मैं आर्य क्यों बनूँ विषय पर गोष्ठी संपन्न, सर्वांगीण उन्नति के लिए आर्य बनें-अतुल सहगल

नैनीताल l केन्द्रीय आर्य युवक परिषद् के तत्त्वावधान में मैं आर्य क्यों बनूँ? विषय पर ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन किया गया।य़ह क़ोरोना से 737 वाँ वेबीनार था। वैदिक प्रवक्ता अतुल सहगल ने कहा कि आर्य शब्द जातिवाचक नहीं, गुणवाचक है।उन्होंने कहा कि आर्य कोई सांप्रदायिक ठप्पा नहीं,मानव की श्रेष्ठता का सूचक है।सबसे पहले इस बात को लिया कि मैं मनुष्य क्यों हूँ और अन्य प्राणियों व पशुओं से किस प्रकार भिन्न हूँ।इस अत्यंत दुर्लभ मानव देह में रहकर मैं जीवात्मा अपना विकास कर सकता हूँ और बार बार जन्म लेने और मरने के चक्र से मुक्त हो कर आधिभौतिक,आधिदैविक और अध्यात्मिक दुखों से छुटकारा पा सकता हूँ।इसी मानव शरीर के माध्यम से मैं परमानन्द की स्थिति में पहुँच सकता हूँ जब मैं ईश्वर के साथ पूर्ण रूप से जुड़कर लम्बी काल अवधि तक दिव्य आनंद भोग सकूंगा।आर्य शब्द के सही अर्थ व मानव जीवन के उद्देश्य को समझने वाले लोगों की संख्या विश्व में आज भी कम ही है।लोग भ्रान्ति और भ्रमजाल में जकड़े हुए हैं।हम आर्य बनें और अपना उद्धार करते हुए समाज का भी उद्धार करें।आर्य बनकर ही मैं धर्म को पूर्णता से समझ और ग्रहण कर पाऊँगा।आर्य बनकर ही मैं अपनी समस्त भौतिक इच्छाओं को पूरा कर के अपने अध्यात्मिक स्तर को ऊँचा उठा पाऊँगा।आर्य बनना अर्थात श्रेष्ठ, कार्यकुशल,नैतिक,परोपकारी व वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाला बनना।मैं आर्य बनूँगा तो शांति,सद्भावना स्थापित करने वाला बनूँगा और शांति व सद्भावना की परिस्थिति में ही भौतिक समृद्धि की वृद्धि होती है।मैं जीवात्मा कोई रोग,दर्द,कष्ट, निर्धनता या उत्पीड़न नहीं चाहता, इसलिए मैं आर्य बनूँ।मैं अपने सपने साकार करना चाहता हूँ,इसलिए मैं आर्य बनूँ lमैं ईश्वर को पाना चाहता हूँ,इसलिए आर्य बनूँ।मैं बड़े बड़े कार्यों में सिद्धि प्राप्त करना चाहता हूँ जिसके लिए मेरी सर्वांगीण उन्नति होनी चाहिए।इसके लिए मुझे आर्य बनना होगा.मुझे ग़हन अर्थ वाले वेद मन्त्रों में गोता लगाकर सत्य को समझना होगा।मुझे अपने विवेक को प्रबल करना होगा।अभ्यास व पुरुषार्थ के लिए मुझे स्वयं को तैयार करना होगा।इसके लिए मुझे वेदगामी बनकर स्वयं तो ऊपर उठना ही होगा पर सत्य और मानव धर्म का प्रचार,प्रसार कर ऋषि ऋण को भी चुकाना होगा।मुझे सच्चे अर्थ में मनुष्य बनना होगा,इन सब सैद्धांतिक और व्यवहारिक तथ्यों को सामने रखा।आर्य समाज के दस नियमों की चर्चा करते हुए कहा कि हम अनार्ष साहित्य का परित्याग करें और वेद एवं आर्ष ग्रंथों के अनुसार जीवन बिताएं।वेदों में आस्था रखें व तर्क और युक्ति पूर्ण व्यवहार के अनुसार अपनी दैनिक चर्या चलाएं। आर्य समाज के गण होने के नाते वेद के उदघोष ‘मनुर्भव’ को चरितार्थ करें।आर्य बनें और अन्य मनुष्यों को भी आर्य बनायें। मुख्य अतिथि डॉ.गजराज आर्य व अध्यक्ष कृष्ण कुमार यादव ने भी विषय की संपुष्टि की।परिषद अध्यक्ष अनिल आर्य ने कुशल संचालन किया व प्रदेश अध्यक्ष प्रवीण आर्य ने धन्यवाद ज्ञापन किया। गायिका जनक अरोड़ा, कमला हंस, सरला बजाज, उषा सूद, रविन्द्र गुप्ता, संतोष धर, कुसुम भंडारी आदि के मधुर भजन हुए।

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