यादों के झरोखों से…प्रसिद्ध रमौल गायक‌ व वादक।हरदा /हर्दा (सूरदास )। आलेख व छायाकार -बृजमोहन जोशी

नैनीताल। हरदा/हर्दा की पैदाइस जागेश्वर इलाके की है,यानी सुवाखान की। माने अल्मोड़ा -पिथौरागढ मोटर मार्ग में पनुवानौला दन्या के बीच। ग्राम लधौली, पोस्ट -सुवाखान, जिला अल्मोड़ाये पता है हरदा का।
अपने समय के एक अच्छे रमौल गायक,एक अच्छे जगरिये ( देवता अवतरित करने वाले ) तथा अनेक लोक विधाओं के मर्मज्ञ जो जन्म से सूरदास थे और भीख मांगकर अपना जीवन किया करते थे।
वर्ष 1981-1982 मे संस्कृति कर्मी व प्रख्यात जनकवि गिरीश तिवारी गिर्दा कि‌ नजर उन पर पड़ी। नैनीताल मल्लीताल स्टेट बैंक के पास से गुजरते हुए गिर्दा के कान में अचानक पहाड़ी वाद्य यंत्र हुडुके की गमक के साथ नेपाली मिक्स पहाड़ी गीत गाती एक सुरीली आवाज पड़ी।गीत के बोल थे-
गोपुली फुल्यो हो हिमाली हवाले,
मैं तो फूली भिना ज्यू तिमरी माया लैं।
गिर्दा ने सबसे पहले हरदा की गायकी को पहचाना और देशके विभिन्न भागों में हरदा की गायकी को विशेषकर रमौल गाथा गायन को श्रोताओं के समक्ष रक्खा तथा उन्हें एक पहचान दिलाई। गिर्दा कहते थे कि हरदा गायन करते समय ऐसा ध्वनि प्रभाव पैदा करते थे अपने कंठ से कि पहाड़ों का बसंत मूर्त हो उठता था।मैं तथा डा.भुवन चन्द शर्मा तथा उसके बाद भी दो तीन बार उनकी कुशल क्षेम लेने गया किन्तु आधे शरीर में फालिस पड़ जाने के कारण वो काफी अस्वस्थ रहे,‌और एक अच्छे इलाज के इन्तजार में इस दूनियां से चले गये।पारम्परिक लोक संस्था परम्परा नैनीताल उन्हें शत-शत नमन करती है अपनी विनम्र श्रृद्धांजलि अर्पित करती है।

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