होली – वैदिक सोमयज्ञ आलेख -बृजमोहन जोशी

नैनीताल l प्रारम्भ में पर्वों और उत्सवों का आरम्भ अत्यन्त लघु बिन्दु से होता है। जिसमें निरन्तर विकास होता रहता है। यही कारण है कि होली जो वैदिक सोमयज्ञ के अनुष्ठान के रूप में आरम्भ हुई आगे चलकर भक्त प्रहलाद उसकी बुआ होलिका हिरण्यकश्यप के आख्यान से भी जुड़ गयी उसके उपरांत मदनोत्सव, वसंतोत्सव तथा आज फागोत्सव का समावेश भी हो गया। वैदिक समय में नयी फसल से नवनेष्टि यज्ञ किया जाता था,उस अन्न को होला कहते हैं,इसी से इसका नाम होलिकोत्सव पड़ा। होली ऋतु परिवर्तन का पर्व है। होली अभिव्यक्ति का पर्व है तभी तो नज़ीर अकबराबादी,अमीर खुसरो, कबीर,कविवर गुमानी, गौर्दा, महेशानंद गौड़, चारुचंद्र पाण्डे,उर्रबा दत्त पाण्डे,तारी मास्साब, या….. गिरीश तिवारी गिर्दा हो इन सभी ने अपनी अपनी लेखनी से,अपनी गायकी से,अपनी अभिव्यक्ति से हमेशा समाज को झकझोरने का प्रयास किया है। गिर्दा कहते हैं –
यसी होली अलिबेर रचै गयो रे।
ढूंग बै ल्हिबेर मानो जाणि बेची गयो,अबीर गुलाल हरै गयो रे, यसी होली अलिबेर रचै गयो रे….
आप सभी महानुभावों को होली के पावन पर्व कि हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं।