प्रधानाचार्य के पदों को केवल सीधी भर्ती से भरा जाना आवश्यक


उत्तरांचल शैक्षिक (सामान्य शिक्षा संवर्ग ) सेवा नियमावली 2006 के अनुसार राजकीय इण्टर कॉलेजों के प्रधानाचार्यों के पद शत-प्रतिशत पदोन्नति के पद थे। उप प्रधानाचार्य,वरिष्ठ प्रवक्ता (डाइट) आदि के पदों पर 50 प्रतिशत पदोन्नति से तथा 50 प्रतिशत पद संयुक्त राज्य परीक्षा के माध्यम से सीधी भर्ती द्वारा भरा जाने का प्रावधान था। इस समय तक शिक्षा विभाग में एक ही संवर्ग था। दो अलग अलग संवर्ग, शिक्षा संवर्ग तथा प्रशासनिक संवर्ग नहीं थे।
शासनादेश संख्या-74 XXVII (7) 1 मार्च 2009 के अनुसार छठवें केन्द्रीय वेतन आयोग की संस्तुतियों के क्रम में उत्तराखण्ड शिक्षा विभाग की प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षण संस्थाओं के शैक्षणिक पदों के दिनांक 01-01-2006 से स्वीकृत प्रतिस्थापित वेतनमान (Replacement Scale) का उच्चीकरण हुआ। वेतन समिति (2008) ने अपने चतुर्थ प्रतिवेदन में केन्द्र सरकार के शिक्षकों की तरह राज्य सरकार के शिक्षकों को भी उच्चीकृत वेतनमान 01-04-2009 से स्वीकृत किये जाने की संस्तुति की। वेतन समिति की संस्तुतियों पर लिए गये निर्णय के क्रम में राज्यपाल महोदय द्वारा स्वीकृति दी गयी। यह भी संस्तुति की गयी कि शिक्षा विभाग, में शैक्षिक संवर्ग एवं प्रशासनिक संवर्ग के अधिकारियों को प्रशासनिक कार्य अलग-अलग गठित किये जाने चाहिए तथा शैक्षिक संवर्ग के शिक्षकों को प्रशासनिक संवर्ग में तैनात नहीं किया जाना चाहिए (जैसे कि पहले किया जाता था) ताकि अनुभवी एवं योग्य अध्यापक अध्यापन कार्य संचालित करते रहें एवं राज्य सेवा से सीधी भर्ती द्वारा आने वाले अधिकारियों को प्रशासनिक कार्य में लगाया जाये। इन दोनों संवर्गों की संवर्गीय नियंत्रण की व्यवस्था अलग-अलग की जाय। शैक्षिक गुणवत्ता बढ़ाने के लिए शैक्षिक संवर्ग तो अलग किया गया लेकिन शिक्षकों को गैर-शैक्षणिक कार्यों से लाद दिया गया। अधिकारियों द्वारा समस्याओं का समाधान न किये जा सकने के कारण पदोन्नत्ति न समय पर पदोन्नति न होने से शैक्षिक गुणवत्ता अत्यधिक प्रभावित हो रहा है।
उत्तरांचल शैक्षिक (सामान्य शिक्षा संवर्ग ) सेवा नियमावली 2006 के स्थान पर 2013 में उत्तराखण्ड राज्य शैक्षिक (प्रशासनिक संवर्ग) सेवा नियमावली 2013 तथा 2022 में उत्तराखण्ड राज्य शैक्षिक (अध्यापन ) संवर्ग राजपत्रित सेवा नियमावली 2022 (उत्तराखण्ड राज्य शैक्षिक (अध्यापन ) संवर्ग राजपत्रित सेवा (संशोधन ) नियमावली 2025 बनायी गयी। उत्तराखण्ड राज्य शैक्षिक (प्रशासनिक संवर्ग) सेवा नियमावली 2013 के अनुसार प्रशासनिक संवर्ग में कुल 273 पद ( लेवल 10 से लेवल 14 तक ) जिसमें से 100 पद 5400 ग्रेड पे स्केल के पद सृजित किये गए जिस पर प्रशासनिक स्तर पर भर्तियां की जाती हैं। एक उप-शिक्षा अधिकारी (लेवल 10) 5 साल में खण्ड शिक्षा अधिकारी (लेवल 10), 10 साल में जिला शिक्षा अधिकारी (लेवल 12),15 साल में मुख्य शिक्षा अधिकारी (लेवल 13), 20 साल में अपर निदेशक (लेवल 13A), 23 साल में निदेशक (लेवल 14) बन