कांगड़ी। यादों के झरोखों से। कुछ यादगार पल।बृजमोहन जोशी।



अपने बचपन में अक्सर जाड़ों के दिनों में हम सभी साथी खाली टिन के डिब्बे में कुछ छेद करके उसमें एक लम्बा तार बांधकर कांगड़ी बनाते थे। उसमें सुखी लकड़ी के टुकड़े डालकर जलाते थे। जब भी लकड़ी लेने जाते थे l तो कांगड़ी साथ में ले जाते थे। घर के वृद्ध लोगों का मानना था कि कांगड़ी साथ में होने से एक तो उसके धुएं से मूरे मच्छर तथा बुरी शक्तियों से भी सुरक्षा होती है तथा ठंड से बचने के लिए थोड़ी थोड़ी देर में हाथ भी गर्म करते रहते हैं। इस कांगड़ी कि एक विशेषता और यह थी कि कांगड़ी में आग जलाने के बाद उस आग को बराबर जलाते रखने के लिए थोड़ी थोड़ी देर बाद हाथ मे कांगड़ी का तार हाथ में पकड़ कर उसे जोर जोर से घुमाने से आग बराबर जलती रहती थी और हाथ को दो चार बार घुमाने से शरीर में गर्मी भी बनी रहती थी।
शायद मेरी उम्र के सभी साथियों ने भी कांगड़ी जलाने का आनन्द लिया होगा।

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