श्रावणी पर्व का संदेश ” गोष्ठी संपन्नवेदों का अध्ययन करने का संकल्प ले-आचार्य श्रुति सेतिया

नैनीताल l केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के तत्वावधान में ” श्रावणी पर्व ” का संदेश विषय पर ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन किया गया I य़ह करोना काल से 665 वां वेबिनार था I

वैदिक विदुषी आचार्य श्रुति सेतिया ने कहा कि श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन सभी आर्य व हिंदू बंधु श्रावणी पर्व को मनाते है । हमारा धर्म और हमारी संस्कृति 1.96 अरब वर्ष पुरानी होने से विगत दो ढाई हजार वर्ष पूर्व उत्पन्न अन्य सब मत मतांतरो से प्राचीन है । उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरकाल में देश में ऋषि दयानंद जी का आगमन हुआ था, जिन्होंने प्राचीन वैदिक धर्म एवम संस्कृति का वैदिक काल के अनुरूप पुनरुद्धार किया । अविध्यायुक्त मत मतांतरों के कारण देश वा समाज से अविद्या दूर ना हो सकी । इन कारणों से प्राचीन काल में प्रचलित वेद सम्मत श्रावणी पर्व का वास्तविक रूप अब भी प्रायः आंखो से ओझल है । वर्तमान काल में श्रावणी पर्व मनाया तो जाता रहा है परंतु इसका वैदिक स्वरूप नही रहा । ऋषि तर्पण के रूप में मनाया जाने वाले पर्व का उद्देश्य श्रावण मास को पूर्णिमा के दिन वेदों का स्वाध्याय व पारायण आरंभ किया जाता था , जिसे उपाकर्म कहते हैं । पौष मास की पूर्णिमा जो चतुर्मास पूरा होने पर आती है इस उपाकर्म का उत्सर्जन व समापन किया जाता था । अतः श्रावणी पर्व सृष्टि के आरंभ में वेदों के स्वाध्याय का व्रत लेने, उस पर आचरण करने व ऋषि तर्पण के रूप में मनाया जाता रहा है । पर्व का उद्देश्य पितृ यज्ञ एवम् अतिथि यज्ञ के समान वेद के मर्मज्ञ ऋषियों को संतुष्ट करना होता था । जिससे मनुष्य का अपना कल्याण होता है । वर्तमान में वैदिक धर्मी आर्यसमाजी लोग रक्षाबंधन पर्व को श्रावणी पर्व के रूप में मनाते हैं । सामान्य जनों को श्रावणी पर्व पर वेद अध्ययन व वेद पारायण का वैदिक पद्धति के अनुरूप उपाकर्म करना चाहिए। इसी में इस पर्व की सार्थकता है । इस अवसर पर वेद अध्ययन का संकल्प लेने का निश्चय करना चाहिए । इससे वैदिक धर्म वा संस्कृति का संरक्षण होगा और समाज से अविध्या दूर की जा सकती है । इस अवसर पर संपूर्ण वैदिक साहित्य के संरक्षण पर भी ध्यान देना चाहिए जिससे हमारी भावी पीढ़ियां हमारे वर्तमान एवम् पूर्व विद्वानों के उपयोगी वेद विषयक वैदिक साहित्य से वंचित ना हों । वैदिक धर्म की रक्षा के लिए दान देने सहित संकल्प लेने चाहिए। आर्य समाज तथा गुरुकुलो के आचार्य को वेद प्रचार की ठोसĵ योजना भी बनानी चाहिए । ऐसा करने से ही इस पर्व को मनाने और हमारे जीवन की सार्थकता है ।
मुख्य अतिथि प्रो. करुणा चांदना व अध्यक्ष चन्द्र कांता गेरा ने भी अपने विचार रखे I कार्यक्रम का संचालन राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल आर्य ने किया व राष्ट्रीय मंत्री प्रवीण आर्य ने धन्यवाद ज्ञापन किया I गायिका कौशल्या अरोड़ा, संतोष धर, सुनीता अरोड़ा, जनक अरोड़ा, सुधीर बंसल, राजकुमार भंडारी, ललिता धवन आदि के भजन हुए I

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