दीया बाती और हम ” पर गोष्ठी संपन्न अंधकार में प्रकाश के दीप जलाये-आचार्य विमलेश बंसल

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शनिवार,1 नैनीताल l केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के तत्वावधान में “दीया बाती और हम ” विषय पर ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन किया गया।यह कोरोना काल से 587 वाँ वेबीनार था।कार्यक्रम यूट्यूब पर प्रसारित किया गया। वैदिक विदुषी आचार्य विमलेश बंसल ने कहा कि व्यक्ति के जीवन से प्रकाश आना चाहिए। समाज के लिए भी कुछ करना चाहिए जहां अंधेरा है वहां प्रकाश यानी कि आशा की लो जलानी चाहिए यही मानव जीवन की सार्थकता है।उन्होंने कहा कि स्वयं माटी के दीप बन जाएं,प्रति घर जगमगाएं।दीपावली का पावन पर्व यह बतलाने के लिए आता है कि अंधकार में निराश मत होओ,आशा के दीप जलाओ, सर्वत्र प्रकाश कर महोत्सव मनाओ।वस्तुत: घोर घने अंधकार को प्रकाश द्वारा ही दूर किया जा सकता है।बाह्य अंधेरा हो,चाहे अंतरमन का अंधेरा हो अर्थात अविद्या हो,दोनों ही भौतिक और आध्यात्मिक प्रकाश से दूर किए जा सकते हैं।माध्यम बनता है दिया और बाती तथा उसमें पड़ा घृत।दिया जहां आश्रय बनता है प्रकाश का वहीं बाती बनती है जलने का माध्यम,तो तेल बनता है प्रज्वलित करने का साधन।
उसी तरह हमारी आत्मा भी एक दिया है और शरीर बनता है जलने का माध्यम तथा प्रेम दया आदि सद्गुण बनते हैं शरीर को जीवंत रखने के साधन।व्यक्ति के भीतर ज्ञान प्रेम करुणा दया त्याग वृत्ति, सहनशीलता,सच्चरित्रता साहस आत्मविश्वास उसे बुझने नहीं देते, मिटने नहीं देते।उसी का जीवन धन्य है जो जीवन को इस तरह जीवंत बनाए रखता है अन्यथा तो मृत प्रायः है अर्थात् अंधकार से भरा हुआ है।पर्व का तो अर्थ ही होता है पोरी जैसे- गन्ने की गांठ में रस सुरक्षित रहता है एक पंगुली से दूसरी पंगूली को जोड़ रस भरने का कार्य ग्रंथि करती है ठीक उसी प्रकार से यह पर्व समाज की ग्रंथि होते हैं समाज के सभी वर्गों को जोड़ने,एक जुट करने,एक दूजे को गले लगा लेने, छुआछूत मिटाने,भेदभाव, विषमता और द्वेष मिटा कर निर्बल को भी गले लगाने,आश्रय बन ऊपर उठाने का कार्य करते हैं।हमारी संस्कृति को एक मजबूत आधार देते हैं।दीपावली का वैदिक स्वरूप यदि हम देखें तो वहां भी समरस समाज का शारदीय नवसस्येष्टि के रूप में वर्णन मिलता है एक कृषक अपनी अन्न की लहलहाती फसल रूपी लक्ष्मी द्वारा एक यज्ञ ही कर रहा होता है।और ईश्वर की संपदा को स्वयं होता अर्थात् दिया बन प्रथम आहुति यज्ञ के माध्यम से लगा हर वर्ग के तबके तक पहुंचाता है।समाज में फैली कुरीति अंधविश्वास पाखंड रूपी अज्ञान अमावस का हम छोटे छोटे ज्ञान पुंज दिए बन महर्षि दयानंद के निर्वाण दिवस पर सच्ची श्रद्धांजलि दें तथा ऋषि धनवंतरी जो आयुर्वेद के जनक थे उनसे स्वास्थ्य संपदा प्राप्त कर आरोग्य का वर्धन कर,यम नियमों का पालन कर रूपवान बनें। मुख्य अतिथि आर्य नेत्री मधु खेड़ा व अध्यक्ष रजनी चुग ने भी मानव जीवन के कर्तव्यों पर संदेश दिया। राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल आर्य ने कुशल संचालन किया व राष्ट्रीय मंत्री प्रवीण आर्य ने धन्यवाद ज्ञापन किया। गायिका प्रवीना टक्कर, रवीन्द्र गुप्ता, विजय खुल्लर, सीमा सोनी आदि ने मधुर भजन सुनाए।

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