा गीत एवं नाटक प्रभाग सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (भारत सरकार) के नैनीताल केन्द्र में एक कलाकार के रूप में कार्य करने लगे कुछ समय पश्चात उनकी’ मेरी लट पटी’ नामक कविता संग्रह छपी।इसमें उनकी कविता -मुर्दाक बयान, एक स्वैंण देखनऊ , हसूं की डाड़ मारू, मौत और मनखी, द्वि दिनक डयार, जैसी कविताएं पढ़ी तो पता चला कि शेरदा तो कुछ और ही है। मुझे लगता है कि शेरदा ने जीवन को बहुत ही करीब से देखा और उसके हर पहलू पर कविताएं लिखी। जीवन की क्षण भंगुरता, नश्वरता पर भी उन्होंने कविताएं लिखी कविता में कठोर सत्य को उन्होंने उद्घाटित किया है मुर्दाक बयान कविता में –
जनूकैं मैंल एक बटया
उनूल मकै न्यार करौ
जनूकैं मैंल भितेर धरौ
उनूल मकै भ्यार धरौ
बेई तक आपण आज
निकाओ निकाओ हैगे
पराण लै छुटण नि दी
उठाओ उठाओ हैगे
शेरदा कहते है कि यह माया का फेर भी गजब है और आदमी उसमे उलझता ही चला जाता है और ये उलझन मृत्यु के बाद भी समाप्त नहीं होती।शेरदा आगे लिखते है कि-
चै चै बेर अंगवाव नि हालो
खून मैं के फर्क छू
अनवार लै तूमरी निहोली ज्यूंनि मैं के फर्क छू।शेरदा ने दिल से अपनी माटी से प्यार किया! यहां के लोगो से प्यार किया।पहाड़ के दुख दर्द से दूनिया के सत्यों को अपने दिल कि आवाज से प्रकट किया। शेरदा कि सबसे बड़ी विशेषता उनका अभिव्यक्ति कौशल था।शेरदा ने हास्य व्यंग सहित गम्भीर विषयों पर भी कविताएं लिखी।शेरदा कि कविताओं में जहां एक ओर हिंदी के कवि संत कबीर की वाणी है तो वहीं महात्मा गांधी के सत्य और अहिंसा के स्वर भी है।यही कारण है कि कुमाऊंनी कवियों में उनकी अपनी एक अलग पहचान है। अलग ठसक है या यूं कहूं की अपना एक अलग ही ठाठ है ।
अमेरिका से भी दूरभाष पर श्री महेश चंद्र जोशी जी ने तथा नैनीताल से श्री अनिल घिल्डियाल जी गीत एवं नाटक प्रभाग सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार नैनीताल केन्द्र के दोनों वरिष्ठ प्रशिक्षकों (सेवा निवृत्त) ने भी शेर सिंह बिष्ट जी को सादर श्रृद्धांजलि अर्पित की तथा महेश चंद्र जोशी जी ने कहा कि शेरदा ने नैनीताल केन्द्र में एक लेखक, गीतकार, गायक के साथ साथ एक कुशल अभिनेता के रूप में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।अनिल घिल्डियाल जी ने कहा कि देश के कई प्रान्तों में शेरदा ने महात्मा गांधी जी की यादगार भूमिका निभाई। बृजमोहन जोशी ने शेरदा के कुछ गीतों -ओ परूवा बौज्यू, पन खेड़ो घाघरी च्याव, म्यर हौशी हुड़ुकी , डाना काना घुघुती, व कुछ कविताओं के अंशों को भी सुनाया – भुर्र कनै उड़ि गयूं, घिनौड़ी चार , फुर्र कनै हरै गयूं, चांदिक रूपैं नै चार। जीवन की क्षण भंगुरता,नश्वरता पर भी शेरदा ने कठोर सत्य को उजागर किया – जनूकैं मैंल एक बटया , उनूल मकै न्यार करौ……और मनुष्य के घमंड को चुनौती देते हुए शेर दा लिखते हैं – द्बाब लै रौ छ काव शेरूवा दुणी में,के है रै छ निहाल शेरुवा दुणी में….! इस अवसर पर पारम्परिक लोक संस्था परम्परा नैनीताल के निम्न सदस्य मौजूद रहे श्रीमती कमला जोशी, मनोज जोशी, अनुभा जोशी, प्रशान्त कपिल, निशांत कपिल, श्रीपर्णा जोशी, मीनू कपिल, साबी कपिल, त्वरिता कपिल।

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