सकता है। पूरे कार्यकाल में जो कि सम्बंधित अधिकारी के राजकीय सेवा में प्रवेश करने की प्रारंभिक आयु,, सेवा अवधि व विभागीय परिस्थितियों पर भी निर्भर करेगा, सभी उप-शिक्षा अधिकारी कम से कम जिला शिक्षा अधिकारी बन पायेगे जबकि 23 उप शिक्षा अधिकारी, मुख्य शिक्षा अधिकारी /संयुक्त निदेशक बन सकेंगे, 10 उप शिक्षा अधिकारी, अपर निदेशक बन सकेंगे, और तीन उप-शिक्षा अधिकारी, निदेशक बन सकेंगे। प्रशासनिक संवर्ग बनने पर सभी प्रशासनिक पद केवल प्रशासनिक अधिकारियों के लिए आरक्षित हो गए जिससे वे काफी लाभान्वित हुए हैं व होंगे वही शैक्षिक संवर्ग के प्रवक्ता/सहायक अध्यापकों के लिए अवसर घट गए व नगण्य लाभ हुआ।
पूर्व में पदोन्नति द्वारा प्रवक्ता से प्रधानाध्यापक, प्रधानाध्यापक से प्रधानाचार्य के पद पर पदोन्नति होने के पश्चात प्रशासनिक पदों पर भी पदोन्नत होते थे। वर्तमान में शैक्षिक संवर्ग में दो ही पद पदोन्नति के हैं प्रधानाध्यापक (910 पद) व प्रधानाचार्य (1385 पद) । प्रधानाध्यापक का पद शत-प्रतिशत पदोन्नति का पद है। प्रधानाचार्य के पद जो शैक्षिक संवर्ग में उच्चतम पद है यदि 692 पदों (50 % पद ) पर सीधी विभागीय भर्ती की जाती है (जो संगठन होने नहीं देगा) तो केवल 693 पद मात्र पदोन्नति के रह जायेंगे। तो ऐसी स्थिति में सैकड़ों/हजारों वरिष्ठ शिक्षक/प्रवक्ता जीवन में कभी भी पदोन्नति नहीं ले पायेंगे जबकि छठे वेतन आयोग के संस्तुति के अनुसार किसी भी कार्मिक को पूरे सेवाकाल में तीन पदोन्नति दिया जाना था।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुपालन में उत्तराखण्ड शासन के शासनादेश संख्या 82 191 /XXIV -B-1 /24 /31 ((02)/2022 दिनांक 15 जनवरी 2024 के अनुसार जो 559 क्लस्टर विद्यालय बनाया जाना है उसको भी ध्यान में रखा जाना है। सरकार/शासन शिक्षक हितों के लिए चिंतित नहीं है। विभाग के प्रशासनिक संवर्ग के अधिकारी इसलिए चिंतित नहीं हैं क्योंकि उनकी पदोन्नति पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ना है यदि विभागीय अधिकारी चिंतित होते तो प्रधानाचार्य विभागीय सीधी सीमित भर्ती का शासन को प्रस्ताव नहीं देते। यदि शासन स्तर के अधिकारी चिंतित होते वरिष्ठता विवाद होता ही नहीं व पदोन्नतियां हो चुकी होतीं। शासन व विभाग में शासनादेश तक गायब हो गए इसका क्या अर्थ लगाया जाय। शासन व विभाग के अधिकारियों द्वारा समय पर पदोन्नति की समस्या समाधान निकालने के बजाय सरल रास्ता प्रधानाचार्य विभागीय सीमित सीधी भर्ती को अपनाने का प्रयास किया जा रहा है।यह नहीं देखा जा रहा है कि इस सीधी भर्ती से वरिष्ठ सैकड़ों शिक्षकों के पदोन्नति के रास्ते बन्द हो जायेंगे।
शिक्षकों के पदोन्नति के अवसर को अति न्यून कर देना शिक्षकों पर एक अत्याचार है। यदि हमने विभागीय सीधी भर्ती नहीं रोका (जो कि हम रोकेंगे ) तो आने वाली पीढ़ियां हमें कोसेंगी जरूर। इसलिए हम सीधी भर्ती नहीं होने देंगे चाहे जो भी संघर्ष करना पड़े।
*
-डॉ.गोकुल सिंह मर्तोलिया
अध्यक्ष
कुमाऊं मण्डल
राजकीय शिक्षक संघ उत्तराखण्ड

Advertisement