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रामपुर तिराहा कांड के कुछ दोषियों को उम्रक़ैद कीसजा हो गई यह अहम फ़ैसला है । यह अन्य दोषियों के लिए भी मील का पत्थर साबित होगा पर उत्तराखंड अलग राज्य की लड़ाई लड़ने वाले शहीदों के हत्यारों या हत्या की साज़िश करने वालों पर हत्या करने के आरोप ही न लग पाये ये भी महत्वपूर्ण है ऐसे में असल दोषियों को सजा मिलना तो नामुमकिन हो जायेगा ।
२ अक्टूबर 1994 को अलग राज्य की माँग के लिए दिल्ली जा रहे आन्दोलनकारियों को रामपुर तिराहा में गोली मार मौत के घाट उतार दिया गया ।
रामपुर तिराहा काण्ड से सम्बंधित एक मामले में सी बी आई बनाम मिलाप सिंह व अन्य के मामलों में दो पी .ए .सी .के दो तत्कालीन कांस्टेबलों को सजा सुनाई गई रामपुर तिराहा के बर्बर काण्ड का दुखद पहलू है जो चार मामले मुज़फ़्फ़रनगर की कोर्ट में चल रहे हैं उनमें कोई ऐसा मुक़दमा नहीं है जिसमें शहीदों के हत्या से संबंधित मामला हो और शहीदों के हत्यारों को हत्या करने की सजा मिल सके ये बात वरिष्ठ आन्दोलनकारी पूरन सिंह मेहरा शाकिर अली मुन्नी तिवारी मुकेश जोशी ने प्रेस वार्ता में कहा हत्या से संबंधित मुक़दमे आरोप पत्र समय पर दाखिल नहीं हो पाये या तय ही नहीं किये जा सके और ख़ारिज हो गये ।ऐसे मामलों में हत्या करने हत्या का प्रयास करने गैर इरादतन हत्या करने के मुक़दमे ही महत्वपूर्ण होते हैं और इसमें आई पी सी की धारा 302 अब 101लगती है ।जो चार मुक़दमे चल रहे हैं । ये महिलाओं से अत्याचारों से सम्बंधित सी बी आईं बनाम मिलाप सिंह व अन्य है ।ये तत्कालीन पी ए सी के कांस्टेबलों मिलाप सिंह व विरेंद्र प्रताप सिंह जिन पर आई पी सी की धारा 120बी 323,354,376,392,509,के तहत हैं ये दुराचार मारपीट नकदी व गहने आदी लूटने से सम्बंधित हैं जिनमें 30 साल बाद प्राथमिक स्थर पर निर्णय हो पाया । दूसरा मामला सी .बी .आई बनाम राधामोहन द्विवेदी ये लगभग 16 पीड़ित महिलाओं के साथ हुए अत्याचारों अपराधों से संबंधित शारीरिक शोषण कपड़े फाड़े जाने लूटपाट से जुड़े मामलों से है जिसमें अधिकांश धारायें पूर्व मुक़दमे की तरह की ही हैं यह मुक़दमा काफ़ी समय तक बन्द रहा । तीसरा मुक़दमा सी. बी .आई बनाम एस पी मिस्र इसमें पुलिस कर्मियों पर पर आरोप है उन्होंने षड्यंत्र के तहत आन्दोलनकारी शहीदों के शवों को ग़ायब कर दिया या गंग नहर में फेंक दिया । आई .पी .सी की धारा 201,120के तहत मामला दर्ज है चौथा मामला सी .बी. आई बनाम बृज किशोर व अन्य आई .पी. सी की धारा 211,182,218,120, आन्दोलनकारियों पर हथियारों पेट्रोल आदि की झूठी बरामदगी दिखाई गयी है जबकि हत्या गैरइरादन हत्या से संबंधित कोई भी मुक़दमा नहीं चल रहा है उत्तराखंड आन्दोलनकारियों की हत्या से संबंधित सभी मामलों का ख़ारिज हो जाना व किसी अपराधी को सजा न मिल पाना दिन के उजाले में किसी आश्चर्य से कम नहीं है जबकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 1996 में सरकार को आदेश जारी किया शहीद उत्तराखंड राज्य आन्दोलनकारियों को दस दस लाख रुपये दे। उन्होंने कहा सभी आन्दोलनकारी संगठनों को इस महत्वपूर्ण विषय पर एक मंच पर लड़ाई होगी ।

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